Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

शैलेन्द्र चौहान की कविताएँ

शैलेन्द्र चौहान की कविताएँ

असल में मैं कहीं नहीं हूँ
मेरे पास पैसे नहीं हैं
मै ग्रेजुएट हूँ घर पर बैठा हूँ
सपने हैं और सपने भी वैसे ही
जैसे टीवी सीरियल, सोशल मीडिया से

कहाँ हैं अब वो नक्शे-पा

गुंजलक है हर तरफ
नहीं चलता दिमाग़
क्या करना है
किसके लिए करना है
या सोचना है सिर्फ अपने बारे

कुछ सीखा था, पढ़ा था, सोचा था
वो नक्शे-पा धुंधले हुए
स्मृतियों में कुछ है जो
उभरता है कभी-कभी

कुछ परिजन, कुछ शिक्षक, कुछ मित्र
दादी का कंधे पर बिठाकर सिंहपुर मेला ले जाना
लकड़ी, प्लास्टिक और मिट्टी के
छोटे-छोटे आकर्षक खिलौने, बर्तन,
मिठाई, पूरियाँ और देशी आम

दूसरी दुनिया में स्कूल, शिक्षक और सहपाठी
ज़रूरतें सिर्फ एक जोड़ कपड़े, खाना और खेलना
न कुहासा, धुंध, न कोई चाहत
खुला आँगन, खुला आसमान
दुख, सुख क्षणिक
छोटी थी दुनिया
श्रम, संतोष, सहजता, सहिष्णुता
कम विवाद, संवाद अधिक

तेज धूप, लू, उड़ती धूल
आँखों में किरकिराती
हल, बैल, गाय, भैंस, बकरियाँ
चौमासा, कीचड़, खरीफ़ की फसल
मक्का, ज्वार. बाजरा
चौपाल, आल्हा, रामचरित मानस
शिशिर, हेमंत, रबी की फसल
आलू, गुड़, गन्ना
अलाव, विबाइयाँ, सरसों के तेल की मालिश

हायर सेकंडरी स्कूल
फर्क आर्ट, साइंस, कॉमर्स का
क्या बनना है
बाबू, शिक्षक, इंजीनियर, डॉक्टर, वकील
कुछ सपने, कुछ आशंकाएँ
व्यवसायिक शिक्षा

साहित्य, पत्रिकाएँ, लायब्रेरी, विचार, राजनीति, दर्शन
पूँजी, मनुष्यता, समाज, समता
बहसें, विचारधारा
वसुधैव कुटुंबकम
प्रसाद, पंत, निराला
मुक्तिबोध, नागार्जुन, त्रिलोचन
नेहरू, लोहिया, अटल, पीसी जोशी, डांगे,
ईएमएस, ज्योति बसु, पटनायक, मजूमदार

नौकरी, विवाह, परिवार
बदल रहा था बहुत कुछ
रफ्तार धीमी थी तब
जिज्ञासा बहुत थी

उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण, उत्तर आधुनिकता
रथ यात्रा, बाबरी मस्जिद, गुजरात
मन में उठते सवाल
स्वाधीनता और कुर्बानियाँ अनेक
भगत, सुखदेव, राजगुरू, बिस्मिल, आजाद, अशफ़ाक
नक्शे-पा धुंधलाए कुछ और

बढ़ी आवारा पूँजी
बढ़ी परिवर्तन की गति
युवा पीढ़ी के अपने पैमाने, सपने, आदर्श
टेक्नोलॉजी, सूचना प्रौद्योगिकी, मनःस्थिति
चौंधियाई आँखें
मिटे नक्शे-पा

रास्ते अनेक, अनेक भ्रम
लकीर पीटते रहे हम
धुंधली आँखों से देखते गुबार
शायद कोई सपना पल रहा होगा
नई आँखों में

**********


आशंका है

न ट्रेन गुजरेगी
न पुल थरथराएगा
न जंगल में शिकार के लिये
कोई हाँक लगाएगा
न दिखेगा बस अड्डे पर इक्का
न बस कंडक्टर बुलायेगा

पानी बिच मीन प्यासी
खेतों में भूख उदासी
गिर्दा ये न गुनगुनाएगा
"नीलोफ़र शबनम नहीं अंगार की बातें करो
वक़्त के बदले हुए मेआर की बातें करो"
अब अदम न सुनाएगा

नफ़स-नफ़स क़दम-क़दम
बस एक फ़िक्र दम-ब-दम
घिरे हैं हम सवालों से
हमें जवाब चाहिए
क्या हुआ? शलभ से कौन पूछ पाएगा

अब न साहिर हैं, न फैज़
सुनने वाला भी न अब कोई
हर ओर घना कुहासा है
तय है इक दिन ये छँट जाएगा

लेकिन वक़्त गुज़रेगा बहुत
भक्त भजन गाएगा
आँखें बंद कर वह दोहराएगा
'दास जनन के संकट क्षण में दूर करे
भक्त जनन के संकट क्षण में दूर करे'
और जब संकट आएगा
रास्ता न सूझेगा
भड़भड़ाएगा
तब बचाने कोई न आयेगा

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भीड़तंत्र

बहुत भीड़ है भाई, बहुत भीड़ है
हम एक सौ चवालीस करोड़ हैं

पाँच किलो अनाज पर ज़िंदा हैं अस्सी करोड़
और बीस करोड़ कमा पाते हैं बमुश्किल डेढ़ लाख से पंद्रह लाख

