Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
संध्या तिवारी की लघुकथाएँ

मुझे  फैक्ट्री के सारे मुलाजिम हमेशा ही फैक्ट्री में बजने बाले हूटर के गुलाम सरीखे दिखते थे। हालांकि ये सब नियम से नहाते-धोते ,खाते-पीते थे, लेकिन इनके जीवन में स्फूर्ति न थी। एक यन्त्रवत जीवन यापन था। एक अनकही यन्त्रणा थी।

सुधीर द्विवेदी की लघुकथाएँ

"तुम्हे दकियानूसी लोगों की बातों को सीरियसली नहीं लेना चाहिए। " समझाते हुए पत्नी ने फौरन पति के हाथों से चाक़ू छुड़ाया और मुस्कुरा कर उसके हाथों में चाय का कप थमा दिया।

दिव्या शर्मा की लघुकथाएँ

"तुम्हारे लिए सफेद रंग जरूरी है।"
वह इस रंग को अपने से दूर रखना चाहती थी, क्योंकि यह रंग तो उसने न दिया था…
...लेकिन सफेद  रंग तन के साथ उसके मन पर भी पोत दिया गया। उसके दिए हुए सारे रंग छूट गए।

रवि प्रभाकर की लघुकथाएँ

आँगन में स्कूटर खड़ा करते हुए सुरेश ने र्हर्न बजाया। थोड़ा हैरान हुआ कि सोना रोज़ाना की तरह डैडी आ गए... डैडी आ गए.... डैडी... चिज्जी... खुशी से चिल्लाते उसकी टाँगों से नहीं चिपटी स्कूटर की टोकरी से बेकरी के सामानवाला लिफ़ाफ़ा निकालकर सोना की "चल मेरे घोड़े.... टिकटिक...' की हर्षमिश्रित आवाज़ों का पीछा करते हुए वह ड्राइंगरूम में जा पहुँचा।