Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
नीलम तोलानी 'नीर' के लघु-उपन्यास 'करवाचौथ' की तीसरी कड़ी

डूबते सूर्य की किरणें सुनहरी रेत पर परावर्तित होकर मरीचिका जैसा आभास दे रही थी.. देखते देखते कबीर सोचने लगा.. पिछले तीन दिन से मेरी हालत भी कुछ कुछ ऐसी ही हो गई है। कभी वह बहुत पास होती है और मैं उसे बाहर हर जगह देख रहा होता हूँ...जब उसे मरीचिका जान उसके अस्तित्व को नकारने लगता हूँ ,संभलने लगता हूँ, तो फिर अचानक से उसकी झलक... वहीं प्यास जगा जाती है। पता नहीं आगे क्या हो? मरीचिका या हक़ीक़त?

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्ण-विराम से पहले' की दूसरी कड़ी

वहाँ उसे समीर की दो डायरियाँ मिलीं। समीर अपनी युवावस्था से ही डायरी लिखते थे। शिखा ने प्रखर को संक्षिप्त में दोनों डायरियों के बारे में बताया कि पहली डायरी समीर के बचपन और युवावस्था की बहुत सारी घटनाओं को सँजोये हुए है। दूसरी डायरी को पढ़कर लगता है कि समीर ने शादी के बाद इस डायरी को लिखना शुरू किया था। कब-कहाँ समीर ने शिखा के लिए क्या-क्या महसूस किया, शुरू के पन्नों में लिखा हुआ है।

नीलम तोलानी 'नीर' के लघु-उपन्यास 'करवाचौथ' की दूसरी कड़ी

अगले बीस मिनट तक कबीर अपनी कार में बैठा स्टीयरिंग व्हील को पकड़े आज की घटना का बार-बार विजुलाइजेशन करता रहा। और अपनी बेवकूफीओं को कोसता रहा। पता नहीं कौन सा काला जादू आता है इस बाला को... हर बार इसी लड़की के सामने ऐसा क्यों होता है? इसके सामने ही ऐसा लगता है दिमाग कुछ समय के लिए शरीर से बाहर निकलकर ब्रेक पर चला गया है। 

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्ण-विराम से पहले' की पहली कड़ी

तुम्हारे दूर जाने के बाद मैं बहुत दिनों तक कोशिशें करती रही समीर से जुड़ने की। प्रखर तुम समझ सकते हो जुड़ने की कोशिश करने में हम कितनी लड़ाई ख़ुद से करते हैं और जब समीर के साथ काफ़ी समय गुज़ारने के बाद जुड़ी तो फिर उसके बिना कुछ भी नहीं सोच पाई। यह प्रेम बहुत अजीब होता है प्रखर! इसके मायने उम्र के साथ-साथ बदलते रहते हैं। और हम अपनी ज़रूरतों के हिसाब से प्रेम को परिभाषित करते चलते हैं।