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आक्रोश का प्रतिमान: मैं सौमित्र- रमेश प्रसून

आक्रोश का प्रतिमान: मैं सौमित्र- रमेश प्रसून

मैं सौमित्र में रामकथा का ताना-बाना एक अलग तरीके से बुना गया है, जिसमें सारी कथा राम की होते हुए भी लक्ष्मण का चरित महानायक के रूप में और उर्मिला का चरित्र उपन्यास की महानायिका के रूप में गुम्फित किया गया है।

दस उपन्यास, बारह कहानी संग्रह, दो व्यंग्य संग्रह, दो काव्य संग्रह, एक बाल गीत संग्रह, दो पौराणिक कथा संग्रह के साथ पिछले साठ सालों से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित देश की विख्यात एवं वरिष्ठ लेखिका सुधा गोयल का नमन प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित पौराणिक कथाओं एवं अन्य रामकथाओं के एक विशिष्ट पात्र रामानुज अर्थात् सुमित्रा के पुत्र होने के कारण सौमित्र कहलाए जाने वाले लक्ष्मण के चरित्र चित्रण में उसकी अन्तरानुभूति को केंद्र बिंदु बनाकर लिखा गया एक अन्यतम उपन्यास है।

रामचरितमानस की एक अन्यतम विशेषता यह है कि इसमें सुमित्रानंदन लक्ष्मण के चरित्र को महत्वपूर्ण घटनाओं और कथनों से जोड़कर अति विशिष्टता एवं उदात्तता प्रदान की गयी, जिससे प्रभावित होकर खड़ी बोली में लिखे जाने वाले गद्य-पद्य के प्रारम्भिक काल से अब तक आदिरामायण और रामचरितमानस के उपेक्षित पात्रों और घटनाओं के साथ-साथ अन्य ग्रंथों के नवीनतम उपमाओं, रूपकों, प्रतीकों और बिम्बों का सहारा लेकर गद्य-पद्य में अनेक उपलब्धियाँ उत्सर्जित की जा चुकी हैं, जिनमें पौराणिक कथ्यों की प्रामाणिकता से हटकर कथित लेखकों और कवियों ने अपनी नवकल्पना, नवानुभूतियों विचारधारा, मान्यता और प्रतिबद्धता के साथ नये-नये नायकों की उत्सर्जना और चित्रण को प्रमुखता दी है।

इसी प्रचलन के अनवरत अनुक्रम में लक्ष्मण के चरित्र पर केंद्रित सुधा गोयल कृत उपन्यास 'मैं सौमित्र' विशेष महत्त्व की कृति बनकर उभरा है। लेखिका द्वारा उपन्यास विधा के रूप में लिखित 'मैं सौमित्र' में रामकथा के नाम पर प्रचलित अनेक ग्रंथों, लोक कथाओं और घटनाओं के यथोचित समन्वय के साथ विभिन्न पात्रों के माध्यम से अपनी तरफ से उठाए गये विभिन्न प्रश्नों, तर्कों तथा उत्तेजक व सामाजिक आख्यानों के द्वारा किया गया उद्वेलित करने वाला सटीक चित्रण है, जिसमें राम-साहित्य पर किया गया गहन अध्ययन, शोध, व्युत्पत्तिपरक प्रतिक्रिया बोध स्पष्टतः परिलक्षित हो रहा है।

एक समकालीन एवं नवीनतम बोध से प्रेरित लेखिका ने इस पुस्तक में पुराण पुरुष दशरथ की पत्नी सुमित्रा के पुत्र सौमित्र अर्थात लक्ष्मण एवं अन्य पात्रों के चरित्र चित्रण, उनकी देवत्व तथा पुराण पात्र की स्थिति के सापेक्ष एक साधारण मानव की वृत्ति एवं मनोदशा के सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर अत्यंत अन्तर्ग्राहता और अन्तर्वेदना के साथ प्रस्तुत किया है, जिसका आकलन पौराणिक प्रतिबद्धता से हटकर मानवीयता के परिपेक्ष्य में एक साधारण मानव मानकर ही किया जाना औचित्य पूर्ण लगता है क्योंकि पौराणिक पात्रों की परिधि सुनिश्चित है। इसलिए हम उनके मूलाधार को बदले बिना पुराण पात्रों पर आक्षेप-विक्षेप, विवेचन और वर्तमान संदर्भ में मात्र अनुशीलन ही कर सकते हैं।

रामकथा की दीर्घ यात्रा में तरह-तरह से रामचरित, पात्रों के चित्रण तथा घटनाओं की अनुवृतियों को इतने अधिक और वैविध्य तरीके से समय-समय पर निरंतर बदला गया है कि रामकथा की एकरूपता आज तक प्रामाणिक रूप में स्थापित नहीं हो सकी है। जो कुछ है, मात्र प्रचलन और आदि काल से अब तक लेखकों की भिन्न-भिन्न धारणाओं और आख्याओं के आधार पर चल रहा है।

