Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

समकालीन कवियों की आलोचना- डॉ० राकेश शुक्ल

समकालीन कवियों की आलोचना- डॉ० राकेश शुक्ल

आठ कवि-समीक्षकों की एक-एक समीक्षा कृति पर संक्षिप्त टिप्पणी


कोई भी रचना एक सर्जक के भीतर किस प्रकार जन्मती और आकार ग्रहण करती है, रचना प्रक्रिया के इस मर्म को एक आलोचक के बजाय एक सर्जक अच्छी तरह समझ सकता है। अत: किसी रचना का साक्षात्कार एक आलोचक जिस तरह करता है, एक सर्जक का साक्षात्कार उससे भिन्न हो सकता है। संस्कृत
काव्यशास्त्र की परम्परा के आधार पर हिन्दी में भी आलोचना प्रारम्भ में केवल काव्यगत गुण-दोषों तक सीमित रही। भक्तिकाल में उसका रूप टीकाओं तक सीमित था, जो पद्यानुबद्ध होती थीं, उदाहरणार्थ नाभादास का भक्तमाल। भक्तिकाल के अनेक कवियों ने काव्य रचना करते हुए जाने-अनजाने कविता के गुण-दोषों को उद्घाटित करते हुए अनेक समीक्षात्मक टिप्पणियाँ कीं, जिनका आज भी महत्व है, यथा- तुलसी की पंक्ति '‘भाषा भनिति भूति भल सोई, सुरसरि सम सब कह हित होई।' रीतिकाल के पूर्व तक आलोचना का कार्य सिर्फ आचार्य का था और कवि का कार्य काव्य सर्जन। किन्तु रीतिकाल में पहली बार कतिपय कवियों और आचार्यों ने कविता और आलोचना की दोहरी भूमिका का एक साथ निर्वाह किया। यद्यपि तब आलोचना का रूप अत्यन्त सीमित था। आधुनिक काल में छायावादी कवियों से लेकर नई कविता तक के कवियों ने काव्य सृजन के साथ अपने समय की कविता पर आलोचनात्मक लेख और कृतियाँ प्रभूत संख्या में लिखी हैं। छायावादी कवियों में प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा, उत्तरछायावादी कवियों में डाॅ० राम कुमार वर्मा, दिनकर तथा बच्चन आदि की आलोचना सम्बन्धी पुस्तकों, स्फुट निबन्धों, कृतियों की भूमिकाओं पत्र तथा साक्षात्कार आदि से इन कवियों की प्रचुर आलोचना सामग्री का पता चलता है। नए कवियों में अज्ञेेय, मुक्तिबोध, केदारनाथ सिंह, शमशेर बहादुर सिंह, रघुवीर सहाय, विजयदेव नारायण साही, धर्मवीर भारती, नरेश मेहता, कुँवर नारायण, मलयज, जगदीश गुप्त, गिरिजा कुमार माथुर, रमेशचन्द्र शाह, अशोक वाजपेयी, परमानन्द श्रीवास्तव, विष्णु खरे तथा विश्वनाथ प्रसाद तिवारी आदि प्रमुख हैं। इनमें से मुक्तिबोध सहित कुछ ऐसे कवि भी हैं, जिनके आलोचना साहित्य का महत्त्व उनकी कविता से कम नहीं है और जिन्होंने हिंदी आलोचना को नई दृष्टि दी। यह सत्य है कि इन कवियों के आलोचना कर्म में शास्त्रीय सिद्धान्तों, कसौटियों तथा नए मानदण्डों का अभाव हो सकता है पर भाव बोध, विचार बोध के साथ सौन्दर्य बोध की दृष्टि से एक कवि की आलोचना दृष्टि एक आलोचक से कम महत्वपूर्ण नहीं होती।
इधर सन 1980 ई० के आसपास समकालीन कविता की वस्तु चेतना, रूप संवेदन एवं शिल्प विधान में परिवर्तन का दौर आया। इस दौर में उभरते हुए समकालीन कवि, जो अपने सृजन के साथ समीक्षा के क्षेत्र में भी चर्चा का विषय रहे, ऐसे आठ कवि-समीक्षकों की समीक्षा कृतियों का यहाँ संक्षेप में परिचय दिया जा रहा है। ये कवि और उनकी कृतियाँ हैं- राजेश जोशी- ‘एक कवि की नोट बुक’, मंगलेश डबराल- ‘लेखक की रोटी’, विजय कुमार- ‘कविता की संगत’,
ज्ञानेन्द्रपति- ‘पढ़ते-गढ़ते’, उदय प्रकाश- ‘ईश्वर की आँख’, अरुण कमल- ‘कविता और समय’, विनोद दास- ‘कविता का वैभव’ तथा एकान्त श्रीवास्तव- ‘कविता का आत्मपक्ष’।

