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प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की ग्यारहवीं कड़ी

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की ग्यारहवीं कड़ी

आज शिखा को समीर से जुड़े अनूठे प्यार का अनुभव हुआ। उसे लगा कि काश यह सब समीर ने थोड़ा-सा भी उसे महसूस करवाया होता तो ज़िंदगी और भी ख़ूबसूरत हो जाती।

उस रोज़ प्रखर ने जब कविता लिखा हुआ काग़ज़ शिखा को दिया था, तब अनायास उसके हाथ ने शिखा के हाथों को पहली बार स्पर्श किया। शिखा के हाथों के कंपन से मानो काग़ज़ पर लिखी कविता भी तरंगित हो उठी थी, दोनों को एक साथ महसूस हुआ। शिखा को बारिश की पहली बूँदों-सा प्रखर का स्पर्श महसूस हुआ था। जिसकी छुअन आज भी उसके साथ थी। उस पल में शिखा का दिल सिर्फ़ बहे जा रहा था और दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया था। शायद ऐसा ही कुछ प्रखर के साथ भी हुआ था। तभी तो उन दोनों के बीच पसरी ख़ामोशी लाइब्रेरी में पसरी ख़ामोशी से ज़्यादा मुखर हो उठी थी। जब प्रखर ने 'रूह' कविता को पढ़ा था।

उस रोज़ वो दबे पाँव शिखा के दिल के उसी कोने में कविता के भावों-सा ही जाकर बैठ गया, जिसको प्रखर ने आरामगाह का नाम दिया था। न जाने कितनी देर तक दोनों चुपचाप एक-दूसरे को महसूस करते रहे। सिर्फ़ दोनों का साथ होना अंदर-बाहर सब तरफ प्रेम का बिखरना था। शिखा ने उस रोज़ लाइब्रेरी से उठते वक़्त प्रखर से बहुत धीमी आवाज़ में कहा था- "कितना गहरा लिखते हो प्रखर, कि सीधे-सीधे रूह में उतरते हो। सिर्फ़ मेरे लिए तुम्हारा लिखना मुझे बहुत स्पेशल महसूस करवाता है। तुम्हारे कहे और लिखे हुए के साथ-साथ मैं तुममें खो रही हूँ प्रखर। तुम्हारा हर शब्द अब मुझे छूने लगा है। मेरे जीवन के मायने बदलने लगे हैं। बहुत प्यारे हो तुम। तुमसे ही जीना सीख रही हूँ।"

"पागल हूँ तुम्हारे लिए। हमेशा भगवान से तुमको ख़ुद के लिए माँगता हूँ। तुम भी बहुत प्यारी हो शिखा! किशोर अवस्था में तुम्हारी जिस कमी को मैंने महसूस किया है, उसने मेरी ज़िंदगी के मायने बदल दिए हैं। उस समय भी बस तुम्हें देखने की चाहत इतनी तीव्र होती थी कि मदहोश-सा तुम्हारे स्कूल तक पहुँच जाता था। मेरे पास तुम्हारे और पढ़ाई के बारे में सोचने के अलावा कोई काम नहीं था। वादा करो शिखा, बस हमेशा मेरे साथ रहना।"

प्रखर की बातों को सुन-सुनकर तो शिखा को भी लगने लगा था कि उन दोनों का रिश्ता जन्मों का है। शिखा को खोया हुआ देखकर प्रखर मुस्कुरा दिया था। प्रखर के लिए शिखा के भीतर झाँकना कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी। शिखा के न होने पर भी उसने अक्सर उससे घंटों बातें की थी। आज भी समीर की उपस्थिति में दोनों कहाँ से कहाँ पहुँच गये थे।

तभी समीर की कही हुई बात ने शिखा और प्रखर को वापस वर्तमान में लाकर खड़ा कर दिया- "अब समझा आपने आगरा शहर ही रुकने को क्यों चुना। आप तो लिखते भी है प्रखर! पढ़ने का शौक़ मुझे भी ख़ूब रहा है पर कभी बहुत ज़्यादा लिख नहीं पाया। हाँ, डायरी ज़रूर लिखता रहा। मुझे बोलने की भी आदत बहुत ज़्यादा नहीं है। जो भी महसूस होता है, डायरी में लिख लेता हूँ। पर हाँ, तुम्हारी कविताएँ ज़रूर सुनूँगा। मैं श्रोता बहुत अच्छा हूँ। तुमसे मिलकर बहुत अच्छा लग रहा है।"