बीस करोड़ हैं जो कमाते और बनाते हैं
पंद्रह लाख से पंद्रह करोड़
टिका है सारा बाज़ार इन्हीं पर
गाड़ियाँ, उपभोग का सब सामान
माल में दिखती भीड़ इन्हीं की है
फूड कोर्ट, पीवीआर इन्हीं से आबाद हैं
हवाई अड्डों पर दिखती ज़्यादा इन्हीं की आवक-जावक
ये हैं मसरूफ़ अपने आप में
राष्ट्र और धर्म के ध्वजवाहक
अस्सी करोड़ के प्रति हिकारत से चलता इनका जीवन-व्यापार

बीस करोड़ रहते हैं प्रमाद में अपने वैभव के
सत्ता के परम सहयोगी
एक सौ बीस करोड़ के कंधों पर सवार
हर तरह की लूट में शामिल
निज स्वार्थ में सदा लीन
नीति-अनीति से नितांत अप्रभावित

बचते हैं चार करोड़
पचास प्रतिशत से अधिक संपत्ति और संसाधनों पर
है इनका कब्ज़ा
भीड़ इन्हीं के इशारों पर नाचती है
एक सौ चालीस करोड़ कठपुतलियाँ
भाँति-भाँति से करती हैं इनका मनोरंजन

ये कौन हैं?
पूछा है तो बताना ही पड़ेगा
सीधी-सी बात है, आप समझें न समझें
दरअसल ये हैं असल डकैत
इससे बेहतर कोई और शब्द फ़िलहाल
समझ में आ नहीं रहा

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सपने

सपोले मेरे आसपास घूम रहे हैं
गले में नाग हैं
मैं रेव पार्टी में हूँ
मैं एल्विस यादव का प्रतिद्वंद्वी हूँ
चख रहा हूँ साँप का ज़हर, वेनम
एल्विस का प्रहार भारी है

मेरे पास पाँच ग्राम हेरोइन है
मैं आर्यन खान हूँ
मुंबई में उस वोयेज शिप पर
जिस पर हो रही है रेव पार्टी

मैं ड्रग का कारोबारी हूँ
उड़ रहा हूँ पंजाब में
मूंद्रा पोर्ट पर हेरोइन आयात की खेप में हूँ
पंजाब में मजीठिया की शरण में हूँ

पैसा ही पैसा है
मैं फ्यूचर गेमिंग कंपनी में हूँ
छाप रहा हूँ लॉटरी और नोट साथ-साथ
मैं इलेक्टोरल बांड हूँ
राजनीतिक पार्टियों का चंदा हूँ
मैं इन्कम टैक्स, ईडी, सीबीआई हूँ
मैं अयोध्या में हूँ
रामलला की झलक पाने के लिए व्यग्र

सपना था ख़त्म हुआ
सुबह-सुबह
वास्तव में मैं अस्सी करोड़ ग़रीबों में हूँ
पाँच किलो अनाज लेने दौड़ रहा हूँ
राशन की दुकान की ओर
थक कर चूर लौटा हूँ घर

मैं मतदान के लिए लाइन में हूँ
ईवीएम बटन दबाने के लिए प्रतीक्षा में

असल में मैं कहीं नहीं हूँ
मेरे पास पैसे नहीं हैं
मै ग्रेजुएट हूँ घर पर बैठा हूँ
सपने हैं और सपने भी वैसे ही
जैसे टीवी सीरियल, सोशल मीडिया से
देखना सीखा है
बॉलीवुड और राजनेताओं से सीखा है
महँगी गाड़ियाँ, महँगे होटल
चमक-दमक
अपराध करना अब आदर्श है
मैं नये भारत में हूँ

नौ बज गये हैं
गहराई है धूप
लेबर चौक पर भीड़ है
किसको मेरी ज़रूरत है
यह परख रहा हूँ मैं

3 Total Review

डा रामशंकर तिवारी

27 May 2025

बहुत सामयिक कविताएँ, जैसे हम सभी के दिलों की अभिव्यक्ति । शैलेंद्र जी बहुत बढ़िया लिखते हैं, सच लिखते हैं .

भानु प्रकाश रघुवंशी

22 May 2025

सभी कविताएं अच्छी है। शैलेन्द्र चौहान सर को मेरी ओर से हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

वसंत जमशेदपुरी

20 May 2025

सपने शीर्षक कविता अच्छी लगी

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रचनाकार परिचय

शैलेंद्र चौहान

ईमेल : shailendrachauhan@hotmail.com

निवास : जयपुर (राजस्थान)

जन्मतिथि- 8 फरवरी, 1954
शिक्षा- बी०ई० (इलेक्ट्रिकल)
संप्रति- नियमित लेखन एवं स्वतंत्र पत्रकारिता
प्रकाशित पुस्तकें-
कविता संग्रह- ’नौ रुपये बीस पैसे के लिए’, ’श्वेतपत्र’, ’और कितने प्रकाश वर्ष’, ’ईश्वर की चौखट पर’, 'सीने में फाँस की तरह', 'चयनित कविताएँ',
कहानी संग्रह- ’नहीं यह कोई कहानी नहीं’, 'गंगा से कावेरी'
कथा रिपोर्ताज- 'पाँव ज़मीन पर'
आलोचना पुस्तक- 'कविता का जनपक्ष'
अन्य- 'भारत का स्वाधीनता संग्राम और क्रांतिकारी'
संपादन- रामकिशोर मेहता का रचना संसार, ’धरती’ अनियतकालिक साहित्यिक पत्रिका
निवास- जयपुर (राजस्थान)