Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
सत्य का अभिज्ञान है : निर्वासिनी- डॉ वीना उदय

हरभजन सिंह जी का हृदय भी इसकी रम्यता से आंदोलित हुआ और उसकी परिणति ‘निर्वासिनी’ शीर्षक से रचित उपन्यास के रूप में हुई। लेखक ने उपन्यास का प्रारंभ कण्व ऋषि के आश्रम की मनोरम प्राकृतिक छटा के वर्णन के साथ किया है। आश्रम में भ्रमण करते हुए प्रकृति के अलौकिक सौन्दर्य का रसास्वादन करते महर्षि को नदी तट पर शिशु का रुदन सुनाई देता है वह भ्रमित होते हैं कि यह रुदन शिशु का है अथवा रीछ का। वह जब वहाँ पहुँचते हैं, तो वल्कल में लिपटी नन्ही बालिका को देखकर वह उसे अपने अंक में उठा लेते हैं।

आक्रोश का प्रतिमान: मैं सौमित्र- रमेश प्रसून

मैं सौमित्र में रामकथा का ताना-बाना एक अलग तरीके से बुना गया है, जिसमें सारी कथा राम की होते हुए भी लक्ष्मण का चरित महानायक के रूप में और उर्मिला का चरित्र उपन्यास की महानायिका के रूप में गुम्फित किया गया है।

भीतर की ध्वनि को प्रतिध्वनित करता हुआ संग्रह : सन्नाटे में शोर बहुत है- नेहा कटारा पाण्डे

इनकी ग़ज़लों में ‌जहाँ जीवन‌ की समस्याएँ हैं तो वहीं उनसे जूझने का जोश भी। जहाँ रिश्तों से छले‌ जाने‌ का अहसास है तो उन्हीं रिश्तों के कारण जीवन‌ में मिठास की अनुभूति भी है। जहाँ एक ओर ज़िम्मेदारियों का आभास है तो उनके‌ साथ ही सपनों को‌ देखना और उन्हें पूरे करने के प्रयास भी हैं।

उम्मीदों और सपनों से भरी ग़ज़लों का प्रतिनिधि संग्रह: ज़िंदगी आने को है

ज़िंदगी आने को है विनय मिश्र का चौथा ग़ज़ल संग्रह है। इस संग्रह को पढ़ने के बाद कविता के विषय में और विशेषत: हिंदी ग़ज़ल के विषय में जो एक बात स्पष्ट दिखाई पड़ती है, वह यह कि ग़ज़ल में, कविता का पूरा संसार समाया है। कविता इस संसार को 360 डिग्री पर दिखाने की सामर्थ्य रखती है और दिखाती भी है।