Ira Web Patrika
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प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की चौदहवीं कड़ी

कविता के अंत तक पहुँचते-पहुँचते दोनों एक-दूसरे का हाथ थामकर न जाने कब तक अपने रिश्ते को महसूस करते रहे। प्रखर ने शिखा की लिखी हुई कविता वाले पन्ने को तह करके अपनी शर्ट की पॉकेट में रख लिया। शिखा को अपनी कविता और प्रखर का दिल एक-दूसरे के बहुत पास महसूस हुए। दोनों एक-दूसरे की कही हुई हर बात को महसूस करके ख़ुद में सहेजते जा रहे थे।

डॉ० उपमा शर्मा के उपन्यास 'अनहद' की पहली कड़ी

मन के कोकून से यादों का कीड़ा बाहर निकलने को फिर कुलबुलाया। इस बार देवयानी ने उन्हें सुलाने की कोई कोशिश नहीं की। यादों की ठंडी-मीठी बयार चुपके-से बह चली थी। वो देव की यादों की सुगंध में शनै:-शनै: डूबने लगी।

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की तेरहवीं कड़ी

शिखा के बड़े भाई ने अपने प्रिय मित्र समीर के साथ उसकी शादी का प्रस्ताव इस बीच माँ के सामने रख दिया। माँ ने भी समीर को देखा हुआ था। उन्होंने भी समीर और शिखा के रिश्ते पर मोहर लगा दी। शिखा से किसी ने भी कुछ पूछने की ज़रूरत नहीं समझी। उस समय बेटियों से पूछता ही कौन था! वह तो गाय के जैसे जिस खूँटे से बाँधों, बँध जाती थी।

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की बारहवीं कड़ी

शिखा की बातें सुनकर प्रखर उस रोज़ कितनी ज़ोर से हँसा था। उसकी निश्चल और मासूम हँसी को सुनकर शिखा में घबराहट व उत्सुकता एक साथ जाग्रत हो उठी थी।