Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
डॉ० राकेश जोशी की ग़ज़लें

डॉ० राकेश जोशी की ग़ज़लें अपने समय के यथार्थ का पूरा ख़ाका खींचती हैं। इनकी ग़ज़लों में सत्ता और व्यवस्थाओं के खेल, माफ़ियाओं का आतंक, आम आदमी को वंचित रखने की कवायदें, नदी-पेड़-पर्वतों की चिंता, समाज के अशिक्षित तथा ग़ैरज़िम्मेदार इंसान की कारगुज़ारियाँ आदि वे सब चीज़ें मिलती हैं, जिनसे दुःख पैदा होते हैं। अच्छी बात यह भी है कि डॉ० जोशी अपनी ग़ज़लों में लगातार आम आदमी को सम्बोधित किये रहते हैं और उसे इन दुखों से, इन मुसीबतों से पार होने के तरीक़े समझाते रहते हैं। पर्यावरण, पहाड़ और पहाड़ी जीवन की झलक इनकी ग़ज़लों में जगह-जगह देखने को मिलती है।

डॉ० उपमा शर्मा की पाँच ग़ज़लें

पेशे से दंत चिकित्सक डॉ० उपमा शर्मा उर्दू ग़ज़ल के कारवां को आगे बढ़ाता एक नया नाम है। इनकी ग़ज़लगोई का परंपरागत लबो-लहजा आकर्षित करता है। प्रेम के विभिन्न रूप और दर्शन की उपस्थिति इनकी ग़ज़लों के मूल तत्व हैं। यहाँ प्रस्तुत हैं इनकी पाँच चुनिंदा ग़ज़लें।

शमीम हयात  की ग़ज़लें

चाँद, सितारे, नदियाँ, सागर, धरती, अंबर महकेंगे
तुम आओ तो पतझड़ में भी गुल शाखों पर महकेंगे

संदल की ख़ुश्बू का डेरा है अब तेरी जुल्फों में
गर बैठी जूड़े में तेरे तितली के पर महकेंगे

 

अशोक रावत की ग़ज़लें

मान   लेंगे,  आपका जो   भी  इरादा हो
शर्त  क्या हैं  मान्यवर, ये  तो खुलासा हो