Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
मुकेश आलंम की ग़ज़लें

दुनिया का दिल रखते-रखते सब अरमाँ क़ुर्बान किये
हमने सारी फ़ौज लगा  दी  पत्थर  की  निगरानी  में

ख़ुरशीद खैराड़ी की ग़ज़लें

गले मिलकर बनाते हैं यही मज़बूत इक रस्सी
गर आपस में उलझ जाएँ तो धागे टूट जाते हैं

चमन में बेटियों के वालिदों-सा हाल है इनका
उठाकर तितलियों का बोझ पौधे टूट जाते हैं

रश्मि शर्मा 'सबा' की ग़ज़लें

दर्द बेताब है अल्फ़ाज़ में ढलने  के   लिए
रास्ता चाहिए सब को ही निकलने के लिए

डॉ० अल्पना सुहासिनी की ग़ज़लें

समर अब ख़ुद ही लड़ना है, निरंतर आगे बढ़ना है
सो अपने दिल में हिम्मत का नगीना तुमको जड़ना है