मैं सौमित्र में रामकथा का ताना-बाना एक अलग तरीके से बुना गया है, जिसमें सारी कथा राम की होते हुए भी लक्ष्मण का चरित महानायक के रूप में और उर्मिला का चरित्र उपन्यास की महानायिका के रूप में गुम्फित किया गया है। पति-पत्नी के रूप में आंतरिक एवं निजी क्षणों के एकांत में लक्ष्मण उर्मिला की आपसी बातचीत के माध्यम से उनकी अन्तर्वेदना और उनकी अंतरानुभूतियों को सूक्ष्मता से प्रस्फूटित किया गया है, जिसमें प्रचलित रामकथा के अनेक क्षेपकों और अनछुए प्रसंगों के संदर्भ में विभिन्न घटनाओं को आवश्यकतानुसार वांछित पात्रों की गतिविधियों से जोड़कर जो कुछ कहना है, उसे बिना लाग-लपेट के कह दिया है, जिनसे उमड़ती-घुमड़ती, गरजती-बरसती बिजलियों जैसी कौंध बरपाती भावनाओं की उद्रेक मुखर होकर प्रकट होता दिखाई दे रहा है, जो लेखिका के चिंतन-मनन की प्रौढ़ता व कला कौशल का प्रभावशाली उदाहरण बनकर सामने आया है।

पत्नी सीता के वियोग में अपराधबोध से ग्रसित राम द्वारा जल समाधि लेने की घटना के उपरांत आत्मोसर्ग को उद्धत सौमित्र द्वारा आत्मोसर्ग के स्थान पर उर्मिला सहित अयोध्या से पलायन की घटना गढ़कर प्रबुद्ध लेखिका ने अपनी प्रतिगामी सोच का पूर्ण दक्षता के साथ परिचय दिया है। इस घटना से पूर्व की पृष्ठभूमि में राम द्वारा आज्ञाकारी सौमित्र से संबंध त्याग की घटना तक का सौमित्र-उर्मिला संवाद के रूप में उन्नयन कर इस उपन्यास को अनन्यता प्रदान की गयी है।

उल्लेखनीय है कि मानव मन की सहज एवं स्वाभाविक मनोस्थिति के अंतर्गत सौमित्र के अंतर्मन में व्यापित सुप्त एवं अदृश्य कुंठाओं एवं अपेक्षाओं, उपेक्षाओं, संवेदनाओं, आशाओं, आकांक्षाओं, अन्यायों, व्यवहारगत पक्षपात, दमन, क्षोभ के अनुभवों के साथ उपालम्भों का विस्फोट पत्नि उर्मिला के साथ संवादों में प्रस्फुटित हुआ है।

कथोपकथन का ये अन्यतम रूप संवादों के माध्यम से सौमित्र के उद्वेलन के साथ सौमित्र के चरित्र का पुनर्गठन तो करता ही है, पूर्ण आवेग से भाव रक्षेपण भी करता है, जो विदुषी लेखिका की व्यवहार गत सोच को पूर्णता प्रदान करता प्रतीत हो रहा है। इससे पूर्व साहित्य में लक्ष्मण के इस रूप को न कभी देखा गया और न कभी उसके बारे में सोचा गया।

इस उपन्यास में राम के चरित्र चित्रण के बारे में पुरुष के प्रति नारी क्षोभ को रूपित करते हुए राम के चरित्र को आरोपग्रस्त और उत्तर दायित्व विहीन दर्शाया गया है। कथा के प्रारम्भ से अंत तक प्रत्येक घटित घटना का कारण राम के व्यवहार को ठहराया गया है। सुधा जी के राम प्रवंचना का शिकार हैं। राम के चरित्र का प्रस्तुतीकरण, वैदिक शास्त्रीय पौराणिक आधार न हो कर साधारणीकृत आधार पर कर दिया गया है।

