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घुप्प अँधेरे में जुगनू-सी कविताओं का संग्रह- के० पी० अनमोल

घुप्प अँधेरे में जुगनू-सी कविताओं का संग्रह- के० पी० अनमोल

संग्रह की कुल 84 कविताओं में दो-एक लंबी कविताओं को छोड़, बाक़ी छोटी-छोटी कविताएँ हैं। अपने समय के ज़रूरी विषयों पर विमर्श करती इन कविताओं का कथ्य विविधता भरा एवं समसामयिक है। इस पूरे संग्रह में हमें जगह-जगह व्यंग्य नज़र आता है, जो इस पुस्तक का मूल स्वर नहीं तो मुख्य बिंदु तो कहा ही जा सकता है।

जब एक ही घर में रहना है  शैलेंद्र शांत जी का कविता संग्रह है। यह उनकी आठवीं कविता-पुस्तक है। संग्रह की कुल 84 कविताओं में दो-एक लंबी कविताओं को छोड़, बाक़ी छोटी-छोटी कविताएँ हैं। अपने समय के ज़रूरी विषयों पर विमर्श करती इन कविताओं का कथ्य विविधता भरा एवं समसामयिक है। इस पूरे संग्रह में हमें जगह-जगह व्यंग्य नज़र आता है, जो इस पुस्तक का मूल स्वर नहीं तो मुख्य बिंदु तो कहा ही जा सकता है। कवि की एक और बात प्रभावित करती है कि वे अपने समय की विसंगतियों पर बड़ी बेबाकी से प्रश्न उठाते हैं, कटाक्ष करते हैं। फिर चाहे बेलगाम होती राजनीति हो, भ्रष्ट अफ़सरशाही अथवा अपना स्वार्थ खोजती, बेपरवाह आम जनता, वे सभी को अपने व्यंग्य बाणों के घेरे में समेटते हैं।

कम शब्दों में बड़ी, ज़रूरी और मार्के की बातें कह देना भी कवि की एक विशेषता दिखती है। इसी कारण संग्रह की अनेक कविताएँ आकार में बहुत छोटी हैं। 'किल्लत' शीर्षक कविता इस बात का सटीक उदाहरण कही जा सकती है, जिसमें वे हमारे समय की सत्ता की मानसिकता को बहुत कम शब्दों में उगाजर कर देते हैं। 'नाहक' तथा 'विडंबना' भी इसी श्रेणी की कविताएँ है।

आवाजाही, जेबकतरा, तब आँखों से नदी बहाती थी माँ, धब्बा तथा लौटना शीर्षक कविताएँ पठनीय और उल्लेखनीय हैं। मेरे पाठक-मन को इन कविताओं ने सर्वाधिक प्रभावित किया। कविता 'आवाजाही' एक ओर पहाड़ के मुश्किलों भरे जीवन की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करती है, वहीं दूसरी ओर पलायन की समस्या पर भी बात करती है। कविता 'जेबकतरा' एक तानाशाह शासक पर बड़ी शालीनता से किया गया व्यंग्य है। 'तब आँखों से नदी बहाती थी माँ' एक मार्मिक रचना है, जो बच्चे को पीटने के बाद की उसकी मन:स्थिति का चित्र खींचती है। दूसरी तरफ यह कविता एक बेटे के लिए माँ की याद का एक 'टुकड़ा' है।

'धब्बा' कविता भी निरंकुश शासन के प्रति कवि का आक्रोश है। इसमें वह राजशाही तथा लोकतंत्र की जनता पर ज़्यादतियों को 'समानांतर' रख, शासन को आगाह करने का प्रयास करता है। 'लौटना' कविता में भी पलायन तथा शहरीकरण की समस्या को रेखांकित किया गया है।

जयपुर के वेरा प्रकाशन से अगस्त, 2024 में प्रकाशित यह संग्रह संकेतों में अपने दौर की विसंगतियों की पहचान करवाने के साथ-साथ निरंकुश समय में साहित्यिक मौन को तोड़ने का उपक्रम भी करता है। हालाँकि इसकी कुछ कविताएँ बहुत सामान्य-सी लगती हैं, जो 'आठवाँ' संग्रह होने के नाते हैरान करती हैं, बावजूद इसके कवि के अपने शब्दों में कविताओं का यह संग्रह 'घुप्प अँधेरे में जुगनू' की तरह है।

