Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
जयनंदन की कहानी 'हनकी बूढ़ी का कवच'

हनकी और उसके बेटे जतिन दयाल और विपिन दयाल पांडव की तरह महाभारत में कूद पड़े लेकिन उसके साथ न कोई कृष्ण था, न कोई घटोत्कच। दीनदयाल ने लोभ, लाभ, पद के प्रभाव और प्रपंच के सहारे अपने पूरे जातीय टोले को अपने पक्ष में कर लिया था।

शिवानी शांतिनिकेतन की कहानी 'नक्कालों से सावधान'

"मतलब कि मोहित और सोहित तुमसे कोई मतलब नहीं रखते! ये तो बहुत बुरी बात है।" किशन के कहने में नाराज़गी थी।
"अरे छोड़ो इन सब बातों को, अब इस बूढ़े शरीर से किसी को कोई फायदा तो रहा नहीं तो हम अपना बुढ़ापा ख़ुद ही सम्भाल रहे हैं। और तुम भी क्या बातें करने लगे, चलो भई जल्दी चाय ख़त्म करो फिर चलो ज़रा बाहर टहल कर आते हैं।

डॉ० रमेशचंद्र की कहानी 'भाई साहब का आशीर्वाद'

भाई साहब कभी कभी मस्ती के मूड में आ जाते हैं तो मुझसे कुश्ती लड़ते है, सिर पर चढ़ जाते हैं, कंधे पर बैठ कर मुझे नीचे पटकने की कोशिश करते हैं। इतना ही नहीं कभी कभी सचमुच में पटक भी देते हैं। जब मैं पलंग पर लेट जाता हूँ तो भाई साहब घुड़सवारी करते हैं। दस बीस मिनट तक घोड़ा बना कर दौड़ाते रहते हैं और मारते भी है।

डॉ० ज्योत्सना मिश्रा की कहानी 'जइयो बरसियो कहियो'

आत्मकथ्यात्मक शैली में रचित एक कहानी, जो घर-दफ़्तर से लेकर बाहर तक स्त्री के संघर्ष और उसकी मानसिक जद्दोजहद का जीवंत चित्र खींचती है। एक तरफ उसका अपना 'मन' है, अपने सुख-दुःख बटोर रहा है, आसपास का सबकुछ अनुभव कर जो एक इंसान की भांति जीना चाहता है, दूसरी तरफ उसका एक 'स्त्री' होना है, जो उसके 'मन के जीने' के बीच किसी साए की तरह आकर खड़ा है और उसे बार-बार अनुभव करवाता है कि तुम सामान्य इंसान नहीं, एक स्त्री हो। जिसे हर एक जगह सजग व संघर्षरत रहना है। पढ़िए, एक विचारप्रधान मार्मिक रचना।