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योगेश कुमार ध्यानी की कविताएँ

योगेश कुमार ध्यानी की कविताएँ

घूमा यह संसारा ख़ूब
इतना दरिया, इतना दरिया
आँखें जातीं ऊब

एक- इतना धीरे-धीरे

सब कुछ इतना धीरे होगा इतना धीरे-धीरे
मन भागेगा चीते-सा और जीवन चींटी जैसे

इतना लम्बा हो जायेगा दिन ये ढलते-ढलते
दरिया बाहर आ जायेगा कंकड़ भरते-भरते

इतना सारा आलस होगा नींद भरी आँखों में
हो जाएगी रात सुबह की आँखें मलते-मलते

बदन पड़ा होगा बिस्तर पर इतना ज़्यादा थककर
करवट इतनी लम्बी होगी ज्यों धरती का चक्कर

ऊँचे-ऊँचे पेड़ों वाला बिना धूप का जंगल
और ऐसे ही जाने कितने जंगल जितना हर पल

बीज को बरगद होने में जितनी लगती बरसात
इतनी लम्बी रात लगेगी इतनी लम्बी रात

लेकिन फिर एक दिन सबकुछ आ जाएगा अनुपात में
सूरज निकलेगा दिन में और चन्दा होगा रात में

उस दिन सारी दूरियाँ घटकर घेरे में आ जाएँगी
जिस दिन मेरी आँखें तुमको दृश्य में अपने पाएँगी

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दो- पानी-पानी जपने से

इतने सारे लोगों में
इक बस तुम हो अपने से

आँखों के आगे दुनिया
अलग है कितनी सपने से

क्या पा जाएँगे आख़िर
इस दरिया में खपने से

मत रोको मन का दरिया
दो पलकों के ढपने से

हम मछली हो जाएँगे
इक दिन देख तड़पने से

दरिया थोड़ी मिलता है
पानी-पानी जपने से

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तीन- इतना दरिया

घूमा यह संसारा ख़ूब
इतना दरिया, इतना दरिया
आँखें जातीं ऊब

दिवस-दिवस तक केवल पानी
न तो पर्वत, न ही चिड़िया
न ही दिखती दूब

अक्सर तो वह चुप ही रहता
कभी मगर कहता आँखों से
आकर मुझमें डूब

"तूने पार कराया यह जग"
कहकर नाव पुकारे,
"दरिया- ओ मेरे महबूब"

आख़िर में बस वही बचेगा
माल-जहाज-जहाजी सबकुछ
होगा यहीं गुरूब

इतना दरिया, इतना दरिया
आँखें जातीं ऊब।

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चार- थक जाऊँ तो सो जाऊँ

थक जाऊँ
तो सो जाऊँ

पास हो ऐसी नींद
इशारे पर जो चलती हो
इस दुनिया से ऊबूँ तो घर
जाकर सो जाऊँ

नींद में हो गर सपना कोई
उसमें दैत्य न हो
तुझको याद करूँ और तेरी
याद में खो जाऊँ

इंसानों के बीच फरिश्ते-सी
बस इक तुम हो
तुमको पाकर मैं भी बिलकुल
तुम-सा हो जाऊँ

ग़म बाँटे जो इतनी फ़ुरसत
है आखिर किसको
आँखों से कुछ नीर बहे तो
हल्का हो जाऊँ

थक जाऊँ तो सो जाऊँ।

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पाँच- गिरती दुनिया, पड़ती दुनिया

आनन-फानन चलती दुनिया
गिरती दुनिया, पड़ती दुनिया

झूल रहे हैं झोंकों में सर
सोते-सोते चलती दुनिया

अपने अन्दर सब रीते हैं
पानी बरसे भीगे दुनिया

आगे-पीछे धक्का-मुक्की
दाएँ-बाएँ डोले दुनिया

राशन बाँटे लाला भीतर
बाहर रेलम-पेलम दुनिया

सारी चीज़ें कितनी महँगी
भात और पानी खाती दुनिया

भारी भीड़ जिधर भी जाओ
फिर भी कितनी ख़ाली दुनिया

लाला अपनी तोंद संभाले
भूख का सौदा करता बनिया

क्यों सब भाग रहे हैं आख़िर
दूर से देखे, सोचे मुनिया

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3 Total Review

वसंत जमशेदपुरी

24 May 2025

निर्झर -सी प्रवाह मयी कविता

कैलाश मनहर

20 May 2025

सहज-सटीक-सरल-रोचक भाषा में लिखी उम्दा कविताओं के लिये बधाई

K

KP Anmol

19 May 2025

अपनी रवानी और विषयवस्तु में ये कविताएँ शीतल बयार-सी हैं। बहुत बधाई आपको।

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रचनाकार परिचय

योगेश कुमार ध्यानी

ईमेल : yogeshdhyani85@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि- 3 सितम्बर, 1983
सम्प्रति- मैरीन इंजीनियर
प्रकाशन- कविता संग्रह 'समुद्रनामा' प्रकाशित।
हंस, वागर्थ, आजकल, परिन्दे, कादम्बिनी, कृति बहुमत, बहुमत, किस्सा कोताह, प्रेरणा अंशु, वनप्रिया, देशधारा आदि पत्रिकाओं मे रचनाएँ प्रकाशित। हिन्दवी, पोषम-पा, जानकीपुल, इन्द्रधनुष, अनुनाद, कृत्या, लिखो यहाँ-वहाँ, बिजूका, नवरूपभ, मलोटा फोक्स, कथान्तर-अवान्तर, हमारा मोर्चा आदि साहित्यिक वेबसाइटों पर कविताएँ तथा लेख प्रकाशित। प्लूटो तथा शतरूपा पत्रिकाओं में बाल कहानियाँ प्रकाशित।
नोशनप्रेस की कथाकार पुस्तक में सन्दूक कहानी चयनित। एक अन्य कहानी गाथान्तर पत्रिका में प्रकाशित।
पोषम पा पर कुछ विश्व कविताओं के अनुवाद प्रकाशित।
कृति बहुमत तथा परिन्दे पत्रिकाओं मे विश्व कहानियों के हिन्दी अनुवाद प्रकाशित।
निवास- कानपुर (उत्तरप्रदेश)
मोबाइल- 9336889840