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हिंदी काव्यधारा में एक नई शुरुआत : संन्यासी और जंगली हवा- सुजाता

हिंदी काव्यधारा में एक नई शुरुआत : संन्यासी और जंगली हवा- सुजाता

संन्यासी और जंगली हवा
(3-19वीं सदी तक की प्रमुख चीनी ज़ेन कविताएँ)
अनुवादक- जतिंदर औलख
प्रकाशक- वेरा प्रकाशन, जयपुर (राजस्थान)
संस्करण- प्रथम, 2024
मूल्य- 150 रुपये

संन्यासी और जंगली हवा जतिंदर औलख जी की अनूदित कविताओं का संग्रह है। इसमें 300 शताब्दी से 1950 तक की मुख्य चीनी ज़ेन कविताएँ उनके द्वारा अनुदित हैं। ये ज़ेन कवि बोध भिक्षु थे, जो भौतिक दुनिया की तामझाम से दूर कुदरत के अंग-संग जीवन व्यतीत करते थे। अकेले या मंडलियों में दूर-दूर तक भ्रमण करते, अध्यात्म व प्रकृति का रस लेते और कविताएँ लिखते। नदियाँ, झरने, पेड़, पहाड़, पक्षी, बादल सभी उनसे बातें करते थे। मुझे ये इस दुनिया की कविताएँ नहीं लगतीं। इनमें एक ख़ास तरह की सादगी, रवानगी और सरूर है, जो भीतर की गहराइयों को छूता है। पाठक इन्हें अवश्य पसंद करेंगे। यह कविता के क्षेत्र में एक नई तरह की शुरुआत है।

संग्रह में अलग–अलग कवियों को लिया गया है। कवि हुई युंग कहते हैं कि 'पोथियों और श्लोकों से जीवन के अर्थों को नहीं सुलझा सकते न ही उनमें दिव्यता की झलक मिल सकती है। उसके लिए सजग और होशपूर्ण होने की ज़रूरत है।' माओ ज़ेन 'हवा, चाँद, झरने की बूंदों प्रकृति के साथ मिलकर कविता रचते हैं।
कवि हुई को दर्शन का ताना-बाना बुनते इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि जीवन और मौत में बहुत कम अंतर है 'हर छिपे रहस्य को जान ही लेता है आत्मज्ञानी'।
सेंग शेन बहुत ही सरल शब्दों में कहते हैं कि यदि प्यार और घृणा से निर्लेप रहो तो मोक्ष संभव हो सकता है। भीतर सबकुछ शांत होते ही ब्रह्मांड से एकरूपता महसूस होने लगती है-

हो जाओ अपनी सोच और
कल्पनाओं से मुक्त
अपने संदेह और अनुभव से मुक्त
सब जगह शून्य है
एक है अनंत ब्रह्मांड

कवि पो चे कुदरत के साथ एकरूपता महसूस करते हैं-
गहरे चला गया हूँ अपने भीतर
स्थिर है मन
पहाड़ों पर
यही मेरा बसेरा
बहुत कुछ है सीखने को
लहरों पर डोलती
ख़ाली कश्ती से।

हमारे भीतर एक गहरा शून्य है और हमारी अस्तित्व की कश्ती यूँ ही डोल रही है, जब तक हम आत्म साक्षात नहीं कर लेते। कवि तुंग रोन लांग शे की कविता बहुत सुंदर है, पहाड़ों से उनका रिश्ता देखिए-

हरे-हरे पहाड़ों से
लिपटे रहते हैं
सफ़ेद बादल
बच्चों की तरह
और पहाड़
कभी नाराज़ नहीं होते।

सच तो यह है कि यही ब्रह्मांड हमारे अंदर है, बस मन को भीतर समेटने की बात है।

कवि हेन शेन भी ऐसी ही सोच रखते हुए एकांतवास की महत्ता बताते हैं-
मन को ठहराव में लाओ
तो बुद्ध आप में उतरेंगे

शिन तेय मठ में निवास करते हुए कुदरत के बदलते रंगों को निहारते हैं। उम्र ने इंसानों के चेहरे बदल दिए हैं जबकि ये पहाड़ सदैव खड़े हैं। पहाड़ों पर ही ज़िंदगी के सारे राज़ खुल सकते हैं।
प्रार्थना के लिए जगा रही मंदिर की घंटी क्या जगा पाएगी आत्मा को?
पहाड़ ही इनका घर है।

कुल मिला कर सभी कविताएँ बेहद सुंदर हैं। बर्फ, पक्षी, बादल, पेड़, हवा सब रंग बदल-बदल कर सामने आते हैं। प्रकृति के साथ इतनी एकरूपता और अध्यात्म की इतनी प्रकाष्ठा कि कुछ भी अलग नहीं। मौन के साथ इन कवियों का गहरा रिश्ता है और यही मौन शब्दों में अभिव्यक्त होकर सामने आया है।
सु हुसान की यह कविता मानो पूरे संग्रह का प्रतिनिधित्व करती है-

मेरा जानना चाहते हो नाम
एक पहाड़, एक पेड़
या बहती एक
ख़ाली कश्ती

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रचनाकार परिचय

सुजाता

ईमेल : sujata.manocha@gmail.com

निवास : अमृतसर (पंजाब)

जन्मतिथि- अप्रैल 1959
जन्मस्थान- हिमाचल प्रदेश
शिक्षा- एम०फिल० (हिंदी)
प्रकाशन/ प्रसारण- 'बर्फीला मौन जब पिघलता है', 'देखना तब' एवं 'धूप सहेली' काव्य पुस्तकें प्रकाशित प्रमुख पत्र–पत्रिकाओं में मूल एवं अनुदित रचनाएँ प्रकाशित। रेडियो, दूरदर्शन, कवि सम्मेलनों में भी हिस्सेदारी।
विशेष- अनुवाद में रुचि। पंजाबी और अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद।
निवास- अमृतसर (पंजाब)
मोबाइल- 9888569778