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इक़रा अम्बर की ग़ज़लें

इक़रा  अम्बर की ग़ज़लें

परिंदों ने मुझे अपना लिया है
लिपट कर रोई थी मैं इक शजर से

ग़ज़ल- एक 
 
आपको बताना है, आप भूल जाते हैं
रोज़ याद आना है, आप भूल जाते हैं
 
सामने वो आयें जब, पास बैठ जायें तब
कितना मुस्कुराना है, आप भूल जाते हैं
 
लाश अपने ख़्वाबों की, राख शब के फूलों की
सुब्ह दम उठाना है, आप भूल जाते हैं
 
दर्द की नुमाइश से, पत्थरों की बारिश से
आईना बचाना है , आप भूल जाते हैं
 
ख़ुश्क होते लफ़्ज़ों से, सर्द होते लहजे से
आप पर निशाना है, आप भूल जाते हैं
 
धूप के उतरते ही, और चराग़ जलते ही
घर को लौट आना है, आप भूल जाते हैं
 
कौन है रफ़ीक अपना कौन है हरीफ़ अपना
किसको आज़माना है आप भूल जाते हैं
 
आँसुओं की बारिश से और ग़मों की साजिश से
आपको बचाना है, आप भूल जाते हैं
 
बेसबब तग़ाफ़ुल से, ग़ैर पर इनायत से
दिल नहीं जलाना है, आप भूल जाते हैं
 
आप को पता तो है आपसे मुहब्बत है, 
आपसे छुपाना है, आप भूल जाते हैं
 
वक़्त जब कठिन आये, और नज़र न कुछ आये
हौसला बढ़ाना है, आप भूल जाते हैं
 
रोज़ रोज़ ये कहना, वक़्त ही नहीं मिलता
ये भी इक बहाना है, आप भूल जाते हैं
 
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ग़ज़ल- दो 
 
शर्म है बा-उसूल आँखों में
साफ़ दिखती है भूल आँखों में
 
उम्र भर बन्द ही रखूं आँखें
जो हो अक्स-ए-रसूल आँखों में.
 
उसने देखा तो ये हुआ महसूस
ज़िन्दगी है मलूल आँखों में...
 
खिल रहा है ख़िलाफ़ मौसम के..
चुभ रहा है ये फूल आँखों में..
 
जानती हूँ क़रीब आया तो
झोंक देगा वो धूल आँखों में
 
बाद तेरे बहार आयी तो
हमने बोये बबूल आँखों में
 
नींद उसकी नही हुई तो फिर
ख़्वाब आये फ़िज़ूल आँखों में
 
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ग़ज़ल- तीन
 
ख़ुद में कितना डूब गये हो, हैरत है
अपना चेहरा भूल चुके हो, हैरत है
 
तुम कहते थे दर्द तुम्हारा अपना है
फिर भी इतना चीख रहे हो, हैरत है
 
जिसको चाहा था अब उसकी बाहों में
तुम मुझको भी सोच रहे हो, हैरत है
 
इस दिन हमने माज़ी को दफ़नाया था
तुम ये दिन भी भूल गये हो, हैरत है
 
पहले मेरा ऐसा हाल बनाया, फिर
हैरत से भी देख रहे हो, हैरत है
 
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ग़ज़ल- चार 
 
हिज्र में भी विसाल की ख़ुश्बू
उफ़ ये तेरे ख़याल की ख़ुश्बू
 
रंज उसको भी है बिछड़ने का
आ रही  है मलाल की ख़ुश्बू
 
इत्र, लोबान, फूल कुछ भी नही
उसकी ख़ुश्बू कमाल की ख़ुश्बू
 
जानते हैं जवाब, पर चुप हैं
लुत्फ़ है उस सवाल की ख़ुश्बू
 
कौन अपनी रज़ा से आता है
क़ैद करती है जाल की ख़ुश्बू
 
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ग़ज़ल- पाँच
 
जिधर से वो गुजरता है उधर से
नज़र हटती नहीं है रह गुज़र से
 
वो ऐसा गम मुझे देकर गया है
नहीं बचता कोई जिसके असर से
 
नजर से हो गया वो शख़्स ओझल
निकल आई थी जिसके पीछे घर से
 
तकाज़े घर में जब आए नहीं थे
क़दम बाहर नहीं निकले थे घर से
 
परिंदों ने मुझे अपना लिया है
लिपट कर रोई थी मैं इक शजर से
 
वो जब तक लौट कर वापस न आए 
सड़क हटती नहीं मेरी नज़र से
 
वो खुद आया था मेरी दस्तरस में
उसे पाया नहीं खोने के डर से
 
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रचनाकार परिचय

इक़रा अम्बर

ईमेल : iqrambar@gmail.com

निवास : गाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि- 16 फ़रवरी, 1984
जन्मस्थान- भोपाल
शिक्षा- बीसीए  
सम्प्रति- व्यवसाय  
प्रसारण - दूरदर्शन / आकाशवाणी
विशेष- 
संपर्क- सेक्टर सी-105, सी ब्लॉक, शास्त्री नगर, गाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल- 8989671786