हिंदी कथा साहित्य : पारंपरिक पीठ आधुनिक ‘गुल गपाड़ा’- डॉ॰ सुनीता
साहित्य में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण एवं अस्तित्वगत नैरेशन में मोहन राकेश और कमलेश्वर सहज याद आते हैं। रचनात्मक पात्रों के द्वारा आंतरिक- वाह्य जीवन के नैतिक दुविधाएँ प्रत्यक्ष हैं। समकालीन हिंदी साहित्य में राजनीतिक, सामाजिक भ्रष्टाचार, सांप्रदायिक गतिविधियों की आलोचना हुई है। हरिशंकर परसाई और मनोहर श्याम जोशी प्रमाण हैं। अगर ये दोनों वर्तमान में होते तो समाज और मशीनी राजनीति को बेखौफ़ बखूबी दर्ज करते।