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प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की तेरहवीं कड़ी

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की तेरहवीं कड़ी

शिखा के बड़े भाई ने अपने प्रिय मित्र समीर के साथ उसकी शादी का प्रस्ताव इस बीच माँ के सामने रख दिया। माँ ने भी समीर को देखा हुआ था। उन्होंने भी समीर और शिखा के रिश्ते पर मोहर लगा दी। शिखा से किसी ने भी कुछ पूछने की ज़रूरत नहीं समझी। उस समय बेटियों से पूछता ही कौन था! वह तो गाय के जैसे जिस खूँटे से बाँधों, बँध जाती थी।

उस रोज़ प्रखर ने भी बहुत कुछ साझा किया था। कैसे स्कूल ख़त्म होने के बाद जब रिज़ल्ट आया, सारे शहर में उसकी सेकंड पोजीशन थी। उसे शिखा का नाम पता था। उसने न जाने कितनी बार पूरी रिज़ल्ट लिस्ट में शिखा के नाम को कई-कई बार खोजा, कहीं शिखा का नाम भी मेरिट में हो। बार-बार भगवान को याद करता और लिस्ट देखता।

उसका नाम न पाकर बहुत उदास हो गया था उस रोज़ वो। उसकी ख़ुद के मेरिट में आने की ख़ुशी भी काफ़ूर हो गई थी। जबकि वह जानता था कि शिखा से मिलकर बधाई भी नहीं दे पाएगा। बस उसका नन्हा-सा दिल दोनों के नामों को लिस्ट में एक साथ देखकर बहुत ख़ुश होना चाहता था। कैसे उन दिनों अपने सपनों में भी वह शिखा को साथ-साथ लिए-लिए घूमता था। सब बताया था प्रखर ने।

शिखा ज्यों-ज्यों उसकी बातों को सुन रही थी, भाव-विभोर होती जा रही थी। तब प्रखर बोला- "अब कह सकती हो, मैं सच में पागल हूँ तुम्हारे लिए। इतना पागल कि तुम्हारे लिए बहुत कुछ करने का सोचता हूँ। अगर भविष्य में हम साथ होंगे तो मेरे जितना तुम्हें कोई प्यार नहीं कर सकता शिखा।"
उस रोज़ प्रखर शिखा को न जाने कब तक एकटक देखता रहा था। उसकी मासूमियत पर शिखा भी ख़ुद को बोलने से रोक नहीं पाई थी, "ओह! प्रखर कितने प्यारे हो तुम, बिलकुल नादान, निश्चल। जो तुम्हारा दिल महसूस करता गया, तुम उसी सुख के पीछे-पीछे होते गये। पर मुझे तो उस वक़्त कुछ भी ऐसा अहसास नहीं हुआ। मैं तो साइकिल रोकने वाले वाक़ये के बाद भाइयों से यह कहकर निश्चिंत हो गई थी कि अब कुछ भी ऐसा नहीं होगा। पर तुम तो..."
तब प्रखर उससे बोला था, "हाँ! मैं तो रात-दिन तुम्हारे बारे में ही सोचता था शिखा, बारहवीं के इम्तिहान के बाद मेरी पूरे दो महीने की छुट्टी इसी बैचेनी में गुज़री कि तुम पढ़ने के लिए किस कॉलेज में जाओगी। मैं तुम्हें देख भी पाऊँगा या नहीं। पर कॉलेज के पहले दिन ही जब तुमको कॉलेज के प्रवेश-द्वार पर देखा, मेराआँखें और दिल फिर से भगवान से प्रार्थना करने लग गये थे कि हे भगवान शिखा को मेरे सेक्शन में कर देना। जानती हो शिखा, पहले दिन जब क्लास में तुम्हें देखा तो ख़ुशी से पागल हो उठा था। तभी बदहवास-सा एकटक देखता रहा था तुमको। मुझे माफ़ कर देना इस हरकत के लिए। मुझे लगता था, जैसे ही तुम पर से मेरी निगाह हटेगी, तुम कहीं खो जाओगी। दो महीने की गर्मियों की छुट्टियों में तुम्हें न देख पाने की कमी ने तुम्हारे लिए अथाह प्यार महसूस करवा दिया था। अक्सर कमी हमको बहुत कुछ महसूस करवा देती है शिखा!"

