Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
ग़ज़ल में महिला ग़ज़लकारों का दख़ल- डॉ० ज़ियाउर रहमान जाफ़री

हिंदी में महिला ग़ज़लकारों की संख्या हमेशा से कम रही है। सिर्फ़ हिंदी क्या, उर्दू की छह सौ साल पुरानी शायरी की परंपरा में भी स्त्री ग़ज़लकारों में हमारा ध्यान सिर्फ़ परवीन शाकिर और किश्वर नाहीद जैसे कुछ लोगों पर जाता है। एक समय में महिलाओं का ग़ज़ल लिखना ख़राब समझा जाता था। कहते हैं कि उर्दू के अजीम शायर मीर तकी मीर की पुत्री का दीवान तक शायरी करने पर जला दिया गया था। इन हिंदी-उर्दू के चंद महिला ग़ज़लकारों में भी बिहार की ज़मीन से महिला ग़ज़लकारों को तलाशना एक संपूर्ण शोध का विषय है, जिसे अविनाश भारती जैसे उद्यमी लोग ही पूरा कर सकते हैं।

दर्पण की भाँति प्रतिबिंबित करती ‘फ़िबोनाची वितान’ कहानियाँ- शैल अग्रवाल

कहा जाता है कहानियाँ कल्पना लोक में ले जाने के साथ-साथ तत्कालीन समय और समाज को दर्पण की भाँति प्रतिबिंबित करती हैं और यह बात आरती लोकेश गोयल के इस नए कहानी-संग्रह पर पूरी तरह से सही प्रतीत होती है। यदि यहाँ भारतीय समाज और मूल्य व मान्यताएँ है, तो दुबई भी है। पश्चिम का वैभव-विलास और एकाकी जीवन भी। कोरोना-काल का एक बोनजाई उल्लेख भी मिलता है हमें इन कहानियों में...

एक आदिम चरवाहा गाँव की दास्तान- शशि काण्डपाल

एक गौरव गाथा,एक पल्लवित समाज और उसके पलायन/ उन्नति की कीमत का निर्मम इतिहास- डॉ गिरिजा किशोर पाठक द्वारा लिखित पुस्तक “एक आदिम चरवाहा गाँव की दास्तान” की समीक्षा। 

'तोल्स्तोय की जीवनी' अनूदित पुस्तक- रामप्रसाद राजभर

दो वर्ष पूर्व हेनरी त्रोयत द्वारा लिखित तोल्स्तोय की जीवनी को पढ़ने का सौभाग्य मिला। लेकिन कैसे?  वह ऐसे कि लगभग पाँच वर्ष के दौरान कथाकार श्री रूपसिंह चन्देल साहब ने इस जीवनी का पुनर्सृजन किया देवनागरी में। छः सौ छप्पन (बावन और छप्पन की संख्या बदनाम हो चली है!) पृष्ठों का पुनर्सृजन करना वह भी स्वेच्छा से तथा अपने मौलिक लेखन के साथ-साथ! आश्चर्य चकित करता है मगर एक अनुशासित जीवनशैली के विकट अनुयायी के लिए यह सहज है।