Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
शिज्जू शकूर की ग़ज़लें

दर्द की शक्ल बदलते ही बदल जाते हैं
मेरे अल्फ़ाज़ नये सांचों में ढल जाते हैं

क्या ज़रूरी है कि ठोकर से सबक़ ले कोई
जो समझदार हैं, पहले ही सँभल जाते हैं

पुष्पेंद्र 'पुष्प' की ग़ज़लें

 
ख़्वाब किसी के अक्सर आँखों के रस्ते
नींद  उड़ा  ले  जाते  हैं  तन्हाई में

डॉ० कृष्ण कुमार 'नाज़' की ग़ज़लें

ज़िंदाबाद मोहब्बत, तेरे दीवाने भी ज़िंदाबाद
ज़ात फ़ना कर बैठे अपनी और नज़ीरें छोड़ गए

रामचरितमानस, रामायण, भगवद्गीता, वेद, पुराण
अभिनंदन उन पुरखों का जो ये जागीरें छोड़ गए

अल्का 'शरर' की ग़ज़लें

दिन भर तो उजली धूप सी निखरी रही हँसी
आयी जो शाम पलकों पे ग़म मुस्कुरा दिए