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जीवन की हकीकत की शायरी: पागल-पागल कहते लोग- के० पी० अनमोल

जीवन की हकीकत की शायरी: पागल-पागल कहते लोग- के० पी० अनमोल

पागल-पागल कहते लोग आसान भाषा और सरल कहन की अच्छी शायरी का पठनीय संग्रह है। आधारशिला प्रकाशन की अनुभवी टीम ने इसे साफ़-सुथरे और सुंदर ढंग से प्रकाशित किया है।

'पागल-पागल कहते लोग' आधारशिला पब्लिशिंग हाउस, चंडीगढ़ से प्रकाशित चरणजीत चंदवाल 'चन्दन' का तीसरा ग़ज़ल संग्रह है। 100 ग़ज़लों के इस संग्रह से गुज़रने पर जान पड़ता है कि इसका रचनाकार अपनी मौज का शायर है। शायरी के परंपरागत लबो-लहजे में जीवन और उसकी हकीकतें इनके शेरों के रूप में ढलती हैं। पारम्परिकता के बावजूद ग़ज़लकार की कहन का ढंग इनके शेरों को ख़ास बनाता है। इसके अलावा उनका ध्यान वर्तमान सामाजिक और राजनैतिक परिदृश्य पर भी है, जहाँ वे कुछ कड़वे घूँट शायरी की सुराही से पिलाते हैं।

इनकी मुखरता का ढंग देखिए-

सुनो इस दौर के नामा-गिरामो
ये ख़ामोशी तुम्हें महँगी पड़ेगी
__________

जो बादशाह ग़रीबों का ग़मगुसार नहीं
हो फिर ख़ुदा भी वो हम उसके पैरोकार नहीं
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ये सबको मझधार में जाकर छोड़ेगा
हमको खेवनहार डुबाकर छोड़ेगा

चरणजीत चंदवाल 'चंदन' की शायरी में कटाक्ष का भी तीखा रूप देखने को मिलता है। वे अपने आसपास बारीकी से नज़र रखते हैं और जहाँ कुछ बे-ढंगा देखते हैं, अपने व्यंग्य-बाण काम में लेते हैं। यहाँ ये अपने शेरों में बहुत कम शब्दों में, केवल इशारों में, बड़ी बातें समाहीत करते हैं-

अरे तुम बेसुरों के शहर में हो
इसी सुर-ताल में गाना पड़ेगा
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नींद में होते तो उठ भी जाते
जागते लोग झिंझोड़े उसने
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पोंछता फिरता है शाही जूतियाँ
आजकल अख़बार कितना गिर गया

अपनी ही धुन में रहते-गाते हुए चंदवाल जी, दुनिया और उसकी हक़ीक़त को बहुत क़रीब से समझते हैं। बहुत ज़रूरी होने पर ये सीमित शब्दों में बड़ी सरलता से कुछ जीवन-सूत्र हमारे सामने रख देते हैं। अगर ठहरकर, विचारकर देखा जाए तो ये सूत्र, जीवन को सँभालने तथा सँवारने में बहुत मददगार दिखते हैं-

नाहक उम्र गँवा देंगे
दो पल, दो पल कहते लोग
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कुछ भी कहिए मज़ाक में घर को
ये हसीं जेल भी ज़रूरी है
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किसी का कुछ नहीं बदला किसी के जाने से
किसी के वास्ते इक पूरी क़ायनात गयी
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जो हासिल है उसकी कहाँ कद्र कोई
जो जिसपे नहीं, वो वही ढूँढ़ता है

प्रेम चूँकि ग़ज़ल ही नहीं, जीवन का भी अभिन्न अंग है इसलिए इसके बग़ैर न जीवन पूर्ण है न लेखन। इस संग्रह में भी प्रेम अपनी पूरी चमक के साथ उपस्थित है। प्रेम इस संग्रह में पारम्परिक शैली के साथ अनेक रूपों में मिलता है। इन प्रस्तुत उदाहरणों में पूर्ण समर्पण, कुछ छेड़ और थोड़ी छटपटाहट देखने योग्य है-

तू ही हर सिम्त सुकूं है मेरा
तू ही हर सिम्त परेशान करे
__________

तेरे तीरे-नज़र के मारे क्यूँ
खौफ़ खाएँगे तोपख़ाने से
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ये हुनर भी तुझी को है हासिल
ज़ख़्म छेड़े तो तान निकले है

'पागल-पागल कहते लोग' आसान भाषा और सरल कहन की अच्छी शायरी का पठनीय संग्रह है। आधारशिला प्रकाशन की अनुभवी टीम ने इसे साफ़-सुथरे और सुंदर ढंग से प्रकाशित किया है। चरणजीत चंदवाल जी को संग्रह के प्रकाशन के लिए बधाई के साथ भविष्य के साहित्यिक सफ़र के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।

