Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
बचपन की चोरी- अंजू केशव

गर्मियों में जब पूरा परिवार दोपहर की नींद का मजा ले रहा होता तो माँ के बनाए हुए अचार चुरा कर खाना प्रिय शगल था। क्या आनंद था उसमें आहाहा! भुलाए नहीं भूलता। एक बार तो इस चोरी के चक्कर में, नए बने अचार की पूरी की पूरी बरनी ही ऊँचाई से गिरा कर तोड़ दी और बरनी के साथ अचार का भी सत्यानाश कर दिया।

हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी- गोपाल खन्ना

बाबू के सर से रक्त की धार बह चली होगी। बाबू के हाथ से चाय की केतली छूट कर गिर गई होगी, गर्म चाय और अपने रक्त के ऊपर बाबू निढाल पड़े खुली आँखों से इस बेरहम दुनिया को अलविदा कह रहे होंगे। केतली से गिरी चाय ने खून की लालिमा को कुछ सफेद कर दिया होगा।

साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल- केशुभाई देसाई

डायरी में एक-एक शब्द आँसू की स्याही से लिखा गया था इसलिए जिस किसी ने भी पढ़ी, वह गांधी जी के परम प्रिय नाती के साथ हुए अमानवीय दुर्व्यवहार की हृदय विदारक कथा से व्यथित होकर सन्न रह गया। गांधीनगर में मेरे पड़ोस में रहने वाले बुजुर्ग नेता माधवसिंह सोलंकी ने वह किताब समीक्षा करने के लिए मुझे भेजी। तब तक मैं हमीद कुरेशी से व्यक्तिगत तौर पर मिला नहीं था।

ख़राब बॉस- हर्षा श्री

बड़ा ही मनोरंजक एवं स्मरणीय संस्मरण