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नाज़ुक एहसास की  शायरा : परवीन शाकिर- डॉ० ज़ियाउर रहमान जाफ़री

नाज़ुक एहसास की  शायरा : परवीन शाकिर- डॉ० ज़ियाउर रहमान जाफ़री

कॉलेज के दिनों में ही उन्होंने ख़ुशबू नाम की ग़ज़ल की एक किताब लिखी और इस किताब का यह जादू हुआ कि परवीन शाकिर रातों-रात पूरी दुनिया की चहेती शायरा बन गईं। उनकी शायरी का यह जादू था कि इश्क़ में डूबा और छला हुआ हर नाकाम शख्स उनका क़ायल हो गया। 

बिहार में दरभंगा के पास चंदन पट्टी नाम का एक गाँव है, जहाँ परवीन शाकिर का कुनबा रहता था। भारत-पाक विभाजन के पहले उनके पिता रोज़गार की तलाश में कराची चले गये, जहाँ 24 नवंबर 1953 को परवीन की पैदाइश हुई। ख़ुदा ने उन्हें वह सबकुछ दिया था, जिसके एक लड़की सपने देखती है। देखने में वह निहायात ही ख़ूबसूरत और सलीकेमंद थीं। विदेशों से पढ़ाई हुई। अंग्रेज़ी से एम० फ़िल करने के बाद वो प्रोफ़ेसर बनीं। फिर जल्दी ही अपनी क़ाबिलियत और मेहनत के बल पर पाकिस्तान की सिविल सेवा में शामिल हो गईं। कॉलेज के दिनों में ही उन्होंने ख़ुशबू नाम की ग़ज़ल की एक किताब लिखी और इस किताब का यह जादू हुआ कि परवीन शाकिर रातों-रात पूरी दुनिया की चहेती शायरा बन गईं। उनकी शायरी का यह जादू था कि इश्क़ में डूबा और छला हुआ हर नाकाम शख्स उनका क़ायल हो गया।

ख़ुशबू के बाद सदबर्ग इंकार, ख़ुद कलमी, कफ़े-आईना जैसे कई संग्रह उनके प्रकाशित होते गये पर उन्हें ख़ुशबू से ही इतनी लोकप्रियता मिल चुकी थी कि अगर वह आगे कुछ न भी लिखतीं तब भी परवीन शाकिर की शायराना अज़मत उतना ही बड़ी होती। परवीन शाकिर ने ग़ज़ल को ख़ालिस ग़ज़ल बनाकर पेश किया। प्रेम और वियोग तथा उनके बीच जलती हुई एक नाज़ुक स्त्री की व्यथा-कथा परवीन शाकिर की शायरी की अपनी ज़मीन है। परवीन की यह विशेषता है कि उन्होंने मर्दों की दुनिया में मर्द बनकर नहीं, औरत बनकर अपनी पहचान दर्ज की।

परवीन शाकिर पढ़ी-लिखी और एक बड़े घराने से ताल्लुक़ रखतीं थीं पर सबकुछ होने के बावजूद परवीन का जीवन सुखमय नहीं रहा। उन्हें जिस लड़के से प्यार हुआ, वह उनके समुदाय का नहीं था और उनकी मर्ज़ी के खिलाफ जिस चिकित्सक नसीर अली से शादी हुई, उसमें दम्भ और ग़ुरुर भरा हुआ था। उसकी नज़रों में स्त्री की कोई इज़्ज़त नहीं थी। जहाँ तक हो सका परवीन ने इस रिश्ते को संभालने की कोशिश की। पति परवीन को ऑफिस जाने, शायरी करने और मुशायरे में शिरकत करने को भी गवारा नहीं करता था और अंततः परवीन इतनी प्रताड़ित हुईं कि एक बेटे सैयद मुराद के जन्म के बाद दोनों का दाम्पत्य संबंध विच्छेद के रूप में समाप्त हो गया।

परवीन की पूरी शायरी इसी वियोग में तड़पती हुई एक स्त्री की व्यथा-कथा है। ऐसा नहीं है कि उसमें संयोग के चित्र कम हैं। परवीन शाकिर की ज़्यादातर ज़िन्दगी जुदाई में बीती इसलिए उसमें वियोग का पक्ष अधिक प्रबल है। ख़ुशबू-सी यह अल्हड़ लड़की अपने महबूब का शिद्दत से इंतज़ार करती है। कभी उसकी मुहब्बत तो कभी उसकी बेवफ़ाई और कभी उसके सौंदर्य पर रीझ जाती है और तब वह कहती है-