नयी कविता के बाद अनेक काव्यान्दोलनों, जिसमें ‘अकविता’ भी शामिल है, का गर्द-गुबार शान्त हो जाने के पश्चात् जब आठवें दशक के बाद एक बार पुन: शुद्ध कविता की वापसी हुई तब राजेश जोशी भी इस कविता धारा के महत्त्वपूर्ण कवि के रूप में हमारे सामने आये। ‘एक कवि की नोट बुक’ राजेश जोशी की महत्वपूर्ण समीक्षा कृति है, जिसमें उनकी आलोचना दृष्टि का पता चलता है। यद्यपि वे इसे आलोचना या समीक्षा जैसा काम नहीं मानते किन्तु पुस्तक को पढ़ते हुए कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि किसी गम्भीर आलोचक को नहीं पढ़ रहे हैं, बल्कि एक कवि होने के नाते समकालीन कवियों या उनकी कृतियों पर राजेश जोशी की जो टिप्पणियाँ हैं, वे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। क्योंकि एक कवि मात्र निर्मम आलोचक नहीं होता, वरन एक आस्वादक भी होता है। इस पुस्तक को पाँच भागों में विभाजित किया गया है। अधार, एक कवि की नोट बुक, कुछ टिप्पणियाँ, आकलन और अरघान। राजेश जोशी का मानना है कि आठवें दशक के बाद की कविता जिन पाँच तत्वों से बनी है उनमें हैं, मुक्तिबोध, शमशेर, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल तथा त्रिलोचन जबकि प्राणतत्व निराला हैं। पुस्तक में इन छह कवियों पर विस्तृत समीक्षात्मक लेख हैं। ‘एक कवि की नोट बुक’ और ‘टिप्पणियाँ’ शीर्षक के अन्तर्गत कविता के सैद्धान्तिक पक्ष पर राजेश जोशी के महत्त्वपूर्ण विचार प्रकट हुए हैं। वे लिखते हैं कि, "हर सजग कवि अपने समय की कविता से अपने तई इंटरेक्शन करता है। साहित्य में शुद्धतावाद सम्भव नहीं। अपने से विपरीत मूल्यों, कला, कौशल और विचारधारा वाली कविताओं से भी इंटरेक्शन आवश्यक होता है क्योंकि कला पर विचारधारा का एकाधिकार नहीं। घोर जनविरोधी विचार सरणियों में विश्वास करने वाले कवि भी उच्च कला को अर्जित कर सकते हैं।" इसी प्रकार निषेध की पैनीधार वाली कविताओं को ही अधिक महत्व देने वाले समीक्षकों से इतर वे लिखते हैं कि, "एक ओर हम जीवन को सुन्दर बनाने और उसकी सुन्दरता को सहेजना चाहते हैं पर कविता जब यही काम करती है तो उसे स्वीकार करने में हम अक्सर कृपण होते हैं, हम ऐसी कविता को आलोचनात्मक विवेक की या संघर्ष की कविता की पाँत में नहीं रखते या रखने से बचते हैं।" ‘आकलन’ खण्ड के अन्तर्गत अपने समय के महत्त्वपूर्ण कवियों धूमिल, विनोद कुमार शुक्ल चन्द्रकान्त देवताले, कुमार विकल, अरुण कमल, विष्णु नागर और वेणु गोपाल पर महत्त्वपूर्ण समीक्षात्मक आलेख कृति को समकालीन कविता की मूल्यवान समीक्षाकृति बनाते हैं।