समीर की बातें सुनकर प्रखर को लगा शायद कुछ है, जो समीर कहना चाहता है।
"समीर, कुछ खुलासा करना चाहें तो करिए न, मुझे बहुत अच्छा लगेगा।"
प्रखर की बात को सुनकर समीर बोला- "अब तो मिलना होता ही रहेगा। ख़ूब बातें होंगी। अभी तो बस अपनी बातें बताइए। तुमने तो अकेले इतना कुछ मैनेज किया है। मैं भी कुछ न कुछ समय-समय पर बताता ही रहा हूँ। अभी तुमसे और भी बहुत कुछ सुनना चाहता हूँ।"

प्रखर के बहुत आग्रह करने पर समीर बोला- "प्रखर! कहाँ से शुरू करूँ। तुम ही बताओ। मैं ख़ुद बहुत कुछ बताने में असमर्थ रहता हूँ। यह काम मैंने शिखा पर छोड़ दिया है। शिखा बहुत अच्छे से घटनाओं को सुनाती है। बस उसको मौक़ा मिलना चाहिए। अभी तो शायद तुम्हारी बातें ही इतनी तल्लीनता से सुन रही है कि उसे बोलने का मौक़ा ही नहीं मिल रहा। श्रोताओं को इसकी बातें सचित्र चलती हुई प्रतीत होती हैं। हमेशा ही स्कूल में यह ज़िम्मेदारी शिखा को ही सौंपी गई। शायद शिखा की इस ख़ूबी की वजह से मैंने कभी पहल करने का नहीं सोचा। तुम इसे मेरा आलस भी कह सकते हो।"

आज समीर के मुँह से अपनी इतनी तारीफ़ सुनकर शिखा को आश्चर्य हुआ। नहीं तो समीर की चुप्पी ने शिखा ने हमेशा ही कयास लगवाए थे। पर प्रखर के सामने समीर को खुलते हुए देखकर शिखा को बहुत अच्छा लग रहा था। समीर भी प्रखर से बात करते में कब आप से तुम पर आ गए, शिखा के लिए बहुत बड़ी बात थी। वरना समीर किसी के भी साथ इतनी जल्दी नहीं खुलते थे।

समीर ने अपनी बात आगे जारी रखते हुए बताया- प्रखर! शिखा मेरी माँ की सबसे प्रिय बहू थी। यह बात इसे नहीं पता क्योंकि माँ हमेशा कहा करती थी, 'बहुत ज़्यादा तारीफ़ करने से नज़र लग जाती है।' विवाह के बाद शिखा ने घर की सभी ज़िम्मेदारियों को बा-ख़ूबी निभाया। हम दोनों की पोस्टिंग जब आगरा शहर के ही केन्द्रीय विद्यालय में हुई, हम लगभग पाँच साल माँ-बाऊजी के साथ रहे। माँ-बाऊजी दोनों ही उसूल पसंद व अनुशासन प्रिय थे। माँ अक्सर शिखा के लिए मुझसे कहा करती थी- "कामकाज़ी बहू है पर इसने तो कभी मुझे कोई कष्ट ही नहीं दिया। घर में होती है तो माँ ही माँ पुकारती है। इसे देखकर लगता है कि मेरी ही जाई है। ऐसी बहू अच्छे कर्मों वालों को ही मिलती है।"

प्रखर, जानते हो मैं माँ की बातें चुपचाप सुनता रहता और मुझे लगता अगर माँ ख़ुश है तो सब बहुत अच्छा है। मैंने भी कभी शिखा को यह सब बातें नहीं बतायीं। मुझे लगता था कि माँ की नज़र वाली बात शायद सही हो पर शिखा को हमेशा लगता था कि मैं बहुत रूखा इंसान हूँ।

आज शिखा को समीर पर बहुत प्यार आया। कितनी मासूमियत के साथ समीर ने अपने सच को प्रखर के सामने अनावृत दिया। जैसे ही शिखा ने समीर की आँखों में झाँका, उसे ख़ुद ही शर्म आ गई और वह समीर से बोली- "आपको वैसे तो बोलना आता ही नहीं पर आज क्या हो गया है! हम दोनों तो प्रखर को सुन रहे थे, आपने तो हमारी बातें सुनाना शुरू कर दिया।"