प्रखर की बातें शिखा को कहीं से भी झूठ नहीं लग रही थीं। सच में गुज़रा हुआ समय उन सब बातों की गवाही दे रहा था। प्रखर की बातें सुनकर उसने कहा था-
"प्रखर! इतना प्यार करते हो तुम मुझे! जिन बातों को मैं कभी सोच भी नहीं पायी। तुम मुझे अपने साथ लेकर कहाँ से कहाँ तक आ गये। अब क्या सोचा है तुमने?" प्रखर की बातें सुनने के बाद शिखा उसके प्रेम के साथ बहने लगी थी। उसे अपने बहुत मज़बूत होने पर बहुत गुमान था कि वह कभी भी किसी की बातों पर यूँ ही विश्वास नहीं करेगी। पर उस दिन के बाद उसे न जाने क्या हो गया था। प्रखर की कही हुई बातें सीधी-सीधी उसके दिल तक पहुँचकर दिमाग़ पर छाने लगी थी।
"क्या करूँगा? अपनी पढ़ाई और तुम्हें प्यार करने के अलावा कुछ और सोच ही नहीं पाया अभी तक। आगे भी यही करूँगा। सिविल सर्विसेज में जाना चाहता हूँ। अगर तुम मुझे अपनाओगी तो तुमसे ही शादी करूँगा। बहुत खुशियाँ देना चाहताहूँ, तुम्हें शिखा! मेरे साथ रहोगी न?"
"हाँ प्रखर...।"

प्रखर के साथ होने पर शिखा का दिमाग़ काम करना बंद कर देता था। प्रखर जैसे-जैसे उसे अपने साथ-साथ बहाकर ले जा रहा था, वह बहती चली जा रही थी। दोनों कॉलेज की लाइब्रेरी में घंटों बैठने लगे थे। घंटों एक-दूसरे के साथ पढ़ते और एक दूसरे को पत्र लिखकर अपनी भावनाओं का आदान-प्रदान करते।
शिखा तो पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद पी०एचडी करके टीचिंग में जाना चाहती थी। जैसे ही दोनों का ग्रेजुएशन हुआ, प्रखर ने सिविल सर्विसेज का एग्जाम क्लियर कर लिया और वह आगे की पढ़ाई और ट्रेनिंग के लिए चला गया पर शिखा के ग्रेजुएशन करते ही पापा के अचानक गुज़र जाने से उसकी सब प्लानिंग फेल हो गई। उसकी पी०एचडी की सोच, डिब्बे में बंद रह गई। उसने बी० एड करके टीचिंग करना शुरू कर दिया।

शिखा के बड़े भाई ने अपने प्रिय मित्र समीर के साथ उसकी शादी का प्रस्ताव इस बीच माँ के सामने रख दिया। माँ ने भी समीर को देखा हुआ था। उन्होंने भी समीर और शिखा के रिश्ते पर मोहर लगा दी। शिखा से किसी ने भी कुछ पूछने की ज़रूरत नहीं समझी। उस समय बेटियों से पूछता ही कौन था! वह तो गाय के जैसे जिस खूँटे से बाँधों, बँध जाती थी।

घर में बहुत रुपया-पैसा नहीं था। इसलिए समीर के साथ उसका विवाह बहुत सादगी से हुआ था। जो माँ और भाई ने खुशी-खुशी किया उसको शिखा ने स्वीकार कर अपनी ज़िंदगी शुरू की। विवाह के बाद शिखा के अंदर प्रखर का प्यार एक कसक बनकर बैठ गया। हर जगह हर बात में वह प्रखर को खोजती थी। शायद यही वजह थी, शिखा अपने वैवाहिक जीवन के शुरुआत के दिनों में कभी संतुष्टि नहीं खोज पाई।