मंगलेश डबराल समकालीन कविता के महत्त्वपूर्ण कवि होने के साथ ही साथ एक चिन्तनशील गद्यलेखक भी हैं। 'लेखक की रोटी' में उनके समीक्षात्मक और वैचारिक लेखों को पढ़कर लगता है कि मंगलेश जी की कविता ही पढ़ रहे हों। यह पुस्तक चार खण्डों में बँटी है। 'संवेदन' के अन्तर्गत शमशेर, रघुवीर सहाय, श्रीकान्त वर्मा, अज्ञेय जैसे बड़े कवियों के साथ गोरख पाण्डेय और सोमदत्त जैसे नए और महत्त्वपूर्ण कवियों पर महत्त्वपूर्ण समीक्षात्मक आलेख हैं। 'संरचना' में अपने समय के महत्त्वपूर्ण विषयों राजनीति, संचार माध्यमों, कला और संस्कृति से सम्बन्धित अनेक सवालों और सरोकारों को गहराई से जाँचने-परखने का कार्य किया है। 'लेखक की रोटी' शीर्षक लेख में लेखक चिंता प्रकट करता है कि "सांस्कृतिक प्रतिष्ठान किसी राजनीतिक व्यवस्था का ही विस्तार होता है। आखिर इस देश के शासक वर्गों के सांस्कृतिक सलाहकार ही संस्कृति के नियामक हैं और यह तय है कि राजसत्ता अपने लिए साहित्य कतई ज़रूरी नहीं मानती। वह शब्द की सत्ता से भय खाती है। शायद इसलिए भी कि शब्द व्यवस्था द्वारा ईजाद किये गये बाहरी उपकरणों पर आश्रित नहीं रहता और न नृत्य वगैरह की तरह मनोरंजनकारी होता है।" 'संवाद' खण्ड में सुप्रसिद्ध कवि त्रिलोचन, रघुवीर सहाय और सुप्रसिद्ध चित्रकार विष्णु चिंचालकर से लम्बी बातचीत है। पुस्तक में फिल्मकार ऋत्विक घटक और शास्त्रीय गायक कुमार गंधर्व पर भी महत्त्वपूर्ण आलेख हैं। अन्तिम खण्ड 'स्वगत' में 'एक बेतरतीब डायरी' शीर्षक से कवि समीक्षक के विगत दो-ढाई दशक के विचारों से हम अवगत होते हैं, जिन्हें पढ़कर पाठकों को नए तरह का आस्वाद मिलता है। कुलमिलाकर 'लेखक की रोटी' न सिर्फ शोधार्थियों, विद्यार्थियों के लिए वरन् किसी भी बौद्धिक, जागरूक पाठक के लिए एक अनिवार्य पुस्तक है।

