Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
समकालीन कवियों की आलोचना- डॉ० राकेश शुक्ल

आठ कवि-समीक्षकों की एक-एक समीक्षा कृति पर संक्षिप्त टिप्पणी

किसानों का दर्द बयां करती समकालीन हिन्दी ग़ज़ल- अविनाश भारती

हमने चाँद तक की यात्रा पूरी कर ली है, अतंरिक्ष हमारी मुठ्ठी में है और अब तो सूरज पर भी जाने की तैयारी है। लेकिन तमाम अंतरिक्ष यात्रियों, ख़्याति प्राप्त खिलाड़ियों, आधुनिक भारत-भाग्य विधाताओं आदि तथाकथित अभिजात वर्ग का भरण-पोषण करने वाला किसान आज भी अपनी किस्मत पर आँसू बहाने को मज़बूर है।

आप कब तक हँसेंगे कॉमरेड- डॉ० नुसरत मेहदी

यह कुछ चयनित साहित्यकारों का सम्मान समारोह था। मैं श्रोताओं में प्रथम पंक्ति में बैठी मंच की गतिविधियों को ध्यान से देख रही थी। धीर गंभीर साहित्यकार कुछ निर्विकार से मंच पर बैठे थे। उनके चेहरों पर न ख़ुशी न ग़म वाले भाव थे। निश्चित ही साहित्य जगत के बड़े नाम थे और वरिष्ठता के इस पड़ाव पर भावनाओं की अभिव्यक्ति को वश में करना आ जाता होगा, मैने सोचा। किन्तु थोड़ी ही देर में मुझे अनुभव हुआ कि मंचासीन साहित्यकारों में कुछ की भाव भंगिमा सामान्य से कुछ ज़्यादा ही गंभीर है उनके चेहरे इतने कसे हुए थे कि मांस पेशियाँ तक दिखाई दे रही थीं।