आज प्रखर के घर से लौटने के बाद न जाने कब तक शिखा अतीत के पन्ने उलट-पलट करती रही। फिर न जाने कब बातों को दोहराते और याद करते हुए उसको नींद आ गई। दूसरी ओर शिखा से मिलने के बाद प्रखर की भी सारी रात जागते कटी। कितने ख़याल शिखा के जाने के बाद अतीत के दरवाज़े खोलकर प्रखर के सामने खड़े हो गये। शिखा और प्रखर के बीच ग्रेजुएशन के बाद कुछ समय तक संपर्क रहा। जैसे ही शिखा के बड़े भाई ने उसकी शादी की भविष्यवाणी की। प्रखर के दिमाग़ में शिखा का आखिरी फोन और उससे हुई बातें सचित्र चलने लगीं-
"प्रखर! भैया ने मेरी शादी अपने सबसे प्रिय मित्र के साथ तय कर दी है। उन्हें लगता है कि समीर मुझे बेहद ख़ुश रख पाएँगे क्योंकि वो भैया के बचपन के मित्र हैं। यह रिश्ता समीर की माँ ने भेजा था क्योंकि उन्होंने मुझे बचपन से देखा है। अपने बड़े बेटे के लिए उन्हें मेरा ही रिश्ता चाहिए। उन्होंने माँ को भी मना लिया है प्रखर, पर मैं क्या चाहती हूँ किसी ने नहीं पूछा। तुम शीघ्र ही आकर मेरे से शादी नहीं कर सकते प्रखर? मैं कैसे रहूँगी तुम्हारे बिना? बताओ न!"

बोलते-बोलते जब शिखा रोने लगी तब उसकी भी सिसकियाँ बँध गई थीं। प्रखर अपनी असमर्थता को बहुत अच्छे से जानता था। तभी बोला- "मेरी ट्रेनिंग चल रही है शिखा, अभी कैसे आऊँगा? किसी तरह यह सब एक साल के लिए रुकवा दो। मैं जितनी जल्दी होगा, आने की कोशिश करता हूँ।"
"घर के सभी लोग नहीं मानेंगे। समीर के पापा की तबीयत ख़राब रहती है। वह अपने बेटे के सिर पर सेहरा देखना चाहते हैं। मैंने भैया को बोला था पर वो कुछ भी नहीं सुनना चाहते। उन्हें तो लगता है यह रिश्ता घर चल के आया है तो ठुकराना बेबकूफी होगी।"
"हिम्मत करो और बोल दो कि तुम मुझे प्यार करती हो। तुम कहो तो मैं बात करूँ।"
"नहीं प्रखर, यह लोग अपना मानस बना चुके हैं। समीर हमारी जाति के भी हैं। इन्हें कुछ समझ नहीं आएगा। तुम अगर आ जाते तो हम कोर्ट मेरीज कर लेते।"
"मैं कैसे आ पाऊँगा अभी।" बोलकर उसकी आवाज़ भी भर्रा गयी थी।

उस रोज़ प्रखर को एक बार फिर शिखा के वापस खो जाने के दर्द ने घेर लिया था। उसे हमेशा ही डर लगा रहता था कि कभी शिखा उससे दूर न हो जाए पर निमित्त को शायद यही मंजूर था। उसके बाद प्रखर ने कभी शिखा को फोन नहीं किया और शिखा ने प्रखर को। दोनों ने ही जीवन से हर तरह का समझौता करने की कोशिश की।

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रचनाकार परिचय

प्रगति गुप्ता

ईमेल : pragatigupta.raj@gmail.com

निवास : जोधपुर (राजस्थान)

