Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
राजेन्द्र राव की कहानी- थप्पड़

विशाल ने भी आवेग में और क्षणिक त्वरा में उसे चूम तो लिया मगर दूसरे ही क्षण उसे इसमें भावना प्रधानता न होने की कमी खलने लगी। वह मनोगत होकर सोचने लगा कि चुंबन सरासर एक रासायनिक क्रिया है जिसमें दो अलग अलग तत्व एक दूसरे से प्रतिक्रियायित होते हैं। उस क्षण वह जैसे ज्वार की लहर पर सवार था मगर बस किनारे की रेत को भिगो कर लौट आया। उधर बस एक समशीतोष्ण रेस्पान्स था। रेस्पान्स था भी कि नहीं, उसे निश्चित रूप से पता नहीं था।

मंजूश्री की कहानी - एक नई सुबह

मैं कमरे की खिड़की पर खड़ी सोचने लगी कि क्या सोचकर मैं इस अपरिचित जगह पर सबकुछ छोड़कर चली आयी हूँ! ये घर, ये लोग, ये रिश्ते सब तो अपरिचित हैं। बीच में कहीं भी किसी से जुड़ाव नहीं, लगाव नहीं। कहीं किसी भी रिश्ते में नहीं। कोई सपने नहीं, पुलक नहीं, उछाह नहीं, उस व्यक्ति के लिए भी नहीं, जिसके सहारे मैं सबकुछ छोड़कर चली आयी हूँ। झटका लगा ये क्या किया मैंने! क्या वाक़ई मेरा क़दम सही था?

प्रियंवद की कहानी- कैक्टस की नाव देह

मैं चुपचाप बैठा उसे देख रहा था। वह हमेशा यही सपना देखा करती थी। इस सपने से उसकी आँखें हमेशा चमकने लगती थीं। वह पूजा करती थी इसलिए उसके पूरा होने के यक़ीन से भी। लेकिन मुझे वनि की चमकती नहीं, गीली आँखें अच्छी लगती थीं। बिलकुल वैसी ही गीली आँखें, जैसे बरसात में खिड़की का शीशा गीला हो। वनि यह जानती थी। 

प्रेमगुप्ता मानी की कहानी- क़िस्सा बाँके बाबू के जाने का

नरेश की आँखें नम हो आई। उसने कमलादेवी को साँत्वना देने की कोशिश की पर दे नहीं पाया...लगा जैसे आगे बढ़े हाथ अचानक ही किसी भारी बोझ से दब गया हो...। पूरे घर का माहौल भी अब पहले से कहीं ज्यादा अजीब-सा हो गया था। गेट के बाहर खड़े लोग भी अब भीतर आ गए थे।