 

 


पुस्तक- पागल-पागल कहते लोग
विधा- ग़ज़ल (उर्दू)
रचनाकार- चरणजीत चंदवाल 'चंदन'
प्रकाशन- आधारशिला पब्लिशिंग हाउस, चंडीगढ़
संस्करण- प्रथम, 2025
मूल्य- 350 रुपये (सजिल्द)

1 Total Review

चरणजीत चंदवाल 'चन्दन'

18 May 2025

इस सुंदर समीक्षा के लिए मैं के पी अनमोल साहब का हृदय तल से आभारी हूं।सत कहूं तो बड़ी तमन्ना थी की कोई ऐसी शख्सियत मेरी शायरी पर कुछ कहे जो इस संग्रह को पढने से पहले मुझे बिल्कुल जानता पहचानता न हो। निष्पक्ष आकलन, समीक्षा या आलोचना अपरिचित व्यक्ति की ही मानी जाती है।

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रचनाकार परिचय

के० पी० अनमोल

ईमेल : kpanmol.rke15@gmail.com

निवास : रुड़की (उत्तराखण्ड)

जन्मतिथि- 19 सितम्बर
जन्मस्थान- साँचोर (राजस्थान)
शिक्षा- एम० ए० एवं यू०जी०सी० नेट (हिन्दी), डिप्लोमा इन वेब डिजाइनिंग
लेखन विधाएँ- ग़ज़ल, दोहा, गीत, कविता, समीक्षा एवं आलेख।
प्रकाशन- ग़ज़ल संग्रह 'इक उम्र मुकम्मल' (2013), 'कुछ निशान काग़ज़ पर' (2019), 'जी भर बतियाने के बाद' (2022) एवं 'जैसे बहुत क़रीब' (2023) प्रकाशित।
ज्ञानप्रकाश विवेक (हिन्दी ग़ज़ल की नई चेतना), अनिरुद्ध सिन्हा (हिन्दी ग़ज़ल के युवा चेहरे), हरेराम समीप (हिन्दी ग़ज़लकार: एक अध्ययन (भाग-3), हिन्दी ग़ज़ल की पहचान एवं हिन्दी ग़ज़ल की परम्परा), डॉ० भावना (कसौटियों पर कृतियाँ), डॉ० नितिन सेठी एवं राकेश कुमार आदि द्वारा ग़ज़ल-लेखन पर आलोचनात्मक लेख। अनेक शोध आलेखों में शेर उद्धृत।
ग़ज़ल पंच शतक, ग़ज़ल त्रयोदश, यह समय कुछ खल रहा है, इक्कीसवीं सदी की ग़ज़लें, 21वीं सदी के 21वें साल की बेह्तरीन ग़ज़लें, हिन्दी ग़ज़ल के इम्कान, 2020 की प्रतिनिधि ग़ज़लें, ग़ज़ल के फ़लक पर, नूर-ए-ग़ज़ल, दोहे के सौ रंग, ओ पिता, प्रेम तुम रहना, पश्चिमी राजस्थान की काव्यधारा आदि महत्वपूर्ण समवेत संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।
कविता कोश, अनहद कोलकाता, समकालीन परिदृश्य, अनुभूति, आँच, हस्ताक्षर आदि ऑनलाइन साहित्यिक उपक्रमों पर रचनाएँ प्रकाशित।
चाँद अब हरा हो गया है (प्रेम कविता संग्रह) तथा इक उम्र मुकम्मल (ग़ज़ल संग्रह) एंड्राइड एप के रूप में गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध।
संपादन-
1. ‘हस्ताक्षर’ वेब पत्रिका के मार्च 2015 से फरवरी 2021 तक 68 अंकों का संपादन।
2. 'साहित्य रागिनी' वेब पत्रिका के 17 अंकों का संपादन।
3. त्रैमासिक पत्रिका ‘शब्द-सरिता’ (अलीगढ, उ.प्र.) के 3 अंकों का संपादन।
4. 'शैलसूत्र' त्रैमासिक पत्रिका के ग़ज़ल विशेषांक का संपादन।
5. ‘101 महिला ग़ज़लकार’, ‘समकालीन ग़ज़लकारों की बेह्तरीन ग़ज़लें’, 'ज़हीर क़ुरैशी की उर्दू ग़ज़लें', 'मीठी-सी तल्ख़ियाँ' (भाग-2 व 3), 'ख़्वाबों के रंग’ आदि पुस्तकों का संपादन।
6. 'समकालीन हिंदुस्तानी ग़ज़ल' एवं 'दोहों का दीवान' एंड्राइड एप का संपादन।
प्रसारण- दूरदर्शन राजस्थान तथा आकाशवाणी जोधपुर एवं बाड़मेर पर ग़ज़लों का प्रसारण।
मोबाइल- 8006623499