रुके तो चाँद, चले तो हवाओं जैसा था
वो शख्स धूप में देखूंँ तो छाँव जैसा था

और फिर यह भी कि

हवा महक उठी रंगे-चमन बदलने लगा
वो मेरे सामने जब पैरहन बदलने लगा

पर परवीन को क्या पता था कि वह शख्स, जिसका वह इंतज़ार करती है। एक दिन उसकी ही भावनाओं से खेलेगा, अरमानों को कुचलेगा और ज़िंदगी में जब उसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होगी तो उसे बीहड़ स्थान में तनहा छोड़कर चला जाएगा। परवीन तब कहती हैं-

मैं जिसके इश्क में घर बार छोड़ बैठी थी
यही वो शख्स है, मुझको यकीं नहीं आता

परवीन शाकिर की शायरी में यह बात साफ़ तौर से उभरती है कि वह अपने जीवनसाथी से अलग होने के बाद भी उसे भुला न सकीं।

कमाल शख्स था जिसने मुझे तबाह किया
खिलाफ़ उसके यह दिल हो सका है अब भी नहीं

लेकिन इन सबसे उनके पति को क्या, वह तो आप दूसरी शादी की तैयारी में मसरूफ़ था। परवीन अपने इस दर्द को यूँ बयान करती हैं-

अब उसका फ़न तो किसी और से हुआ मंसूब
मैं किसकी नज़्म अकेले में गुनगुनाऊँगी

फिर धीरे-धीरे ऐसा हुआ कि उन्होंने अकेले जीना सीख लिया-

वक़्ते-रुख़सत आ गया दिल फिर भी घबराया नहीं
उसको हम क्या खोयेंगे जिसको कभी पाया नहीं

असल में परवीन शाकिर की शायरी मैं जो बेकसी, दर्द, तड़प और कलात्मकता है, वह हर पाठक को अपनी ओर खींच लेती है। पाकिस्तान के होने के बावजूद परवीन शाकिर की शायरी हिंदुस्तान में भी उतनी ही लोकप्रिय है। राजकमल और वाणी प्रकाशन समेत एक दर्जन से अधिक प्रकाशकों ने उनकी किताबें हिंदी में प्रकाशित की हैं।

अस्सी-नब्बे के दशक में परवीन की गिनती सबसे ताक़तवर शायरा के रूप में होती थी। आज भी पूरी दुनिया में ऐसी कोई ऐसी शायरा नहीं हुई, जिसने ख़ुद को परवीन से बड़ा माना हो। कहते हैं कि जब वह सिविल सर्विसेज का एग्जाम दे रही थीं तो उसमें एक सवाल उन्हीं की शायरी से पूछा गया था।
पाकिस्तान की आबो-हवा में पलने के बावजूद परवीन का कृष्ण प्रेम भी जग ज़ाहिर है। अपनी शायरी में कभी वह राधा बन जाती हैं तो कभी गोपी बनकर कृष्ण को रिझाती हैं-

आँख जब आईने से हटाई
श्याम सुंदर से राधा मिल आई

आए सपनों में गोकुल के राजा
देने सपनों को आई बधाई

अपनी कविता में भी कृष्ण के प्रति उनकी दीवानगी झलकती है-

तू है राधा अपने कृष्ण की
तेरा कोई भी होता नाम

क्या मोल तू मन का माँगती
बिकना था तुझे बेदाम

इस पूरी कविता में कृष्ण के लिए कहीं मुरलीधर, कहीं श्याम तो कहीं घनश्याम, मोहन, गिरधर, धाम, जोगन आदि पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग हुआ है, जो उनके कृष्ण प्रेम के साथ भाषा ज्ञान को भी दर्शाता है। अपनी ग़ज़लों में भी उन्होंने कृष्ण और राधा को अवलंब के रूप में प्रस्तुत किया है। कुछ शेर आप भी देखें-

यह हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा
यूँ सताने की तो आदत मेरे घनश्याम की थी

या फिर

हवा मेरे जूड़े में फूल सजाती जा
देख रही हूँ अपने मनमोहन की राह

परवीन की जिंदगी के तजुर्बे और क़िस्से भी कम नहीं हैं। कहते हैं कि वाशिंगटन के एक मुशायरे में जब एक भारतीय शायर उन पर फ़िदा हो गये तो परवीन ने उसी मुशायरे में उन्हें देखते हुए पढ़ा था-

किसमें कितना पानी है मछलियाँ समझती हैं
किसको प्यार करना है लड़कियाँ समझती हैं

और फिर यह भी कि

हुस्न को समझने की उम्र चाहिए जानां
दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं

