Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
स्नेह गोस्वामी की कहानी 'ऐसा यहाँ होता है'

बिशनसिंह ने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी देखी। अभी तो साढे नौ ही बजे हैं, वे लोग ग्यारह बजे से पहले तो क्या ही आएँगे। साढ़े दस का तो टाइम ही दिया है उन्होंने। उसे अपनी घड़ी पर गुस्सा आया। आज इतनी धीमी चल रही है कि ले राम का नाम। फिर अपनी ही सोच पर उसे हँसी आ गयी। बेचारी घड़ी का क्या कसूर!

नीरजा हेमेन्द्र की कहानी 'यह शाम का समय है'

कभी-कभी मैं सोचता कि बच्चे जब माता-पिता की बात नहीं मानते, उनके अनुभवों का लाभ उठाना नहीं चाहते तथा जीवन के प्रमुख निर्णय विवाह इत्यादि अपनी इच्छा से कर लेते हैं तो जीवन की दुश्वारियों को फेस क्यों नही कर पाते? असफल होने पर माता-पिता को दोष क्यों देते हैं?

डॉ० सुषमा त्रिपाठी की कहानी 'प्रसाद'

बारह वर्ष का अनुराग अभी स्कूल से आकर लेटा ही था कि उसके कानों में फुसफुसाहट आ पड़ी,सुनो भाभी! ये अनुराग अब भी तुम्हारे ही गले की घण्टी बना रहेगा? आख़िर कब तक यह यहीं तुम्हारे सर का बोझ बना रहेगा?'

अनिता रश्मि की कहानी 'रिश्ते यूँ ही नहीं खोते'

माँ ने पायल से कहा था, "इस रिश्ते का कोई वजूद है? क्या नाम देगी? कभी किसी ने पूछा तो खुलकर बता पाएगी? और कभी अलग होना पड़े, उसकी किसी चीज़ पर हक़ रहेगा, दावा कर पाएगी? बच्चे को बाप का नाम दे...?"