Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
शैलेन्द्र शर्मा के दोहे

 
गंगा-यमुना- ताप्ती,  भिन्न-भिन्न  पहचान। 
सागर से मिलकर सभी, होतीं एक समान।। 

मनोज शुक्ल 'मनुज' के घनाक्षरी छन्द

हरियाली हर ओर दिखती है भूमि पर,
देह यष्टि वृष्टि से सुहानी कर  देती  है।

भर देती पोखर, सरोवर,नदी  व  झील,
नलिनी को कुमुद की रानी कर देती है।

सीमा वर्णिका के दोहे

 
होली गोकुलधाम में, मस्ती पर है जोर।
रंगे सभी अबीर से , जुड़ी प्रेम की डोर।।

शकुन अग्रवाल के सवैया छन्द

आ गया भव्य त्योहार होली पिया,खेलना आपके संग चाहूँ मैं।
घोल लो रंग भी साजना प्रीति का,खूब पक्का चढ़े रंग चाहूँ मैं।
देह के साथ में रंग जो चित्त दे, रंग का हो यही ढंग चाहूँ मैं।
डोर बाँधी पिया आपसे नेह की,गाँठ हो ये सदा तंग चाहूँ मैं।