दुनिया भर की यह यह चहेती और क़द्दावर शायरा 26 दिसंबर, 1994 को इस्लामाबाद में तब एक सड़क हादसे का शिकार हो गईं, जब वह तेज़ बारिश में अपनी कार से ऑफिस के लिए रवाना हो रही थीं। पूरी दुनिया इस ख़बर को सुनकर ग़म में डूब गई। यह अलग बात है कि उस वक्त की भुट्टो सरकार ने इस कार दुर्घटना की वजह को जानने की भी कोशिश नहीं की। यह भी जानने का प्रयत्न नहीं हुआ कि उसे तलाक और तकलीफ़ देने वाला और हमेशा नापसंद करने वाला पति नसीर उस हादसे के बाद उसके आसपास कैसे मौजूद था। हाँ, हुकूमत के द्वारा इतना ज़रूर किया गया कि जहाँ यह हादसा हुआ, उसे रोड को 'परवीन शाकिर मार्ग' के नाम से ज़िंदा कर दिया गया। कुछ डाक टिकट उनके नाम पर जारी कर दिए गये। उनके बेटे मुराद को साठ हज़ार का वज़ीफ़ा दे दिया गया। ऐसा परवीन के साथ पहली बार नहीं हुआ। 1981 में जब उन्होंने सिविल सेवा उत्तीर्ण की तो वह विदेश सेवा में जाना चाहती थीं लेकिन उस वक़्त के मार्शल लॉ तानाशाह जनरल ज़ियाउल हक़ ने महिला होने के नाते उन्हें विदेश सेवा में जाने से रोक दिया था और न चाहते हुए भी उन्हें कस्टम डिपार्टमेंट में डायरेक्टर की नौकरी करनी पड़ी।

परवीन का बिहार से गहरा लगाव था। उनका दादिहाल दरभंगा का था तो माँ पटना की थीं। अपनी शायरी के लिए उन्हें पाकिस्तान का सबसे बड़ा अवार्ड अदमजी अवार्ड तथा अमेरिकी सेंटर का सदसाला ग़ालिब अवार्ड भी प्रदान किया गया। उन्हें भारत के प्रधानमंत्री द्वारा फैज़ अहमद फैज़ पुरस्कार से नवाज़ा गया। आज परवीन नहीं हैं लेकिन उनकी क़ब्र पर लिखा हुआ उनका ही यह शेर आज भी ज़िंदगी की हक़ीक़त और उनकी सरबुलंदी बयान कर रहा है-

मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भूला ही देंगे
लफ्ज़ मेरे मेरे होने की गवाही देंगे

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रचनाकार परिचय

ज़ियाउर रहमान जाफ़री

ईमेल :

निवास : नवादा (बिहार )

नाम- डॉ.ज़ियाउर रहमान जाफरी
जन्मतिथि-10 जनवरी 1978
जन्मस्थान- भवानन्दपुर,बेगूसराय, बिहार
शिक्षा- एम.ए. (हिन्दी, अंग्रेजी, शिक्षा शास्त्र)बीएड,पत्रकारिता, पीएचडी हिन्दी, यू जी सी नेट (हिन्दी )
संप्रति- सरकारी सेवा

प्रकाशित कृतियाँ-
1. खुले दरीचे की खुशबू- हिंदी गजल
2. खुशबू छू कर आई है- हिंदी गजल
3.परवीन शाकिर की शायरी- हिंदी आलोचना
4.ग़ज़ल लेखन परंपरा और हिंदी ग़ज़ल का विकास-हिन्दी आलोचना
5. हिंदी गजल :स्वभाव और समीक्षा - हिंदी आलोचना
6. चांद हमारी मुट्ठी में है- हिंदी बाल कविता
7. आखिर चांद चमकता क्यों है- हिंदी बाल कविता
8. मैं आपी से नहीं बोलती -उर्दू बाल कविता
9. चलें चांद पर पिकनिक करने- उर्दू बाल कविता
10. लड़की तब हंसती है- संपादन

पुरस्कार एव सम्मान-
आपदा प्रबंधन पुरस्कार,बिहार शताब्दी सम्मान,यशपाल सम्मान तथा शाद अजीबाबादी साहित्य एवं समाज सेवा सम्मान समेत पचास से अधिक सम्मान एवं पुरस्कार

संपादन एवं पत्रकारिता-
संवादिया( बाल पत्रिका)जागृति, निगाह, चल पढ़ कुछ बन, साहित्य प्रभा आदि में सहयोगी संपादक एवं दैनिक हिंदुस्तान समेत कई पत्र -पत्रिकाओं में पत्रकारिता। 

विशेष-
. आकाशवाणी पटना दरभंगा भागलपुर, डीडी बिहार,ई टीवी बिहार आदि से नियमित प्रसारण
. बाल कविता नासिक के पाठ्यक्रम में शामिल
. पीएचडी उपाधि हेतु कई शोधार्थियों द्वारा ग़ज़ल साहित्य पर शोध
. देश भर के कई सेमिनारों और मुशायरों में शिरकत

पता-
C/O-एस. एम इफ़्तेख़ार काबरी
(पेशकार )
शरीफ कॉलोनी,बड़ी दरगाह, नियर बीएसएनएल टॉवर,पार नवादा
ज़िला -नवादा(बिहार) 805112
मोबाइल-6205254255
मोबाइल -9934847941