विजय कुमार आठवें दशक के बाद के एक महत्त्वपूर्ण कवि हैं किन्तु अपनी कविताओं से ज़्यादा विगत दो दशकों की कविता पर एक गम्भीर मननशील, समीक्षक, विचारक के रूप में अधिक चर्चित हुए। 'कविता की संगत', उनकी महत्त्वपूर्ण आलोचना कृति है। 'संवाद', 'समागम', 'प्रसंग', 'बातचीत' और 'पत्र' खण्डों में बँटी इस पुस्तक में कविता क्या है? (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल) की तर्ज पर आज की कविता क्या है? पर महत्त्वपूर्ण सैद्धान्तिक आलेख हैं, जिनको पढ़े बिना आज की कविता का चेहरा स्पष्ट नहीं हो सकता। इन लेखों में 'क्या कविता गवाही देगी', 'आक्रोश से अवरोध तक', 'सन्नाटा छा जाये जब मैं कविता सुनाकर उठूँ' अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। आज के समाज में कविता कितनी ग़ैर ज़रूरी है, इस विषय पर विजय कुमार की चिंता अत्यन्त प्रासंगिक है। "आज यह विश्वास हिल-सा गया है। हम कविता लिखते हैं और अपनी ही बनाई हुई स्वप्निल दुनिया से बाहर आकर जब इस समाज में अपनी स्थिति को देखते हैं तो एक बुनियादी सवाल उठता है कि क्या इस समाज को सचमुच आज कविता की आवश्यकता रह गई है! ज़ाहिर है कि इस सवाल को उठाने के पीछे यह मंशा नहीं है कि कवि या कविता से समाज को कोई तत्काल लाभ हो जाये और एवज़ में कवि भी अपनी अर्थवत्ता को लेकर संतुष्ट हो जाये। ....मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि कविता समाज के मन की अन्त: तहों में जाकर अपना काम करती है। कविता इस काम को किसी भी उपयोगितावादी काम की तुलना में ज़्यादा सूक्ष्म और जटिल तरीके से करती है।.......जिन दो बड़े कवियों ने विगत दो दशकों में सृजनरत समकालीन कवियों को सर्वाधिक प्रेरणा दी है, विजय कुमार उनमें मुक्तिबोध और रघुवीर सहाय को मानते हैं। इन दोनों कवियों पर महत्त्वपूर्ण समीक्षात्मक आलेख हैं। इनके अतिरिक्त कुँवर नारायण, विष्णु खरे, लीलाधर, चन्द्रकान्त देवताले, सोमदत्त, मलय, ऋतुराज, आलोक धन्वा, मंगलेश डबराल, असद ज़ैदी, राजेश जोशी और विष्णु नागर जैसे महत्त्वपूर्ण समकालीन कवियों पर भी समीक्षात्मक आलेख हैं। विजय कुमार के लेखों को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि वे किसी उलझे हुए धागे को सुलझाते जा रहे हों। मुक्तिबोध और कुँवर नारायण की कविता जो अक्सर कठिन कविता मानी जाती है, के बहुस्तरीय अर्थों को वे आसान भाषा में इस प्रकार खोलते चले जाते हैं कि रोमांच होने लगता है। सहज भाषा में गहन समीक्षा कार्य करने वाले साहित्यकार हिंदी में कम ही हैं, विजय कुमार उनमें एक हैं। आज की कविता जिन लोगों के लिए लिखी जा रही है, उन्हीं तक नहीं पहुँच पा रही है, यह एक विडम्बना है इसीलिए ज्ञानेन्द्रपति समाज के जिन लोगों के लिए कविताएँ लिखते हैं उनका पहला पाठक उसी वर्ग चेतना का कोई व्यक्ति होता है। ज्ञानेन्द्रपति का मानना है कि "काव्य-सृजन के लिए मैं दृष्टि की वस्तुनिष्ठता का हिमायती हूँ। मुझे मेरी कविताएँ घूम-भटककर मिलती हैं लोगों के बीच........ आँख उठाकर उसे भीतर देखने भर की ज़रूरत है और तब, भीतर, कविता आँख खोलती है, वह सर्वथा नई आँख होती है।" 'पढ़ते-गढ़ते' कृति में ज्ञानेन्द्रपति की टिप्पणियाँ निबन्ध, आलेख, समीक्षाएँ, डायरी, साक्षात्कार से लेकर उनके कुछ पत्र तक सम्मिलित हैं। ज्ञानेन्द्रपति के काव्य विवेक की तरह उनका गद्य विवेक भी पुष्ट है। 'तब भीतर खोलती है कविता आँख', 'मुक्त छन्द को आख़िर क्या हुआ है', 'कविता में नए शब्द', 'उत्तर आधुनिक दुनिया में कविता' जैसे काव्य विवेक के निबंधों में जहाँ कविता के संदर्भ में बहुत-सी नई स्थापनाएँ हैं, वहीं निराला, त्रिलोचन, विजेन्द्र, लीलाधर जगूड़ी की कविता, शिव प्रसाद सिंह के कथा साहित्य और कुँवर नारायण की आलोचना दृष्टि पर महत्त्वपूर्ण समीक्षा आलेख इन साहित्यकारों को समझने के लिए हमारी दृष्टि का विस्तार करते हैं। पुस्तक के दूसरे खण्ड में ज्ञानेन्द्रपति से ओम निश्चल सहित अन्य साहित्यकारों से बातचीत के अन्तर्गत उन तमाम स्रोतों का पता चलता है, जहाँ से ज्ञानेन्द्रपति की कविताओं को जीवन मिलता है। कुलमिलाकर 'पढ़ते गढ़ते' कवि और आज की कविता को समझने के लिए निश्चित ही हमारे भीतर की आँख खोलती है। 'ईश्वर की आँख' समकालीन कविता के महत्वपूर्ण कवि, कथाकार उदय प्रकाश के निबन्धों एवं आलोचनात्मक लेखें का प्रथम संग्रह है। इनमें से अधिकांश विगत दो दशकों में साहित्य की अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर चर्चा का विषय बने। चार सौ पृष्ठों से अधिक कलेवर वाले इस ग्रन्थ को पाँच खण्डों में बाँटा गया है। पहले खण्ड 'समयबद्ध' में समय, समाज और साहित्य के अन्तर्सम्बन्धों के साथ अपने समय के मुख्यसरोकारों से सम्बन्धित आलेख हैं। दूसरे खण्ड 'बातचीत' में सुप्रसिद्ध समीक्षक नामवर सिंह के साथ उदय प्रकाश एवं उनके साहित्यिक मित्रों द्वारा लिए गए साक्षात्कार हैं, जिनके द्वारा समकालीन साहित्य पर महत्वपूर्ण विमर्श हुआ है। तीसरे खण्ड ‘व्यक्तिपरक’ में आधुनिक हिंदी साहित्य के कतिपय प्रख्यात साहित्यकारों नागार्जुन, रघुवीर सहाय, देवीशंकर अवस्थी, नामवर सिंह तथा भवानी प्रसाद मिश्र पर महत्त्वपूर्ण आलेख हैं। पुस्तक का चौथा और सबसे महत्वपूर्ण खण्ड ‘आकलन’ है, जिसमें विगत दो दशकों की कविता और कथा साहित्य की नये नज़रिये से परख की गयी है। अन्तिम खण्ड ‘सनद’ के अन्तर्गत कला, संस्कृति के साथ सिनेमा तथा अन्य समसामयिक विषयों पर उदय प्रकाश की तात्कालिक टिप्पणियाँ हैं। उदय प्रकाश की समीक्षा दृष्टि की यह विशेषता है कि उनके विचारों में कहीं भी द्वन्द्व नहीं है। उनके आलोचना विवेक एवं मूल्य चेतना के साथ ही भाषा की सहजता और ताज़गी पर कोई भी पाठक मुग्ध हो सकता है।

