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आलोचना पुस्तक 'ग़ज़लकार डी एम मिश्र : सृजन के समकालीन सरोकार' का लोकार्पण

आलोचना पुस्तक 'ग़ज़लकार डी एम मिश्र : सृजन के समकालीन सरोकार' का लोकार्पण

अध्यक्षता करते हुए इंद्र कुमार दीक्षित ने कहा कि डी० एम० मिश्र की ग़ज़लें आम बोलचाल की भाषा में लिखी गई हैं, जो ग़ज़लों में नज़ाकत व नफ़ासत की उम्मीद करते हैं, वे निराश होंगे। वे मिट्टी की महक की बात ग़ज़लों में करते हैं। वे श्रम में सौंदर्य की तलाश करने वाले ग़ज़लकार हैं।

देवरिया। 'पतहर' पत्रिका के तत्वाधान में नागरी प्रचारिणी सभा के तुलसी सभागार में विभूति नारायण ओझा द्वारा संपादित आलोचनात्मक पुस्तक ग़ज़लकार डी० एम० मिश्र : सृजन के समकालीन सरोकार का लोकार्पण सहपरिचर्चा एवं काव्य पाठ का आयोजन संपन्न हुआ।

कार्यक्रम को विशिष्ट अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार, कवि, विचारक, संपादक कौशल किशोर ने कहा कि डी० एम० मिश्र समकालीन ग़ज़लकार हैं। इनकी ग़ज़लें हिन्दी की कविता की तरह समकाल से मुठभेड़ करती हैं। इनमें जीवन का एहसास है। गाँव की मिट्टी और आबो-हवा है। समाज का द्वन्द्व है। सत्ता और व्यवस्था से टकराती हैं। यदि प्रेम और करुणा है तो वहीं प्रतिरोध और अन्याय का प्रतिकार है। इनके यहाँ जो प्रतिरोध है, वह विरोध के आगे की चीज़ है। इनकी समझ है कि यदि अन्याय का प्रतिकार नहीं हुआ तो अत्याचारियों का मनोबल बढ़ेगा।

कौशल किशोर ने डी० एम० मिश्र की अनेक ग़ज़लों को उद्धृत करते हुए कहा कि दुष्यंत कुमार और अदम गोंडवी की परंपरा में इनकी ग़ज़लों को देखा जा सकता है। जहाँ व्यवस्था की विद्रूपताओं का उद्घाटन है, वहीं लोकजीवन के खूबसूरत बिम्ब और श्रम का सौंदर्य है। ये बदलाव की उम्मीद नहीं छोड़ती हैं। कहती हैं-

लंबी है ये सियाह रात जानता हूँ मैं
उम्मीद की किरन मगर तलाशता हूँ मैं
सहरा में खड़ा हूँ चमन की आस है मगर
कोई नया गुलाब खिले चाहता हूँ मैं

वर्तमान में यह इच्छा-आकांक्षा बड़े काम की है।

मुख्य अतिथि नगर पालिका अध्यक्ष श्रीमती अलका सिंह ने कहा कि ग़ज़ल लंबी कहानियों का संक्षिप्त रूप होती है। डी० एम० मिश्र की ग़ज़लों में पूरी दुनिया समाहित है। उन्होंने कहा कि डी० एम० मिश्र की रचनाएँ समाज को नई रोशनी देती हैं। हमारी कामना है यह निरंतर साहित्य सृजन में सक्रिय रहें और नये रचना संग्रह के साथ पुनः देवरिया आएँ।

