Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
गीता गुप्ता 'मन' के सरोज सवैया छन्द


चंपई कत्थई बैंगनी मोगरी, लाल पीले गुलाबी हरे रंग होली में।
है अबीरों भरी प्रात की सुष्मिता शाम के रंग है दंग होली में।

कंचन पाठक के घनाक्षरी छन्द

ऐसे तके चितचोर भीग जाए पोर- पोर,
प्रेम में विभोर रूप उनका ललाम है।

नील में उजास घोल मिसरी के जैसे बोल,
क्षण - क्षण हिया हूक उठता अनाम है।

डॉ० भावना तिवारी के दोहे

पिया तुम्हारे देश में, नहीं प्रीति का मोल।
अमृत के पहले यहाँ, विष देते हैं घोल।।

मनोज कुमार शुक्ल 'मनुज' के घनाक्षरी छन्द

ज्ञान,भक्ति,आत्मसुख, परमार्थ, दिव्यता की,
कृष्ण हैं अगर चाभी राधिका जी ताला हैं।