सन् 1980 ई० के आसपास समकालीन कविता को नई पहचान देने वाले कवियों में अरुण कमल सर्वोपरि हैं। ‘कविता और समय’ आपकी पहली आलोचना कृति है, जिसमें सन् 1980 ई० के बाद के लिखे आलोचनात्मक निबंध एवं टिप्पणियाँ संकलित हैं। पुस्तक में निराला, नागार्जुन, त्रिलोचन, शमशेर, रघुवीर सहाय, केदारनाथ सिंह, श्रीकान्त वर्मा, कुमार विकल, परमानन्द श्रीवास्तव तथा अशोक वाजपेयी की कविता पर महत्त्वपूर्ण आलोचनात्मक लेख हैं। पुस्तक में रघुवीर सहाय और मलयज के आलोचना कर्म पर एक महत्वपूर्ण आलेख है। विजयदान देथा की कहानियाँ, हरिशंकर परसाई के व्यंग्य और नामवर सिंह की आलोचना दृष्टि, विशेषत: उनकी संवादकला पर अरुण कमल ने नए ढंग से विचार किया है। ‘टिप्पणियाँ’ के अन्तर्गत अरुण कमल के महत्वपूर्ण विचार ‘कविता का आत्मसंघर्ष’, ‘जनतंत्र और आलोचना’, ‘इधर की हिन्दी कविता’ में नवें दशक तथा उसके बाद की हिन्दी कविता की मुख्य प्रवृत्तियों पर महत्वपूर्ण विमर्श हुआ है। ‘साहित्य क्या है’ तथा ‘साहित्य स्वायत्तता और सामाजिक परिवर्तन’ के साथ ‘कवि और कविता’ पर अरुण कमल की महत्त्वपूर्ण टिप्पणियाँ इस समीक्षा कृति को सार्थक बनाती हैं। यह कृति जहाँ एक ओर कविता में निराला से लेकर अद्यावधि महत्वपूर्ण कवियों के रचनात्मक वैशिष्ट्य को हमारे सामने प्रकट करती है, वहीं विगत दो दशकों में लिखी जा रही कविता में जीवन के अनेक पक्षों का उद्घाटन है। अरुण कमल की काव्य भाषा की तरह उनकी आलोचना की भाषा भी साफ-सुथरी दीप्ति से युक्त है, जिसमें झरने की तरह विचार फूटते रहते हैं।