 


समीक्ष्य पुस्तक- जब एक ही घर में रहना है
विधा- कविता (मुक्तछंद)
रचनाकार- शैलेन्द्र शांत
प्रकाशन- वेरा प्रकाशन, जयपुर (राजस्थान)
संस्करण- प्रथम, 2024

 

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रचनाकार परिचय

के० पी० अनमोल

ईमेल : kpanmol.rke15@gmail.com

निवास : रुड़की (उत्तराखण्ड)

जन्मतिथि- 19 सितम्बर
जन्मस्थान- साँचोर (राजस्थान)
शिक्षा- एम० ए० एवं यू०जी०सी० नेट (हिन्दी), डिप्लोमा इन वेब डिजाइनिंग
लेखन विधाएँ- ग़ज़ल, दोहा, गीत, कविता, समीक्षा एवं आलेख।
प्रकाशन- ग़ज़ल संग्रह 'इक उम्र मुकम्मल' (2013), 'कुछ निशान काग़ज़ पर' (2019), 'जी भर बतियाने के बाद' (2022) एवं 'जैसे बहुत क़रीब' (2023) प्रकाशित।
ज्ञानप्रकाश विवेक (हिन्दी ग़ज़ल की नई चेतना), अनिरुद्ध सिन्हा (हिन्दी ग़ज़ल के युवा चेहरे), हरेराम समीप (हिन्दी ग़ज़लकार: एक अध्ययन (भाग-3), हिन्दी ग़ज़ल की पहचान एवं हिन्दी ग़ज़ल की परम्परा), डॉ० भावना (कसौटियों पर कृतियाँ), डॉ० नितिन सेठी एवं राकेश कुमार आदि द्वारा ग़ज़ल-लेखन पर आलोचनात्मक लेख। अनेक शोध आलेखों में शेर उद्धृत।
ग़ज़ल पंच शतक, ग़ज़ल त्रयोदश, यह समय कुछ खल रहा है, इक्कीसवीं सदी की ग़ज़लें, 21वीं सदी के 21वें साल की बेह्तरीन ग़ज़लें, हिन्दी ग़ज़ल के इम्कान, 2020 की प्रतिनिधि ग़ज़लें, ग़ज़ल के फ़लक पर, नूर-ए-ग़ज़ल, दोहे के सौ रंग, ओ पिता, प्रेम तुम रहना, पश्चिमी राजस्थान की काव्यधारा आदि महत्वपूर्ण समवेत संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।
कविता कोश, अनहद कोलकाता, समकालीन परिदृश्य, अनुभूति, आँच, हस्ताक्षर आदि ऑनलाइन साहित्यिक उपक्रमों पर रचनाएँ प्रकाशित।
चाँद अब हरा हो गया है (प्रेम कविता संग्रह) तथा इक उम्र मुकम्मल (ग़ज़ल संग्रह) एंड्राइड एप के रूप में गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध।
संपादन-
1. ‘हस्ताक्षर’ वेब पत्रिका के मार्च 2015 से फरवरी 2021 तक 68 अंकों का संपादन।
2. 'साहित्य रागिनी' वेब पत्रिका के 17 अंकों का संपादन।
3. त्रैमासिक पत्रिका ‘शब्द-सरिता’ (अलीगढ, उ.प्र.) के 3 अंकों का संपादन।
4. 'शैलसूत्र' त्रैमासिक पत्रिका के ग़ज़ल विशेषांक का संपादन।
5. ‘101 महिला ग़ज़लकार’, ‘समकालीन ग़ज़लकारों की बेह्तरीन ग़ज़लें’, 'ज़हीर क़ुरैशी की उर्दू ग़ज़लें', 'मीठी-सी तल्ख़ियाँ' (भाग-2 व 3), 'ख़्वाबों के रंग’ आदि पुस्तकों का संपादन।
6. 'समकालीन हिंदुस्तानी ग़ज़ल' एवं 'दोहों का दीवान' एंड्राइड एप का संपादन।
प्रसारण- दूरदर्शन राजस्थान तथा आकाशवाणी जोधपुर एवं बाड़मेर पर ग़ज़लों का प्रसारण।
मोबाइल- 8006623499