आज शिखा को समीर से जुड़े अनूठे प्यार का अनुभव हुआ। उसे लगा कि काश यह सब समीर ने थोड़ा-सा भी उसे महसूस करवाया होता तो ज़िंदगी और भी ख़ूबसूरत हो जाती। तभी समीर ने ज़ोर से हँसते हुए कहा- "हाँ भई प्रखर, ग़लती हो गई। न जाने तुम में क्या जादू है कि गूंगा समीर भी तुम्हारे रंग में रंग गया है।"

समीर की इस मासूम-सी बात पर तीनों कितना ज़ोर-ज़ोर से हँसे थे। एक-दूसरे की बातों को साझा करके तीनों ने ख़ूब अच्छा समय साथ में बिताया। बहुत रात हो जाने से शिखा और समीर अपने घर लौट आए। घर पहुँचने के बाद भी शिखा प्रखर के साथ गुज़रे अतीत में ही घूम रही थी। उस रोज़ शिखा को अतीत के कितने खुले-अधखुले पृष्ठों को पढ़ने का मौक़ा मिला। समीर के बातें साझा करने से शिखा बहुत ख़ुश थी

शिखा को आज फिर से बार-बार याद आ रहा था, कैसे प्रखर उस पर जान छिड़कता था। कैसे उसकी छोटी-छोटी ख़्वाहिशों का ख़याल रखता था। वह जब प्रखर को बोलते हुए कनखियों से देख रही थी तो प्रखर भी उसके इस तरह देखने पर कहीं न कहीं बोलते-बोलते अटक रहा था। तभी तो पहले ख़ुद को नॉर्मल करता फिर आगे बोलता। आज की मीटिंग के बाद दोनों बार-बार अतीत में लौट रहे थे।

लगभग दो घंटे साथ बैठने के बाद जब समीर और शिखा घर लौटे तो समीर ने शिखा से कहा था- "अपनी बातें बहुत अच्छे से सुनाता है प्रखर। बहुत सुलझा हुआ, अच्छे दिल का इंसान है। मुझे हर बार उससे मिलकर अच्छा लगता है। उम्र के इस पड़ाव पर ऐसे ही मित्रों की ज़रूरत होती है। आज उसके साथ दो घंटे कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला। इतने बड़े ओहदे पर रहा है पर उसने कहीं भी कुछ ऐसा महसूस ही नहीं होने दिया, जिससे अहंकार की बू आए। किसी रोज़ समय निश्चित करके उसे फिर से खाने पर ज़रूर बुला लेना।"

शिखा ने जैसे ही समीर के मन की बात सुनी, उसने हामी में सिर हिलाया। रात के ग्यारह बजने वाले थे, वह भी सोने के लिए लेट गई। दोनों खाना खाकर ही प्रखर के यहाँ गए थे। अब सोना ही था। लेटते ही समीर को तो नींद आ गई पर शिखा की आँखों से नींद कोसों दूर भाग गई।

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रचनाकार परिचय

प्रगति गुप्ता

ईमेल : pragatigupta.raj@gmail.com

निवास : जोधपुर (राजस्थान)

