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वसंत जमशेदपुरी के गीत

वसंत जमशेदपुरी के गीत

रूठे हुए सजन निर्मोही
की मनुहार करें।

रिमझिम-रिमझिम बूँदें आईं
आओ प्यार करें।।

गीत- एक

मन के कोरे कागज़ पर,
प्रियवर ने "प्रीत" लिखा।
मुझे लगा उसने कोई,
जीवन संगीत लिखा।।

तन मेरा पतझड़ जैसा था,
छुआ किसी ने चहक गया।
मुस्काकर देखा उसने तो,
जाने कैसे बहक गया।
तपती दोपहरी में मानो
घिर आए काले बादल-
साँसों में वासंती-सा वह
बसा और मन महक गया।
युग-युग से प्यासे मेरे
अधरों पर गीत लिखा।।

रिमझिम-रिमझिम बूँदें बरसीं,
तृषित धरा फिर सरसाई।
खजुराहो की मूरत छम-छम
भीग-भीग कर हरसाई ।
चातक चकित,चकोरा पुलकित-
लगा पपीहा भी गान -
लगे उफनने कूप-सरोवर,
ले ले कर फिर अँगडा़ई।
तब धरती ने बादल को
पाती में मीत लिखा।।

मधुर-मधुर गूँजी शहनाई,
मौसम आज गुलाबी है।
हुईं लाज से बोझिल पलकें,
जैसे नया शराबी है।
पिंजरा तोड़ उडा़ अम्बर में,
यूँ अरमानों का तोता,
कानों में फिर कहा किसी ने
कुछ भी नहीं खराबी है।
सब कुछ हार गया पल में,
फिर मैंने "जीत" लिखा।।

मन के कोरे कागज़ पर
प्रियवर ने "प्रीत" लिखा।

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गीत- दो

रूठे हुए सजन निर्मोही
की मनुहार करें।
रिमझिम-रिमझिम बूँदें आईं
आओ प्यार करें।।

तुम बिन सूना-सूना लगता,
प्रियवर मेरा अँगना।
पत्ते-पत्ते में अब दिखता,
बिम्ब तुम्हारा सजना।
आग लगाए सावन मन में
क्या इज़हार करें।।

तुमसे क्या है नाता मेरा,
क्यों मन मेरा व्याकुल।
मधुर वचन सुनने को मेरे,
श्रवण बहुत हैं आकुल।
आ जाओ जो तन-चौखट पर
तो अभिसार करें।।

सावन ने तन बहुत भिगोया,
फिर भी है यह प्यासा।
मन की क्वाँरी इच्छाओं का,
कैसे करें खुलासा।
तुम आओ तो बैठ सामने
आँखें चार करें।।

रूठे हुए सजन निर्मोही
की मनुहार करें।
रिमझिम-रिमझिम बूँदें आयीं
आओ प्यार करें।।

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गीत- तीन

तुमसे पहली बार जब मिला
मन मेरा मचलने लगा।।

गीत कोई मुरली पर,
प्रीत का सजाया है।
यों लगा कन्हैया ने,
रास फिर रचाया है।
राधिका के नयनों से,
श्याम-रस छलकने लगा।।

बाग में बहारों में,
झूम उठी तरुणाई।
कूक उठी कोयलिया,
गूँज उठी शहनाई।
प्रीति का पखेरू फिर,
नीड़ में चहकने लगा।।

प्रेयसी ने दर्पण में
स्वयं को निहारा है।
पिय-मिलन की आशा में,
रूप को सँवारा है।
सावनी घटाओं से,
प्रेम-रस बरसने लगा।।

तुमसे पहली बार जब मिला,
मन मेरा मचलने लगा।।

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गीत- चार

पता नहीं कब दिनकर आया
कब रजनी ने पाँव पसारे।
प्रियवर तेरे इंतज़ार में
स्वप्न हुए सारे बंजारे।।

सोने जैसी केश-राशि अब
रजत सरीखी लगती है।
जिन पर ग़ज़ल लिखी थी तुमने,
बस पाती में मिलती है।
तुम बिन इन उलझी जुल्फों को,
बोलो कौन सँवारे।।

दिन में चैन नहीं पड़ता है,
नींद कहाँ आती रातों को।
जब-जब बैठूँ तनहाई में ,
याद करूँ तेरी बातों को।
पल-पल पीर बढा़ते मन की-
जो पल हमने साथ गुजारे।।

जिसको फूल गुलाब कहा था,
वह मुरझाई कली हो गई।
जहाँ क़सीदे काढे़ तुमने ,
वीरानी वह गली हो गई।
तुम आओ तो फिर मुस्काएँ
मन के आँगन चाँद सितारे।।

पता नहीं कब दिनकर आया
कब रजनी ने पाँव पसारे।।

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निर्मल प्रवाल

18 May 2025

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रचनाकार परिचय

वसंत जमशेदपुरी

ईमेल : mavasant1960@gmail.com

निवास : जमशेदपुर (झारखण्ड)

मूल नाम- मामचंद अग्रवाल
जन्मतिथि- 08 दिसंबर, 1957
जन्मस्थान- जमशेदपुर (झारखण्ड)
शिक्षा- आई० कॉम
लेखन विधाएँ- हिंदी, राजस्थानी एवं भोजपुरी में दोहा, मुक्तक, गीत, ग़ज़ल, मुक्त छंद, लघुकथा आदि
प्रकाशन- अँजुरी भर गीत (गीत संकलन), ससुराला (ससुराल पर मुक्तक), महकती हुई रात होगी (हिंदी ग़ज़ल संग्रह), मुट्ठी भर वातास (दोहा सतसई) प्रकाशित।
बाल-बाँसुरी, बिहार के बाल साहित्यकार, इंद्रधनुष, दोहा दर्शन, सुकवि पच्चीसी, त्रिवेणी, सूली ऊपर सेज, साक्षात्कार, आइने के सामने, सत्यम काव्य मेखला, काव्य गुंजना, अभिनव कुंडलिया, 55 हिन्दुस्तानी ग़ज़लें, लघुकथा शतक, करो रक्त का दान, हिंदी ग़ज़ल के साक्षी, कुण्डलिया शतक, आचमन, सँवरता बचपन आदि साझा प्रकाशनों में रचनाएँ प्रकाशित।
इनके अलावा देशभर की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
संपादन- आह्वान, जय भारती, कुरजाँ, राजस्थान नवयुक संघ- मानगो की रजत जयंती एवं स्वर्ण जयंती स्मारिका
सम्मान- काव्य शास्त्री, कविवर बच्चन पाठक सलिल सम्मान, दोहा रत्न, मुक्तक शिरोमणि, मुक्तक समस्या-पूर्ति सम्मान, काव्य दिग्गज, दोहा सम्राट, रचनाकार सम्मान, गीत श्री, श्री साहित्य गौरव सम्मान, कलम की सुगंध- झारखंड गौरव सम्मान, रंग श्री सम्मान, भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार सम्मान, सृजन साहित्य सम्मान, उषा देवी मरुधर साहित्य सम्मान, हिंदी साहित्य शिरोमणि आदि सम्मानों से विभूषित।
सहयोग प्रकाशन द्वारा आयोजित 'आओ बचपन सँवारें' बाल कविता लेखन में गीत 'आओ बच्चो भरें सिकोरा' को द्वितीय पुरस्कार।
संपर्क- सीमा वस्त्रालय, राजा मार्केट, डिमना रोड, मानगो बाज़ार, जमशेदपुर- 831012
मोबाइल- 9334805484