Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
इक्कीसवीं सदी की ग़ज़लें और भारतीय आदर्श- डॉ० सीमा विजयवर्गीय

वेदों से लेकर आज तक की परंपरा बहुत समृद्धशाली है, आदर्शमयी है, अनुकरणीय है, वसुधैव कुटुम्बकम का पाठ पढ़ाने वाली है, ख़ुद जीओ-जीने दो के आदर्श पर चलने वाली है, जो आज भी पूर्णतः सामयिक है। इतनी उदारमयी संस्कृति के पुरोधाओं को शत-शत नमन करते हैं। चूँकि साहित्य समाज का दर्पण है इसलिए शायरी में भी भारतीय संस्कृति, भारतीय आदर्शों का बहुत ख़ूबसूरती के साथ प्रयोग हुआ है।

व्यंग्य क्षणिकाओं के मास्टर-ब्लास्टर : डॉ. परमेश्वर गोयल उर्फ़ काका बिहारी

बहुमुखी प्रतिमा के धनी डॉ० परमेश्वर गोपल उर्फ़ काका बिहारी मूलतः हास्य-व्यंग्य के कवि हैं। व्यंग्य-क्षणिकाओं के माध्यम से साहित्य जगत में आपने अपनी विशिष्ट पहचान बनायी है। आपके द्वारा क्षणिकाओं पर चक्रधर शुक्ल द्वारा विस्तार से की गई चर्चा पढ़िए।  

कभी अपने भी दाँत गिनकर देखे इंसान- राकेश अचल

मैं जिन दाँतों की बात कर रहा हूँ वे बहुउदेशीय होते है। दुनिया बनाने वाले ने दाँत बनाते समय ही उनका काम भी तय कर दिया था शायद इसीलिए आप ये जानकर हैरान होंगे कि दाँत का काम सिर्फ किसी चीज को पकड़ना, काटना, फाड़ना और चबाना ही नहीं है। जानवर इन दाँतों से कुतरने खोदने, सँवारने और लड़ने का काम लेते हैं। दाँत, आहार को काट-पीसकर गले से उतरने योग्य बनाते हैं। खुद ईश्वर ने एक अवतार में अपने दाँतों से सकल ब्रम्हांड को ऊपर उठा लिया था।

जॉन एलिया: अदब के आईने में अधीर मन का शायर- अखिलेश कुमार मौर्य

अक्सर प्रेमी जब प्रेम में होता है तो वह अपने को अमर मान लेता है। जॉन एलिया प्रेम करते हुए सच को स्वीकार करते हैं और उन्हें पता है एक दिन सबको मरना ही है। ऐसी ही शायरी जॉन एलिया को परंपरा से अलग बनाती है। एक शेर देखिए–

कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं
क्या  सितम   है  कि  हम  लोग   मर  जाएँगे