Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
अनिता रश्मि की कहानी 'रिश्ते यूँ ही नहीं खोते'

माँ ने पायल से कहा था, "इस रिश्ते का कोई वजूद है? क्या नाम देगी? कभी किसी ने पूछा तो खुलकर बता पाएगी? और कभी अलग होना पड़े, उसकी किसी चीज़ पर हक़ रहेगा, दावा कर पाएगी? बच्चे को बाप का नाम दे...?"

मौसमी चंद्रा की कहानी 'कुहू'

हम जगह-जगह रिश्तों के नाम के बांध लगाते हैं। सोचते हैं जीवन की गति अपने तरीके से चलाएँगे। चला पाते हैं? नहीं।

अंजू केशव की कहानी '24 कैरेट'

"एक-एक पैसे की वैल्यू होती है हम मिडिल क्लास वालों के लिए और तुम....", बात अधूरी छोड़ कर चुप हो गया नीरज।
"मैं कुछ नहीं जानती। मुझे तो इस बार रोज़ चाहिए। मैं भी आज देखूँगी कि तुम्हारी ज़िंदगी में मेरी क्या अहमियत है!" बात खत्म करते-करते नेहा नें नीरज को टिफिन पकड़ा दिया।

मनीष वैद्य की कहानी 'खिरनी'

नदी में नहाने के बाद वह झाड़ियों के पीछे अपने गीले कपड़ों को इतनी जोर से निचोड़ती कि पानी की आखरी बूँद तक निचुड़ जाए। फिर उन्हें धूप में सुखाती और उनके सूखने तक वहीं खरगोश की तरह दुबककर बैठी रहती। इधर लड़का भी रेत की ढेरियों पर अपने कपड़े सुखाता। कुछ गीले भी होते तो बदन पर सूख जाते। कपड़े सूखने पर ही वे घर या स्कूल लौट सकते थे। कभी घर में पता चलने पर उनकी पिटाई भी हो जाती लेकिन छुपते-छुपाते नहाने और नदी के ठंडे पानी में घंटों पड़े रहने का अपना मजा था।