जन्मतिथि- 23 सितंबर, 1966
जन्मस्थान- आगरा (उत्तरप्रदेश)
शिक्षा- एम०ए० (समाजशास्त्र, गोल्ड मैडलिस्ट)
सम्प्रति- लेखन व सोशल-मेडिकल क्षेत्र में काउंसिलिंग
प्रकाशन- तुम कहते तो, शब्दों से परे एवं सहेजे हुए अहसास (काव्य-संग्रह), मिलना मुझसे (ई-काव्य संग्रह), सुलझे..अनसुलझे!!! (प्रेरक संस्मरणात्मक लेख), माँ! तुम्हारे लिए (ई-लघु काव्य संग्रह), पूर्ण-विराम से पहले (उपन्यास), भेद (लघु उपन्यास), स्टेप्लड पर्चियाँ, कुछ यूँ हुआ उस रात (कहानी संग्रह), इन्द्रधनुष (बाल कथा संग्रह)
हंस, आजकल, वर्तमान साहित्य, भवंस नवनीत, वागर्थ, छत्तीसगढ़ मित्र, गगनांचल, मधुमती, साहित्य भारती, राजभाषा विस्तारिका, नई धारा, पाखी, अक्षरा, कथाबिम्ब, लमही, कथा-क्रम, निकट, अणुव्रत, समावर्तन, साहित्य-परिक्रमा, किस्सा, सरस्वती सुमन, राग भोपाली, हिन्दुस्तानी ज़ुबान, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण, दैनिक ट्रिब्यून, नई दुनिया, दैनिक नवज्योति, पुरवाई, अभिनव इमरोज, हिन्दी जगत, पंकज, प्रेरणा, भारत दर्शन सहित देश-विदेश की लगभग 350 से अधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन और अनुवाद।
कविता अनवरत, कविता अभिराम, शब्दों का कारवां, समकालीन सृजन, सूर्य नगरी की रश्मियाँ, स्वप्नों की सेल्फ़ी, कथा दर्पण रत्न, छाया प्रतिछाया, सतरंगी बूंदें, संधि के पटल पर आदि साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।
प्रसारण-
जयपुर दूरदर्शन से चर्चा व आकाशवाणी से सृजन का नियमित प्रसारण
सामाजिक और साहित्यिक क्षेत्र में कविता का स्थान विषय पर टी.वी. पर एकल साक्षात्कार
संपादन- अनुभूतियाँ प्रेम की (संपादित काव्य संकलन)
विशेष-
राजस्थान सिन्धी अकादमी द्वारा कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' का अनुवाद।
कहानियों और कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' पर शोध।
प्रतिष्ठित कथा प्रधान साहित्यिक पत्रिका 'कथाबिम्ब' के संपादक मण्डल में क्षेत्रवार संपादक
कहानियों व कविताओं का अन्य भाषाओं में अनुवाद
हस्ताक्षर वेब पत्रिका के लिए दो वर्ष तक नियमित 'ज़रा सोचिए' स्तंभ
सम्मान/पुरस्कार-
हिंदी लेखिका संघ, मध्यप्रदेश (भोपाल) द्वारा 'तुम कहते तो' काव्य संग्रह पर 'श्री वासुदेव प्रसाद खरे स्मृति पुरस्कार' (2018)
'अदबी उड़ान काव्य साहित्य पुरस्कार' काव्य संग्रह तुम कहते तो और शब्दों से परे पुरस्कृत व सम्मानित (2018)
साहित्य समर्था द्वारा आयोजित अखिल भारतीय 'डॉ० कुमुद टिक्कू कहानी प्रतियोगिता' श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार (2019 और 2020)
विद्योत्तमा फाउंडेशन, नाशिक द्वारा 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' कहानी संग्रह 'विद्योत्तमा साहित्य सम्राट सम्मान' से पुरस्कृत (2021)
श्री कमल चंद्र वर्मा स्मृति राष्ट्रीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता प्रथम पुरस्कार 2021
कथा समवेत पत्रिका द्वारा आयोजित 'माँ धनपति देवी स्मृति कथा साहित्य सम्मान' 2021, विशेष सम्मान व पुरस्कार
लघु उपन्यास भेद पुरस्कृत मातृभारती 2020
विश्व हिंदी साहित्य परिषद द्वारा 'साहित्य सारंग' से सम्मानित (2018)
अखिल भारतीय माथुर वैश्य महासभा के राष्ट्रीय सम्मेलन में 'समाज रत्न' से सम्मानित (2018)
डॉ० प्रतिमा अस्थाना साहित्य सम्मान, आगरा (2022)
कथा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थान द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान 'रघुनंदन त्रिवेदी कथा सम्मान' स्टेपल्ड पर्चियांँ संग्रह को- 2023
पंडित जवाहरलाल नेहरु बाल साहित्य अकादमी, राजस्थान द्वारा 'इंद्रधनुष' बाल कथा संग्रह को 'बाल साहित्य सृजक' सम्मान 2023 
जयपुर साहित्य संगीति द्वारा 'कुछ यूँ हुआ उस रात' को विशिष्ट श्रेष्ठ कृति सम्मान 2023
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