कहानी, कविता, पत्रकारिता, भारतीय सिनेमा सहित कला एवं संस्कृति आदि विभिन्न विषयों के लेखन में सक्रिय विनोद दास की पुस्तक ‘कविता का वैभव’ समकालीन कविता की महत्त्वपूर्ण समीक्षा पुस्तक है। विनोद दास अपने समय की कविता को लेकर किसी भी प्रकार के व्यामोह का शिकार नहीं हैं वरन वे आज की कविता पर यह प्रश्नचिन्ह लगाते हैं कि आज की कविता अपने समाज को क्या दे पा रही है? कितने लोग उस कविता का आस्वाद ले पा रहे हैं? सामाजिक परिवर्तन की बात तो दूर, ऐसी कविता को वे प्लास्टिक के फूलों वाले बोध की कविता मानते हैं। वे लिखते हैं कि, "कई बार अपने आसपास के समाज से और ईश्वर से भरोसा उठता है तो हम कविता के पास भरोसे के लिए आते हैं। यह सही है कि इधर कवि अकेला हुआ है। जिन मूल्यों और प्रतिबद्धताओं के लिए अपनी कविताओं में आवाज़ उठाता है, उन्हें समाज में आगे ले जाने वाली शक्तियाँ कमज़ोर हुई हैं।" 'आधुनिक हिन्दी कविता के पाँच स्तम्भ' लेख के अन्तर्गत समीक्षक ने अज्ञेय, मुक्तिबोध, शमशेर, नागार्जुन तथा केदारनाथ अग्रवाल की काव्य दृष्टि का विवेचन किया है। त्रिलोचन, रघुवीर सहाय, विजय देव नारायण साही, कुँवर नारायण, केदारनाथ सिंह जैसे वरिष्ठ कवियों के साथ ही विष्णु खरे, मंगलेश डबराल, अरुण कमल, इब्बार रब्बी, विष्णु नागर और उदय प्रकाश जैसे महत्त्वपूर्ण और चर्चित कवियों पर महत्वपूर्ण समीक्षात्मक आलेख और टिप्पणियाँ हैं। समकालीन कविता के तीन वरिष्ठ कवि, जो महत्त्वपूर्ण आलोचक भी हैं, कुँवर नारायण, मलयज तथा अशोक वाजपेयी की आलोचना दृष्टि पर विनोद दास का लेख इस कृति को मूल्यवान बनाता है। एक सृजनकर्मी समीक्षक होने के नाते विनोद दास रचनाकारों की आलोचना करते समय तलवार नहीं भाँजते वरन् कवियों की काव्यानुभूति को विवेक सम्मत ढंग से हमारे सामने रेखांकित करते हैं।

