Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
यतीन्द्र नाथ राही के गीत

 
रोज़ सवेरे  किरन कान में
कुछ कह कर जाती है
खिड़की के उस पार
डाल पर चिड़िया कुछ गाती है
कलियों के कहकहे गन्ध के
लुटते खील बताशे
किसने माँग सवारी ऋतु की
किसने अंग तराशे?
 

प्रमोद पवैया के गीत

हमें स्वर्ग का मूल्य चुकाकर
नर्कवास को ठुकराना है,
और अदेखी वैतरणी में
सतत डूबना-उतराना है,

व्यापारी को
संत मानकर,
ख़ुश रहना है।

वेद प्रकाश शर्मा 'वेद' के गीत

देखता गुमसुम समय
यह फेसबुक की घुड़चढी है

गीता गुप्ता 'मन' के गीत

कुछ अनबुझे कुछ अनजाने, कुछ लगते जाने पहचाने,
मन को मंदिर कर देते है, कुछ गीतों के बोल सुहाने।