समारोह में बीज वक्तव्य देते हुए डॉ० चतुरानन ओझा ने कहा कि डी० एम० मिश्र का सरोकार मेहनत और पसीने वालों से है। इनकी रचनाएँ सत्ता के गलियारों में आशिकी के नग़मे गाने और सुनने वालों के लिए किसी काम की नहीं हैं। संवादधर्मिता इसका ख़ास गुण है। अंदाज़ बतियाने का है, कहने का है। यह सीधे लोगों तक पहुँचती हैं। ग़ज़लों के लिए किसी आलोचक या व्याख्याकार की ज़रूरत नहीं है। जिस तरह दुष्यंत और अदम की ग़ज़लें ज़बान पर चढ़ जाती हैं, मिश्र जी की ग़ज़लों में भी यही ख़ासियत है।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए साहित्यकार अचल पुलस्तेय ने कहा कि डी० एम० मिश्र ने ग्रामीण जीवन के हालात को लेकर ग़ज़लें लिखी हैं, वे जनवादी कवि हैं।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार इंद्र कुमार दीक्षित ने कहा कि डी० एम० मिश्र की ग़ज़लें आम बोलचाल की भाषा में लिखी गई हैं, जो ग़ज़लों में नज़ाकत व नफ़ासत की उम्मीद करते हैं, वे निराश होंगे। इनकी ग़ज़लें हिन्दी की दुनिया में तेजी से लोकप्रियता पा रही हैं। वे मिट्टी की महक की बात ग़ज़लों में करते हैं। वे श्रम में सौंदर्य की तलाश करने वाले ग़ज़लकार हैं।

डी० एम० मिश्र ने 'पतहर' और इसके संपादक विभूति नारायण ओझा और उनकी टीम के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मौजूदा दौर ऐसा है, जहाँ हर अच्छी चीज़ को गंदला किया जा रहा है, ऐसे में झूठ को बे-नकाब करना, अन्याय का विरोध और सच के पक्ष में खड़ा होना ज़रूरी है। इस मौक़े पर उन्होंने कई ग़ज़लें सुनाईं। एक ग़ज़ल में वह कहते हैं-

फूल तोड़े गये टहनियाँ चुप रहीं
पेड़ काटा गया बस इसी बात पर

कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत 'पतहर' पत्रिका के प्रबंध संपादक चक्रपाणि ओझा ने किया। वहीं संचालन कवि सरोज पांडे ने तथा आभार ज्ञापन 'पतहर' के संपादक विभूति नारायण ओझा ने किया। इसके पूर्व विशिष्ट अतिथि डॉ० डी० एम० मिश्र को 'पतहर' पत्रिका की तरफ से मान-पत्र देकर नगर पालिका अध्यक्ष और संपादक विभूति नारायण ओझा ने सम्मानित किया।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में उपस्थित कवियों सर्व श्री कौशल किशोर मणि, योगेंद्र पांडेय ,दयाशंकर कुशवाहा, प्रेम कुमार मुफ़लिस, सौदागर सिंह, अंजलि अरोड़ा, सरोज कुमार पांडेय, इंद्र कुमार दीक्षित, क्षमा श्रीवास्तव, विकास तिवारी, योगेंद्र तिवारी योगी आदि कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ भी किया।

कार्यक्रम में मुख्य रूप से किसान नेता शिवाजी राय, संजय दीप कुशवाहा, रमाशंकर यादव, सुभाष राय, सर्वेश्वर ओझा, सौरभ मिश्रा, राम प्रकाश सिंह, सत्येंद्र यादव, विकास दुबे, कृष्णानंद पांडेय, सत्य प्रकाश सिंह, संतोष, डॉ० आलोक पांडेय, नित्यानंद त्रिपाठी, रानू पांडे, करन त्रिपाठी, सोनू सुजीत, विकास तिवारी, रमेश कुमार, क्रांति कुमार, राकेश कुमार, प्रभानंद तिवारी आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

कार्यक्रम का समापन पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा सैलानियों पर हमले के दौरान मारे गये लोगों के प्रति दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गयी। शोक संवेदना में कहा गया कि पीड़ित परिवारों के इस असह्य दुःख में हम सभी शामिल हैं।

(सौजन्य : चक्रपाणि ओझा)

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