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मधु मधुमन की ग़ज़लें

मधु मधुमन की ग़ज़लें

ख़्वाब देखे थे बुलंदी-ए-फ़लक के लेकिन
घर की देहलीज़ तलक पार नहीं कर पाए

ग़ज़ल - एक

ज़िंदगी हम तेरा सिंगार नहीं कर पाए
तेरे दामन को समन-ज़ार नहीं कर पाए

काट दी उम्र ये सारी यूँ ही बेगारी में
एक लम्हे को भी शहकार नहीं कर पाए

ख़्वाब देखे थे बुलंदी-ए-फ़लक के लेकिन
घर की देहलीज़ तलक पार नहीं कर पाए

मंज़िलें हमको भला कैसे मयस्सर होतीं
हम किसी राह को हमवार नहीं कर पाए

सबके आराम की चिंता में कटे सातों दिन
ख़ुद की ख़ातिर कोई इतवार नहीं कर पाए

उम्र भर हमने लहू अपना जलाया फिर भी
दामन-ए-ज़ीस्त को अनवार नहीं कर पाए

हमने औरों के गुलिस्ताँ तो सँवारे लेकिन
अपने ही बाग़ को गुलज़ार नहीं कर पाए

कहने को दिल में हमारे था बहुत कुछ ‘मधुमन’
पर कभी ज़ुर्रत-ए-इज़हार नहीं कर पाए

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ग़ज़ल - दो

कड़वी लगी जो बात सदा हँस के टाल दी
रंजिश कभी हुई भी तो दिल से निकाल दी

रक्खा नहीं हिसाब किसी भी सवाब का
नेकी जो की वो वक़्त के दरिया में डाल दी

ख़ुशियों की तो हमेशा ही क़िल्लत रही मगर
दौलत ग़मों की उसने हमें ला-ज़वाल दी

दुनिया पे अपना ग़म कभी शाया नहीं किया
उट्ठी जो पीर दिल में तो ग़ज़लों में ढाल दी

करनी थी ज़िंदगी की हक़ीक़त हमें बयां
इक मुश्त ख़ाक ले के हवा में उछाल दी

बढ़ने लगा जब अब्र के सीने पे बोझ तो
सारी भड़ास उसने ज़मीं पर निकाल दी

‘मधुमन ‘ हज़ार बार करें शुक्र उसका हम
जिसने ये कायनात हमें बेमिसाल दी

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ग़ज़ल - तीन

ठोकरें दुनिया की गर खाते नहीं
हम ज़माने को समझ पाते नहीं

कहने को तो हैं बहुत अपने मगर
वक़्त-ए-मुश्किल काम सब आते नहीं

किस तरह मुस्तैद रक्खें ख़ुद को हम
हादसे बतला के तो आते नहीं

कोई तो नाराज़गी का है सबब
वरना वो यूँ हम पे झल्लाते नहीं

लोग छिड़केंगे नमक इन पर सो हम
ज़ख़्म अपने सबको दिखलाते नहीं

ख़ुश न हो जब दिल किसी का तो उसे
ख़ुशनुमा मंज़र भी बहलाते नहीं

लोग देते हैं नसीहत सब को जो
ख़ुद अमल में क्यूँ उसे लाते नहीं

सर-ब-कफ़ करते हैं ‘मधुमन’ जो सफ़र
वो किसी तूफ़ाँ से घबराते नहीं

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ग़ज़ल- चार

नदी सागर की जानिब क्यूँ खिंची आती है क्या मालूम
ये तितली क्यूँ गुलों पर आ के मँडराती है क्या मालूम

कली भँवरे से मिल कर क्यूँ सुकूं पाती है क्या मालूम
ये बदली क्यूँ ज़मीं पर प्रेम बरसाती है क्या मालूम

चकोरी चाँद की बस इक झलक पाने की ख़ातिर क्यूँ
नयन से अपने छम-छम अश्क छलकाती है क्या मालूम

वसंती रुत के आते ही हर इक सू बावरी हो कर
ये कोयल किसकी धुन में मग्न हो गाती है क्या मालूम

नहीं होता है जिनसे दूर तक का भी कोई रिश्ता
हमें ये ज़िंदगी क्यूँ उन से मिलवाती है क्या मालूम

मुकम्मल कर नहीं सकती कभी यह ज़िन्दगी जिनको
हमें वो ख़्वाब ही फिर क्यूँ वो दिखलाती है क्या मालूम

ख़ुदा जब याद आता है तो अपने आप ही ‘मधुमन’
नज़र क्यूँ आसमां की सम्त उठ जाती है क्या मालूम

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ग़ज़ल- पाँच

ज़िंदगी तेरे तग़ाफ़ुल ने बड़ा तंग किया
ख़ार तो ख़ार हमें गुल ने बड़ा तंग किया

हमने जोड़ा तो उधर तोड़ दिया फिर उसने
उम्र भर रब्त-ए-तहम्मुल ने बड़ा तंग किया

जाने किस सम्त मुझे खींच लिए जाता है
हाय इस दिल के तखय्युल ने बड़ा तंग किया

एक हारी हुई सूरत ही नज़र आती है
आइने तुझसे तकाबुल ने बड़ा तंग किया

दिल जो उलझा तो सुलझने की न सूरत निकली
हमको तेरे ख़म-ए-काकुल ने बड़ा तंग किया

काफ़िए मिल गए तो बह्र में ये जाँ अटकी
ऐ ग़ज़ल तेरे तग़ज्ज़ुल ने बड़ा तंग किया

एक लम्हा भी नहीं चैन से कटता ‘मधुमन’
तेरी यादों के तसलसुल ने बड़ा तंग किया 

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1 Total Review

वसंत जमशेदपुरी

16 April 2025

हिंदीनिष्ठ गजल अच्छी लगी

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रचनाकार परिचय

मधु मधुमन

ईमेल : mrsmadhuchopra@gmail.com

निवास : पटियाला (पंजाब)

जन्मतिथि- 9/10/1959
जन्मस्थान- बिंदकी , फतेहपुर
शिक्षा-अंग्रेज़ी साहित्य में परास्नातक, बी.एड
संप्रति- रिटायर्ड अध्यापिका
प्रकाशन- कुल ग्यारह एकल संग्रह ( तीन काव्य संग्रह, सात ग़ज़ल संग्रह, एक दीवान )
एवं अनेकों साझा संकलनों व विभिन्न पत्र , पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित ।
प्रसारण- डी डी उर्दू, जालंधर दूरदर्शन व टाइम टी वी, पटियाला ।
आकाशवाणी जालंधर, आकाशवाणी हिसार ,
आकाशवाणी पटियाला व 
आल इंडिया रेडियो उर्दू में प्रसारण

सम्मान/पुरस्कार-
पता- 109, सरूप टॉवर, सुलर रोड
गुरुनानक फ़ाउण्डेशनस्कूल के पास,
पटियाला - 147001, पंजाब 
मोबाइल- 9872222701