Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
विनीता शुक्ला की कहानी 'विश्रांति'

स्मृतियाँ अपने कपाट फटफटाने लगीं। संध्या का झुटपुटा उनको जकड़ने लग गया। जान पड़ा मानों कल की कुहरीली सांझ, पुनः जीवंत होकर; अभिशप्त परछाइयों के पंजे फैला रही हो। उस दुर्घटना को 24 घंटे भी न बीते होंगे। इसी क्लब हाउस के चौराहे से बमुश्किल सात फीट की दूरी पर वह अप्रत्याशित काण्ड हुआ था। एक लापरवाह-सा नौजवान, अपनी बेकाबू हो चुकी बाइक को लेकर रंधीर की कार से जा भिड़ा। ग़लती उस युवक थी; फिर भी अपराधी वे बने।

नीरजा हेमेन्द्र की कहानी 'अमलतास के फूल'

वाश वेसिन के शीशे में स्वयं को देखते हुए मैं सोचने लगी कि घर से बैंक और बैंक से घर की दिनचर्या में समय कब इतना आगे बढ़ गया? मुझे आभास तक न हुआ कि मैं उम्र की तिरपन सीढ़ियाँ पार कर चुकी हूँ। उफ्फ! तिरपन वर्ष? यह तो समय की एक बड़ी अवधि है।

कल्पना मनोरमा की कहानी 'एक नई शुरुआत'

किसी के द्वारा कहा गया एक भी शब्द इस ब्रह्माण्ड में अनसुना नहीं जाता। शब्द की अपनी सत्यता और प्रामाणिकता होती है। शब्द कभी मरते नहीं। वक़्त आने पर ठंडी-गरम तासीर ज़रूर दिखाते हैं।

मीना धर पाठक की कहानी 'लोभ'

कुसुम की दोनों बेटियाँ पढ़ रही थीं। एक दिन उसके न रहने पर कुछ मनचले उसकी झुग्गी में घुस कर बड़ी बेटी से ज़ोर ज़बरजस्ती पर उतर आए थे। वो तो अच्छा हुआ कि पड़ोस का राममोहन उस दिन मजदूरी पर नहीं गया था। शोर सुन कर उसी ने गँइती उठा कर उन लड़कों को दौड़ाया था। साँझ को घर लौटने पर पता चला तो वह काँप उठी थी।