Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
सपना चन्द्रा की कविताएँ

कभी-कभार यादें आकर
खटखटाती हैं द्वार मन के
टोहती हैं पेशानी पर एकाध बूँद
बेचैनी भरे लम्हों की

डॉ० प्रभा दीक्षित की कविताएँ

तुम्हारी सभ्यता का चरम ऐश्वर्य
समाहित है भाषा में
तुम्हारी संस्कृति के
स्याह हिंसक पशु भी
विचरते हैं भाषा के जंगल में
इसी से तुम्हारी सभ्यता की
सबसे निचली सीढ़ी पर बैठी है औरतें
गालियों की पोशाक पहने
एक विद्रूप मुस्कान सजाए

चंद्रेश्वर की कविताएँ

परिपक्व होते ही
रंग प्यार का
दिखता ख़ूब गाढ़ा
पके सिंदूरी आम की तरह

यही समय होता पर
उसके बिछुड़ने का भी
डार से।

सुनीता जैन 'रूपम' की कविताएँ

काँच की आलमारी के अंदर
तुम्हारी तस्वीर लगा कर
नहीं बनाना चाहती तुमको
प्रदर्शन की वस्तु।
तुम तो आज भी प्रतिष्ठित हो
मेरे हृदय पटल पर,