Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
कृष्ण बिहारी की कहानी- टेंशन

उसके साथ का पूरा संवाद अंगे्रजी में हुआ था। अगर वह हिन्दी बोल ही पाती तो उसे ट्यूशन की कोई खास जरूरत नहीं होती। वह बहुत सरल लगी। मगर उसकी सरलता भी एक पहेली जैसी ही अबूझ भी दिखी। मैंने डॉक्टर गुप्ता से भी उसके बारे में कुछ ज्यादा नहीं पूछा था। शाम को लगभग पाँच बीस पर मैंने उसकी कम्पनी ऑफिस की कॉल बेल दबाई। वह अकेली ही वहाँ थी।

उर्मिला शुक्ला की कहानी- बँसवा फुलाइल मोरे अँगना

अब तक तो बस एक ही बार वह मिसेज मल्होत्रा के करीब जा पाया था। वह भी बस कुछ घंटों के लिए। दीपा उसकी दोस्त थी, पत्नी नहीं। उसकी भी अपनी कुछ सीमायें थीं, सो सब कुछ आधा-अधूरा ही रह गया था। वह दृश्य उसकी आँखों में बार-बार उभरता रहा; मगर अब ? अब तो सारा का सारा समय उसका अपना होगा। कोई रोक टोक, कोई प्रतिबन्ध नहीं। अब वह क्लब का स्थायी मेम्बर होगा। सोचकर ही उसे रोमांच हो आया और उसकी आँखों की वह, चमक...!

इला प्रसाद की कहानी- दहशत

केमिकल फ़ैक्ट्रियों की गोद में बसा था यह हाई स्कूल। निवेदिता को अगर कुछ परेशान करता था तो वह उन फ़ैक्ट्रियों से उठने वाला रंगीन धुँआ था या फ़िर वह दुर्गंध जो किन्हीं खास दिनों में बादलों भरे आसमान से न निकल पाने की विवशता में उसके स्कूल तक तैर आती थी। सुबह-सुबह जब वह पार्किंग एरिया में कार पार्क करके बाहर आती तो लगभग दौड़ती हुई सड़क पार करती, सीढ़ियाँ चढ़, शीशे के बड़े दरवाजे को धकेलती, स्कूल में दाखिल हो जाती, साँस रोकती हुई।

डॉ० आरती लोकेश गोयल की कहानी- प्रत्यावर्तन

दुनिया भर में लोग नौकरियों से निकाले जा रहे थे। हवाईजहाज़ हवाई अड्डों पर खाली खड़े थे जैसे बूढ़ी गाय बस खूँटा गाढ़कर घर में बँधी रहती है। वह किसी के काम की नहीं रहती और कोई उसका ध्यान नहीं रखता। यात्राएँ ही नहीं तो बुकिंग क्लर्क की ही जॉब कहाँ बची थीं। ट्रैवल एजेंसी भी एक ही कर्मचारी से सारा काम चला रही थी। अंग्रेज़ी बोलने वाला उस समय मौजूद नहीं था। कॉल सेंटर पर केवल पाकिस्तानी अटैन्डेंट था जो सूज़ी आंटी की अर्मेनियन अंग्रेज़ी को समझ नहीं पा रहा था।