Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
डॉ० मोहम्मद युनूस बट के उर्दू व्यंग्य आलेख का अनुवाद - डॉ० अख़्तर अली

एैलीज़बैत टेलर की फिल्मे हिट होतो जा रही थीं और शादियाँ फ्लॉप। फिल्मों में वह इतनी व्यस्त रहती थी कि हनीमून पर जाने के लिये भी समय नहीं निकाल पाती थी, कुछ पतियों को तो उसने यह कहते हुए अकेले ही हनीमून पर भेज दिया कि फ़िलहाल तुम तो हो आओ मैं फिर कभी चली जाऊँगी।

श्यामसुंदर निगम की व्यंग्य कविता

ग़रीब को धकियाता ग़रीब
अमीर से ऐंठता अमीर
ग़रीब से बिदकता अमीर
बचाने में लगा हर कोई
अपना-अपना मरा ज़मीर

डॉ० नुसरत मेहदी का व्यंग्य लेख 'फेसबुक प्रबंधन व साहित्य में स्थान'

फेसबुक ने अनेक साहित्यकारों व शायरों को जन्म दिया है। आज से पहले यह कार्य कभी इतना सरल नहीं था। कोई अंतर नहीं पड़ता यदि अधेड़ आयु में भी आपको अपनी साहित्यिक क्षमता का अनायास बोध हो जाये।

दामाद: द मोस्ट ओवररेटेड रिश्ता- प्रीति 'अज्ञात'

होता क्या है कि जैसे बहू गृहप्रवेश के साथ ही पूरा घर सँभालने लगती है, इसके ठीक उलट दामाद जी के चरण पड़ते ही पूरा घर उन्हें सँभालने लगता है। परिजन स्वागतातुर हो उनकी राहों में फूल बिछा दिया करते हैं। प्रबल प्रेम पक्ष तो अपनी जगह है ही लेकिन कहीं एक भय भी रहता है कि दामाद नाराज़ न हो जाए। उसकी नाराज़गी का अप्रत्यक्ष मतलब बेटी को दुःख मान लिया जाता है।