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बच्चों का साहित्य बच्चों तक पहुँचे- चक्रधर शुक्ल 

बच्चों का साहित्य बच्चों तक पहुँचे- चक्रधर शुक्ल 

सिर्फ बातें करने से बच्चों का भला नहीं हो सकता। इधर कई बाल साहित्य के आयोजनों में मुझे जाने का सुअवसर मिला। परिचर्चा,गोष्ठियों में तथाकथित बाल साहित्यकारों ने लच्छेदार वक्तव्य से सभी का मनमोहा पर बात किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुँची कि बच्चों का साहित्य (पुस्तकें) बच्चों तक कैसे पहुँचे।

सिर्फ बातें करने से बच्चों का भला नहीं हो सकता। इधर कई बाल साहित्य के आयोजनों में मुझे जाने का सुअवसर मिला। परिचर्चा,गोष्ठियों में तथाकथित बाल साहित्यकारों ने लच्छेदार वक्तव्य से सभी का मनमोहा पर बात किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुँची कि बच्चों का साहित्य (पुस्तकें) बच्चों तक कैसे पहुँचे। मुझे कई जगह बोलने का, कार्यक्रम का संचालन करने का अवसर मिला, मैंने डायस से यह बात जोर देकर उठाई। उपस्थित कार्यक्रमों  में  भागीदारी करते हुए देखा-बड़े-बड़े साहित्यकार उनकी रुचि सम्पादकों समालोचकों  आयोजकों पर ज्यादा केन्द्रित है। क्योंकि उन्हें उन पत्रिकाओं में कवरेज मिलेगा, किताबों की  चर्चा होगी। आत्म प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती। वहीं पर कुछ उदार साहित्यकारों ने बच्चों के लिए पिटारा खोल दिया।
                                
बाल साहित्य संवर्धन संस्थान कानपुर ने अपने  तीन सालों के कार्यक्रमों में  विशेष पहल की। बाल साहित्यकारों की बाल कविता की पुस्तकें कम लागत मूल्य रुपया 20/ में छपवाकर बच्चों में नि:शुल्क वितरित कीं। कोरोना काल के कारण विगत दो वर्षों से आयोजन नहीं हो पा रहा, आगामी कार्यक्रमों में उसी प्रकिया पर अमल किया जाएगा। सन 2023 में कार्यक्रम की शुरुआत की गयी। कानपुर के 10 बाल साहित्यकारों का सम्मान किया गया। मेरा सबसे निवेदन है कि यही अभिनव प्रयोग आप भी करें, कुछ संस्थाएँ ऐसा कर रही हैं, उनका हृदय से स्वागत है ।
   
अपने आलेख में यह बात इसलिए उठाई  क्योंकि मैंने देखा है कि बच्चों के माँगने पर तथाकथित साहित्यकार बन्धुओं ने उन्हें टरका दिया, जो कुछ देर पहले बहुत प्रभावी भाषण दे रहे थे। और कहा- घर पहुँचते ही पुस्तकें संस्थान को  भिजवा देंगे। पर उन्होंने भिजवाया कि नहीं, इसकी जानकारी हमें नहीं हो पायी। मेरा संपादकों से विनम्र निवेदन है कि सम्पादकीय में महत्वपूर्ण बातें करने के साथ इन बातों को भी मुखर होकर लिखें। गोष्ठियों सम्मेलनों में खुल कर बोलें। मौन स्वीकृति से,उन लोगों के ऐसे प्रयासों को बल मिलता है।पर पता नहीं, सम्पादकों की क्या विवशता है कि वह अपनी बात बेबाकी से रख नहीं पाते ? जो रखते है, उन्हें विनम्र प्रणाम। ऐसे विशिष्ट संपादकों से बाल साहित्य का भला होगा।
 
'दि अण्डर लाइन  ' कानपुर ने 2020  तीन अंक  बाल साहित्य के निकाले। संपादकीय विभाग से जुड़ा होने के नाते रचनाकारों से संपर्क होता रहा पर कुछ रचनाकार रचनाएँ  छपने तक ही संपर्क में रहे! इसके बाद चुप्पी साध ली। रचनाएँ छंद विधान में न होने पर यदि आपने सुधार कर दिया तो, मुँह फूल गया। ऐसे कुछ रचनाकारों को सम्मानित भी किया जा रहा है। जो चुपचाप अपने अनुष्ठान में लगे हैं, साधनारत है वो उपेक्षित हैं। जो संस्थाएँ बाल साहित्य के संवर्धन में लगी हैं (कोरोना काल ) उन पर देश की राज्यों की नज़र जानी चाहिए। ऐसी संस्थाओं को राज्य सरकारें जरूर संज्ञान में लेकर पुरस्कृत करें।
 