‘कविता का आत्मपक्ष’ युवा कवि एकांत श्रीवास्तव की ऐसी गद्य कृति है, जिसके बारे में यह तय करना मुश्किल है कि यह समीक्षा कृति है, निबंध संग्रह है, डायरी है अथवा टिप्पणियों का संग्रह। इस कृति में साठ छोटे-छोटे निबंध हैं, जिनमें से अधिकांश अपने समय की कविता और कवि के साथ लेखक के आत्मसंवाद हैं। इन छोटे-छोटे निबंधों की यह विशेषता है कि इनमें एकांत की कविताओं की तरह जितना कहा गया है, उससे अधिक पाठकों को चिन्तन के लिए स्पेस है। एकांत के अनुसार, "कुल मिलाकर यह कि इस पुस्तक में मैंने कविता के अपने अनुभवों को शब्दबद्ध किया है।" इस कृति में एकांत ने कवि और उसकी कृति या कविता पर विचार करने के बजाय रचना प्रक्रिया पर अधिक विचार किया है। पुस्तक में ‘कविता का घर’, ‘लेखक की जमीन’, ‘कविता में चरित्र’, ‘बाज़ार में शब्द’, ‘रचना का अनुभव’, ‘कविता में आस्वाद की भूमिका’ के साथ रिल्के और शमशेर पर टिप्पणियाँ महत्वपूर्ण हैं। एकांत की कविता की तरह उनके गद्य में भी ऐसा आस्वाद है, जिसे बहुत दिनों तक भुलाया नहीं जा सकता। इन निबन्धों को पढ़ते हुए लगता है कि अलग-अलग निबंधों और टिप्पणियों के बावजूद एकांत का एक केन्द्रीय विचार इन्हें आपस में किसी अन्तर्सूत्र में बाँधे हैं।

इन कवि समीक्षकों ने अपनी बात या विचार के समर्थन में जहाँ पाश्चात्य या रूसी साहित्य समीक्षकों यथा- मार्क्स, दोसतोएव्स्की, गोर्की, पाब्लो नेरूदा, देरिदा, फूको और वाल्टर बेंजामिन को अनेकश: उद्धृत किया है, वहीं भारतीय काव्यशास्त्र (संस्कृत आचार्यों) की घोर उपेक्षा की है। शायद वे उन्हें आज भी कविता के मूल्यांकन में अप्रासंगिक लगते हैं। समग्रत: इन समीक्षाकृतियों में जहाँ एक ओर समकालीन कवियों की आलोचना दृष्टि का पता चलता है, वहीं दूसरी ओर अपने समय और समाज की कविता पर उनके विमर्श कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं।

