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काव्यात्मकता के साथ संचित अनुभव व अनुभूतियाँ : कुछ सुना, अनसुना-सा- डॉ० सुरेश अवस्थी

पुस्तक- कुछ सुना, अनसुना-सा
रचनाकार- डॉ० कामायनी शर्मा
विधा- कविता
प्रकाशन- इरा पब्लिशर्स, कानपुर

यथार्थ बोध की स्वाभाविक निर्मिति है : पीठ पर टिका घर- रमेश प्रसून

लेखिका ने अपनी इन लघुकथाओं में अति विद्वतापूर्ण, अतिरंजित व्यन्जनाओं और अनावश्यक काल्पनिक उद्भावनाओं से बचकर अपनी बातें अति सहज और सरल तरीके से कह दी हैं। पीठ पर टिका घर एक पारिवारिक एवं सामाजिक रूपताओं और विद्रूपताओं के सत्य को उद्घाटित करने वाला 'कथा-गुच्छ' है, जो सहज पठनीय एवं अति प्रशंसनीय है।

एक महत्वपूर्ण शोध-ग्रन्थ : सुभद्राकुमारी चौहान के साहित्य में संवेदना और शिल्प- डॉ० राकेश शुक्ल

सुभद्राकुमारी चौहान के साहित्य में संवेदना और शिल्प डॉ० कामायनी शर्मा का एक शोध-समीक्षा ग्रन्थ है, जिसमें उन्होंने अध्यवसायपूर्वक सुभद्रा जी के समग्र कृतित्व का मूल्यांकन किया है। कामायनी जी ने विवेच्य रचनाकार की पारिवारिक पृष्ठभूमि, उनके व्यक्तित्व की निर्मिति तथा उनके सामाजिक, राजनीतिक सरोकारों के साथ लेखकीय व्यक्तित्व पर भी विस्तार से प्रकाश डाला है।

समकालीन यथार्थ का आईना : ये और बात है- के० पी० अनमोल

संजीव प्रभाकर की ग़ज़लें संभावना जगाती हैं। सबसे अधिक इनकी ग़ज़लों का कथ्य, जो समसामयिक है, प्रभावित करता है। एक रचनाकार के बतौर इनकी सोच संतुलित और परिपक्व नज़र आती है। ग़ज़लें अनेक अलग-अलग बह्रों में रची गयी हैं। अलग एवं नए रदीफ़ों में हाथ आज़माने का प्रयास भी किया गया है। यहाँ रचनाकार का ग़ज़ल विधा में कुछ अलग रचने का साहस द्रष्टव्य है।