चमक -दमक पहुँच वाले तथाकथित बाल साहित्यकारों ने अपना प्रभाव जमा रक्खा है, देख कर हैरानी होती है। यदि ऐसा ही होता रहा तो बाल साहित्य वहीं का वहीं  रहेगा पर ऐसे लोगों का भला ज़रूर हो जाएगा। अंत में इतना ही कहना है कि कम लागत मूल्य की पुस्तकें बच्चों की छापी जाएँ और बच्चों तक उनका साहित्य पहुँचे। इसलिए हम सभी को मिल-जुल कर पहल करनी होगी। प्रारंम्भ बाल कविताओं की पुस्तकें निकाल कर करें। जन्म दिन पर बच्चों को पुस्तकें उपहार में देकर हम नयी शुरूआत कर सकते हैं।
 आओ -मिलकर पहल करें-
''तुम कहते हो बच्चा है, हमसे तुमसे अच्छा है"
 
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1 Total Review

वसंत जमशेदपुरी

24 January 2025

बाल साहित्य का प्रकाशन हो तथा प्रकाशित साहित्य बच्चों तक पहुँचे तभी लिखना सार्थक होगा लेखकों का

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रचनाकार परिचय

चक्रधर शुक्ल

ईमेल : chakradharshukl78@gmail.com

निवास : कानपुर (उ. प्र.)

जन्मतिथि- 18 जनवरी, 1957 
जन्मस्थान- खजुहा, जिला- फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिता- पं. कृष्ण दत्त शुक्ल
माता- श्रीमती सावित्री देवी शुक्ला
पत्नी- श्रीमती दीपा शुक्ला
शिक्षा- बी.एस-सी., एम.ए. (अर्थशास्त्र)
प्रकाशन- अँगूठा दिखाते समीकरण (क्षणिका -संग्रह) 2015, दादी की प्यारी गौरैया (बाल कविता संग्रह) 2018, हास्य-व्यंग्य सरताज : चक्रधर शुक्ल 2019
सम्पादन- 'सुगंध-ज्योति से हवन के बीच' का संपादन', 'आईने रूठे हुए' (डॉ. सुरेश अवस्थी जी का व्यंग्य संकलन), 'कुछ उपमेय : कुछ उपमान', 'पत्रकारिता प्रदीप- प्रताप' तथा 'प्रार्थना में' का सहसम्पादन। समकालीन सांस्कृतिक प्रस्ताव पत्रिका के बाल विशेषांक का अतिथि सम्पादन। 'चाँई-माँई खेलो' (बाल कविता संकलन) में सम्पादन सहयोग।
प्रसारण- दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से।
अन्य- अनेक पत्र-पत्रिकाओं, वेबपत्रिकाओं एवं प्रतिष्ठित साहित्यकारों द्वारा संपादित करीब 50 संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। बाल साहित्य में सक्रियता गोष्ठी-विमर्श के साथ सम्मान समारोह का आयोजन/संचालन। अतीत की धरोहर : खजुहा, फतेहपुर के वृत्तचित्र आलेख लेखन में सहयोग। 
लेखन विधा- हास्य-व्यंग्य, ग़ज़ल, बाल कविता, क्षणिका, हाइकु, दोहा तथा आलेख आदि।
सम्बद्धता- मासिक पत्रिका दि अण्डरलाइन के सम्पादकीय सलाहकार का दायित्व 2020 से। संगठन मंत्री- भारतीय बाल कल्याण संस्थान, कानपुर तथा बाल साहित्य संवर्धन संस्थान के संस्थापक सदस्य।
सम्मान- साहित्य मण्डल श्रीनाथ द्वारा बाल साहित्य भूषण सम्मान, अम्बिका प्रसाद दिव्य स्मृति सम्मान, भोपाल, पं. हर प्रसाद पाठक स्मृति बाल साहित्य सम्मान, मथुरा, भारतीय बाल कल्याण संस्थान, कानपुर, मानस संगम, कानपुर, प्रभा स्मृति बाल साहित्य सम्मान, शाहजहाँपुर एवं विकासिका सहित अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित। 
सम्प्रति- स्वतन्त्र लेखन।
सम्पर्क- एल.आई.जी.- 1, सिंगल स्टोरी, बर्रा- 6, कानपुर (उ. प्र.)
पिन कोड- 208027
मोबाइल- 9455511337