0 Total Review

Leave Your Review Here

रचनाकार परिचय

राकेश शुक्ल

ईमेल : rakeshshukla940@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि22-04-1967
जन्मस्थान- फ़तेहपुर(उत्तर प्रदेश)
शिक्षा- एम० ए० (हिन्द), पी० एच० डी० 
संप्रति- प्रोफ़ेसर, हिन्दी विभाग , वी० एस० एस० डी० कॉलेज, कानपुर
प्रकाशन-
प्रकाशित पुस्तकें-
1.जलता रहे दीया (कविता संग्रह) सन् 2002 ई0
2.नई कविता में उदात्त तत्व (शोध-समीक्षा), 2008 ई0
3.उनकी सृष्टि अपनी दृष्टि (पुस्तक-समीक्षाएँ एवं टिप्पणियाँ), 2019 ई0
सम्पादित पुस्तकें-
1.छायावादोत्तर काव्य संचयन, 2005 ई0
2.हमारा समय और साहित्य, 2014 ई0
3.प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य, 2016 ई0
4.अद्यतन काव्य, 2016 ई0
5.हिन्दी काव्य, 2021 ई0
6.कार्यालयी हिन्दी और कम्प्यूटर, 2022 ई0
7.हिन्दी गद्य,  2022 ई0
प्रकाशित कार्य-
● 75 शोध पत्र राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में प्रकाशित।
● 50 से अधिक आलेख, एक दर्जन कहानियाँ एवं दो दर्जन से अधिक कविता, गीत, ग़ज़ल आदि प्रकाशित। 
● 100 से अधिक पुस्तक समीक्षाएँं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।
शोध निर्देशन- 16 विद्यार्थियों का शोध निर्देशन एवं 22 विद्यार्थियों के लघु शोध का निर्देशन। 
राष्ट्रीय संगोष्ठियों/ कार्यशालाओं में प्रतिभागः
● राष्ट्रीय एवं अन्य संगोष्ठियों में विषय विशेषज्ञ/अतिथि वक्ता के रूप में 100 से अधिक व्याख्यान।
● राष्ट्रीय संगोष्ठियों में प्रतिभागी के रूप में 50 से अधिक शोध पत्रों का वाचन।
सम्पादन-
● ’वन्दना डाइजेस्ट’ (साहित्य की त्रैमासिकी) कानपुर, सन् 2000 ई0 से 2008 तक।
● ’ऋतम्भरा’, कॉलेज की पत्रिका 2009 से अद्यावधि।
● ’पुनरीक्षण’, कॉलेज की पत्रिका, 1995-2008 तक।
सहभागिता/दायित्व- 
● उपाध्यक्ष, भारतीय विचारक समिति। 
● जनपद प्रभारी, अखिल भारतीय साहित्य परिषद (10 वर्षों तक)। 
● अनेक शैक्षिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में योगदान।
प्रसारण- आकाशवाणी लखनऊ से विभिन्न विषयों पर दो दर्जन से अधिक वार्ताएँ प्रसारित।
सम्मान- विभिन्न संस्थाओं द्वारा दो दर्जन सम्मान प्राप्त जिनमें कतिपय महत्वपूर्ण।
● कृति ‘जलता रहे दीया’ के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल श्री विष्णुकान्त शास्त्री द्वारा राजभवन में सम्मान।
● श्री महावीर प्रसाद दीक्षित अलंकरण (औरैया हिन्दी प्रोत्साहन निधि, 2003)
● हिन्दी साहित्य सेवा सम्मान कर्नाटक के राज्यपाल श्री टी०एन० चतुर्वेदी द्वारा (श्री महेश चन्द्र द्विवेदी ज्ञान प्रसार संस्थान, लखनऊ 2006)
● डॉ० रामविलास शर्मा समीक्षा सम्मान (अखिल भारतीय मंचीय कवि पीठ लखनऊ, 2012)
● ‘साहित्य श्री’ सम्मान गुजरात के राज्यपाल श्री ओ०पी०कोहली द्वारा (जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय युवा केन्द्र, कानपुर, 2016)
● भाषेन्दु भारती सारस्वत सम्मान (हिन्दी प्रचारिणी समिति कानपुर, 2016)
● सारस्वत सम्मान (प्रेस्टिज संस्था देवरिया, 2016)
● साहित्य सेवा सम्मान, बिहार के राज्यपाल श्री रामनाथ कोविंद द्वारा (भारतीय विचारक समिति, जून 2017)
● साहित्य भूषण सम्मान (अखिल भारतीय साहित्य परिषद, 2017)
● शिक्षक-साहित्यकार अलंकरण (शिवोऽहम संस्था, कानपुर, 2018)
● समीक्षा के लिए ‘इनोवेशन लीडरशिप एवार्ड’ (पं० बंगाल के राज्यपाल श्री केशरीनाथ त्रिपाठी द्वारा (पं0 विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक स्मारक समिति, कानपुर, 2018)
● पद्मश्री श्याम नारायण पाण्डेय स्मृति कीर्ति भूषण अलंकरण (केरल के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान द्वारा, 2022)
● हिन्दी भाषा रत्न मैथिलीशरण गुप्त सम्मान (इंटिग्रेटेड सोसायटी आफ मीडिया प्रोफेशनल्स द्वारा, 2022) 
अन्य- विभिन्न विश्वविद्यालयों में पी.एच.डी. के परीक्षक, विषय विशेषज्ञ चयन समिति, अनेक प्रान्तों के लोक सेवा आयोगों के विशिष्ट दायित्वों का निर्वहन।
सम्पर्क- ‘सांकृत्यायन’ 117/254-ए, पी-ब्लॉक हितकारी नगर, काकादेव, कानपुर(उत्तर प्रदेश)-208025      
मोबाइल- 983997046