Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
होली- डॉ० ज्योत्सना मिश्रा

फिर से एक बार फागुन लौटा है, पलाश की मद्धम आँच में सुलगता ,आम्र मंजरियों की गंध से महकता वसंत अपने चरम पर पहुँचने को है। महाकवि कालिदास ने ऋतुसंहार में वसंत का वर्णन करते समय लिखा वृक्ष फूलों से लद गये हैं, जल में कमल खिल गये हैं, स्त्रियों के मन में काम जाग उठा है, पवन सुगंध से भर गया है।

समकालीन हिन्दी ग़ज़ल : स्त्री विमर्श- अनामिका सिंह

स्त्री केंद्रित ग़ज़ल को जन केंद्रित ग़ज़ल के साथ एकाकार कर देने से एक सार्थक उपसंहार का सृजन होगा और ग़ज़ल की कालजयी भूमिका तय होगी। जड़मूल्यों से विद्रोह की ग़ज़ल समय की बड़ी माँग है और स्त्री प्रसंग में तो यह सबसे बड़ी माँग है।

नाज़ुक एहसास की  शायरा : परवीन शाकिर- डॉ० ज़ियाउर रहमान जाफ़री

कॉलेज के दिनों में ही उन्होंने ख़ुशबू नाम की ग़ज़ल की एक किताब लिखी और इस किताब का यह जादू हुआ कि परवीन शाकिर रातों-रात पूरी दुनिया की चहेती शायरा बन गईं। उनकी शायरी का यह जादू था कि इश्क़ में डूबा और छला हुआ हर नाकाम शख्स उनका क़ायल हो गया। 

डॉ० कृष्णकुमार नाज़ की ग़ज़लों में समाज- डॉ० सीमा विजयवर्गीय

सामाजिक स्थितियों पर तो नाज़ साहब की नज़र बहुत पैनी है। दशा के साथ-साथ दिशाबोध कराना ही नाज़ साहब की ग़ज़लों का प्रमुख लक्ष्य है। आपका ये व्यक्तित्व ही आपको कबीर की श्रेणी में ला खड़ा कर देता है। साहित्यकार का सबसे बड़ा दायित्व यही है कि वह समाज की समस्या पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ समस्या के समाधान की बात भी सोचे।