जन्मतिथि- 23 सितंबर, 1966
जन्मस्थान- आगरा (उत्तरप्रदेश)
शिक्षा- एम०ए० (समाजशास्त्र, गोल्ड मैडलिस्ट)
सम्प्रति- लेखन व सोशल-मेडिकल क्षेत्र में काउंसिलिंग
प्रकाशन- तुम कहते तो, शब्दों से परे एवं सहेजे हुए अहसास (काव्य-संग्रह), मिलना मुझसे (ई-काव्य संग्रह), सुलझे..अनसुलझे!!! (प्रेरक संस्मरणात्मक लेख), माँ! तुम्हारे लिए (ई-लघु काव्य संग्रह), पूर्ण-विराम से पहले (उपन्यास), भेद (लघु उपन्यास), स्टेप्लड पर्चियाँ, कुछ यूँ हुआ उस रात (कहानी संग्रह), इन्द्रधनुष (बाल कथा संग्रह)
हंस, आजकल, वर्तमान साहित्य, भवंस नवनीत, वागर्थ, छत्तीसगढ़ मित्र, गगनांचल, मधुमती, साहित्य भारती, राजभाषा विस्तारिका, नई धारा, पाखी, अक्षरा, कथाबिम्ब, लमही, कथा-क्रम, निकट, अणुव्रत, समावर्तन, साहित्य-परिक्रमा, किस्सा, सरस्वती सुमन, राग भोपाली, हिन्दुस्तानी ज़ुबान, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण, दैनिक ट्रिब्यून, नई दुनिया, दैनिक नवज्योति, पुरवाई, अभिनव इमरोज, हिन्दी जगत, पंकज, प्रेरणा, भारत दर्शन सहित देश-विदेश की लगभग 350 से अधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन और अनुवाद।
कविता अनवरत, कविता अभिराम, शब्दों का कारवां, समकालीन सृजन, सूर्य नगरी की रश्मियाँ, स्वप्नों की सेल्फ़ी, कथा दर्पण रत्न, छाया प्रतिछाया, सतरंगी बूंदें, संधि के पटल पर आदि साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।
प्रसारण-
जयपुर दूरदर्शन से चर्चा व आकाशवाणी से सृजन का नियमित प्रसारण
सामाजिक और साहित्यिक क्षेत्र में कविता का स्थान विषय पर टी.वी. पर एकल साक्षात्कार
संपादन- अनुभूतियाँ प्रेम की (संपादित काव्य संकलन)
विशेष-
राजस्थान सिन्धी अकादमी द्वारा कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' का अनुवाद।
कहानियों और कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' पर शोध।
प्रतिष्ठित कथा प्रधान साहित्यिक पत्रिका 'कथाबिम्ब' के संपादक मण्डल में क्षेत्रवार संपादक
कहानियों व कविताओं का अन्य भाषाओं में अनुवाद
हस्ताक्षर वेब पत्रिका के लिए दो वर्ष तक नियमित 'ज़रा सोचिए' स्तंभ
सम्मान/पुरस्कार-
हिंदी लेखिका संघ, मध्यप्रदेश (भोपाल) द्वारा 'तुम कहते तो' काव्य संग्रह पर 'श्री वासुदेव प्रसाद खरे स्मृति पुरस्कार' (2018)
'अदबी उड़ान काव्य साहित्य पुरस्कार' काव्य संग्रह तुम कहते तो और शब्दों से परे पुरस्कृत व सम्मानित (2018)
साहित्य समर्था द्वारा आयोजित अखिल भारतीय 'डॉ० कुमुद टिक्कू कहानी प्रतियोगिता' श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार (2019 और 2020)
विद्योत्तमा फाउंडेशन, नाशिक द्वारा 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' कहानी संग्रह 'विद्योत्तमा साहित्य सम्राट सम्मान' से पुरस्कृत (2021)
श्री कमल चंद्र वर्मा स्मृति राष्ट्रीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता प्रथम पुरस्कार 2021
कथा समवेत पत्रिका द्वारा आयोजित 'माँ धनपति देवी स्मृति कथा साहित्य सम्मान' 2021, विशेष सम्मान व पुरस्कार
लघु उपन्यास भेद पुरस्कृत मातृभारती 2020
विश्व हिंदी साहित्य परिषद द्वारा 'साहित्य सारंग' से सम्मानित (2018)
अखिल भारतीय माथुर वैश्य महासभा के राष्ट्रीय सम्मेलन में 'समाज रत्न' से सम्मानित (2018)
डॉ० प्रतिमा अस्थाना साहित्य सम्मान, आगरा (2022)
कथा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थान द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान 'रघुनंदन त्रिवेदी कथा सम्मान' स्टेपल्ड पर्चियांँ संग्रह को- 2023
पंडित जवाहरलाल नेहरु बाल साहित्य अकादमी, राजस्थान द्वारा 'इंद्रधनुष' बाल कथा संग्रह को 'बाल साहित्य सृजक' सम्मान 2023 
जयपुर साहित्य संगीति द्वारा 'कुछ यूँ हुआ उस रात' को विशिष्ट श्रेष्ठ कृति सम्मान 2023
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