इस उपन्यास की अप्रतिम संवाद योजना को उसका सबसे अधिक सशक्त पक्ष कहा जा सकता है। इसके संवाद पात्रों के चरित्र को प्रबलता के साथ उभारते हैं।ये संवाद अत्यधिक तीखे, व्यंग्यपूर्ण एवं प्रभावशाली हैं, जो संवेदनाओं को झकझोर देते हैं, हृदय को कचोटते हैं और मन में उद्वेलन पैदा करते हैं।
इसके साथ ही इस उपन्यास के माध्यम से समकालीन उत्कर्ष‌ के प्रदाता पक्ष के रूप में नारी विमर्श को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रत्येक पात्र के माध्यम से उकेरा गया है। विशेषकर नारी पात्रों यथा सीता, उर्मिला, मांडवी, शुपर्णखा, मंदोदरी, सुनयना, अहिल्या आदि के माध्यम से पुरुष प्रदत्त अन्याय, अत्याचार, उपेक्षा, दुर्निवार आदि की शिकार नारी की उत्तेजना और प्रतिकार की भावना को अतिसंवेदनशील, उत्तेजनात्मक और प्रतिशोधपरक संवेगों के साथ स्पष्टरूप से मुखरित किया गया है, जिसके सृजन से लेखिका नारी शक्ति और नारी विमर्श की अप्रतिम और सशक्त प्रवक्ता बनकर उभरी है। घटनाओं से त्रस्त अनेक स्वकथनों के साथ-साथ नारी पक्ष में विभिन्न पात्रों के माध्यम से कहलवाए गये तीखे संवाद उदाहरणार्थ दृष्टव्य हैं-

वे ऋषि कायर पुरुष थे, जो अपनी पत्नी की रक्षा न कर सके। वह कैसा पति?
औरत गंदे कपड़े की पोटली-सी, उसे तो कोई भी उठाकर फेंक देगा।
तो राज सिंहासन छोड़ दीजिए और स्वयं भाभी जानकी के साथ वनवास लीजिए।
गौतम ऋषि शाप देने की सामर्थ्य रखते थे तो इंद्र को क्यो नहीं दिया!
इंद्र तो आज तक भी दंड का अधिकारी नहीं हुआ। उसने कितनी ही स्त्रियों के साथ अनाचार किया है।
दीदी शस्त्र विज्ञ थीं और एक योद्धा भी।
रावण की जिस हार का व लंका की विजय का जश्न मना रहे थे, वह औरतों को सीढी बनाकर लिखी गई गाथा है।
भाभी कोई वस्तु है कि कोई भी उठा ले, कहीं भी रख ले!
जो पति, पत्नी का अपमान करता है, वह पति कहलाने योग्य नहीं।
ऐसे राजा के राज्य में नहीं रहना, जो पूरे समाज के सामने अपनी पत्नी पर अविश्वास करके उसकी अस्मिता की परीक्षा ले।
स्त्री का सम्मान करने वाले राम ने ही स्त्री को सबसे ज़्यादा अपमानित किया।
जिसकी पत्नी कुल्टा हो, उस राजा को भी पदच्युत होना चाहिए।
ये दण्ड मेरे लिए है तो मैं भोगूंगी लेकिन मेरे अजन्मे बच्चे को दण्ड क्यों मिले?
दोष उन दो युगीन योद्धाओं का है, जो एक स्त्री की रक्षा न कर सके।
आपकी पुत्री होती तो उसकी दुर्दशा से आपकि कलेजा छलनी हो जाता।
क्या आपने कौशल नरेश से अपनी पुत्री के त्याग का कारण जानने का कष्ट किया।
आर्य राम ने मुझे लंकेश के सामने चारा बनाकर परोसा।
क्या उस व्यक्ति पर राजाभियोग नहीं चलना चाहिए, जिसने आपकी गर्भवती पुत्री को आपसे पूछे बिना भाइयों के साथ मिलकर षड्यंत्र करके चुपचाप वन में मरने के लिए छोड़ दिया।

स्पष्टतः पौराणिक पात्रों का साधारणीकरण करते हुए उनकी मनोवृत्ति के सूक्ष्म विश्लेषण के साथ सौमित्र, उर्मिला एवं अन्य पौराणिक पात्रों के बहाने यह उपन्यास विशुद्ध नारीवादी घोष तथा एक शौर्यवान समर्थ किंतु कुंठित भाई के मन में उठते-घुटते आक्रोश का प्रतिमान बनकर प्रस्तुत हुआ है, जो साहित्य की समकालीन वांछनाओ की प्रभावशाली पूर्ति करने में सर्वथा सिद्ध हुआ है।
ऐसे अधुनातन प्रस्तुतिकरण के लिए अप्रतिम प्रतिभा की धनी सुधा गोयल निश्चित रूप से बधाई की पात्र हैं। इस उपन्यास का अपनी इसी धरणा के परिपेक्ष्य में सर्वत्र स्वागत होगा।

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समीक्ष्य पुस्तक- मैं सौमित्र
विधा- उपन्यास
प्रकाशक- नमन प्रकाशन, नई दिल्ली

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रचनाकार परिचय

रमेश प्रसून

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संपादक- बुलंदप्रभा त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका
निवास- 4/75, सिविल लाइंस, टेलीफोन केंद्र के पीछे, बुलंदशहर (उत्तरप्रदेश)- 203001