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इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

जीनस कँवर की कविताएँ

जीनस कँवर की कविताएँ

अब वो मुझे प्रेम कहकर
सम्बोधित नहीं करता है
अब पेड़ कहता है
मुझे मेरा चाहने वाला

अक्षत भाल

आज फिर
सुख का सूरज उदय होगा
उम्मीद की किरणें बिखेरती उग आयेगी उषा

आज फिर
गल जाएँगी तमाम दु:खद स्मृतियाँ
यह सोचते-सोचते
दिन ढल जाएगा
हो जाएगी संध्या

आज फिर
गुनगुनाऊंगी मैं
भैरवी थाट से उत्पन्न
रात्रि के तीसरे पहर गाए जाने वाला
शिव-प्रिय राग मालकौंस

आज फिर
हमारे प्रेम के
अक्षयवट से फूटेंगे
अंकुर नए

आज फिर
तिथियों के अक्षत भाल पर लिखूँगी
तुम्हारे प्रेम की ख़ुशबू से तर दश रस कविताएँ

**********


धत् यह मैंने क्या किया

वैसे तो वय में थिरता आने से पूर्व ही
मुझे निकल पड़ना था
देश-विदेश की यात्राओं पर
चले जाना चाहिये था
वहाँ पर जहाँ से
हिम श्रृंग शिखर का
अंतहीन छोर नज़र न आता हो

या फिर जहाँ ज़मीन भी
नज़र न आए
घने जंगल में
ऐसे ही मुझे भटकते हुए
जा मिलना था
किसी साधु-संत के झुण्ड से
करनी थी
औचक संग शास्त्र चर्चाएँ

सीखनी थी
कठिनतम योग क्रियाएँ
और गुफाओं में बैठ जापने थे
जागृत अपराजित बीज मंत्र

या फिर सामाजिक सरोकार से प्रेरित हो
अव्यवस्थाओं से लोहा लेना था
बैठना था धरनों पर
लगाने थे नारे
या चूम कर माथा
अपने बेटे को
भेज देना था सेना में

पर मैंने
ऐसा कुछ भी नहीं किया
बस मोह तरूवर में
तन्वंगी लता-सी लिपट
निमग्न हो प्रेम किया

भाव की कलम से
अनवरत पानी पर लिखे
आश्वस्ति से भरे प्रणयगीत

धत् मैं मूर्खा ने यह क्या किया

**********


दर्द

जीवन में पहले से ही तमाम दुख थे
फिर एक दिन प्रेम आया
तो दर्द से रिश्ता ओर भी गहरा हो गया

और कर भी क्या सकती थी
सिवाय स्वीकारने के
सो अपना लिया उसे भी
अपनी किस्मत जानकर

दर्द के बदले में दर्द मिलता है सुना था
पर प्रेम के बदले में दर्द मिला
यह पहली बार देखा सुना मैंने

इस तरह दुख का पर्याय
और सुख का विलोम रही मैं

**********


पेड़ बन जाती हूँ

मैं अंतरंग क्षण में भी
उसे प्रेम नहीं कहती हूँ
मैं उसे पेड़ कहकर
सम्बोधित करती हूँ

और वो किसी छायादार
वटवृक्ष-सा हो
मुझ पर छा जाता है
मेरी देह की सारी धूप को
अपने भीतर सोख लेता है
अपने आलिंगन की
शीतल छाँह से ढांप लेता है

तब पुष्प लकदक होते हैं
मन के हर्षण से
और मेरा अंग-प्रत्यंग
खिल उठता है

तब मैं फलदार वृक्ष में
तब्दील हो जाती हूँ
और संगत से मैं भी
पेड़ बन जाती हूँ

अब वो मुझे प्रेम कहकर
सम्बोधित नहीं करता है
अब पेड़ कहता है
मुझे मेरा चाहने वाला

**********


हवा-पानी-रोशनी जितनी ज़रूरी

आज मैं
एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर गई हूँ
जहाँ शब्द माँजकर
चमकाये जाते हैं

यहीं पर एक मैं हूँ
जो ध्यान मंत्र से
अभिमंत्रित अनगढ़
लिखती हूँ कविताएँ

जलकुम्भियों से भरे
इस संसार में
जहाँ होने से अधिक महत्वपूर्ण
दिग्भ्रमित विद्वता से
पाखंड रच लेने के
हुनर पर ज़ोर है

यहीं पर एक मैं हूँ
जो सीधे-सीधे कहती हूँ
कि हवा-पानी-रोशनी से भी ज़रूरी
लिखती हूँ कविताएँ

घटते जीवन मूल्य
परिवर्तन की आहटें
जहाँ दिन-रात
दसों दिशाओं में बहती हैं

यहीं पर एक मैं हूँ
जो शाश्वत सत्य
प्रेम को निर्मल भाव से
बचा लेने की जिद्द में
लिखती हूँ कविताएँ

1 Total Review

निर्मल प्रवाल

10 January 2025

बहुत सुंदर रचनाएँ। बचा लेने की जिद्द में लिखती हूं कविताएं। बहुत खूब। बधाइयां शुभकामनाएं।

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रचनाकार परिचय

जीनस कँवर

ईमेल : jeenaskanwar123@gmail.com

निवास : जयपुर (राजस्थान)

शिक्षा- स्नातकोत्तर (हिंदी एवं राजनीतिक विज्ञान), बी० एड, नेट, शास्त्रीय संगीत गायन में विशारद
सम्प्रति- हिंदी, राजस्थानी भाषा में लेखन
प्रकाशन- एकल काव्य संग्रह 'मन के रंग हज़ार' प्रकाशित। दैनिक नवज्योति, स्वर सरिता, आदिज्ञान, मधुमति आदि पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
प्रसारण- आकाशवाणी पर कार्यक्रम प्रसारित
सम्मान- नारी गौरव एवं शब्द श्री सम्मानों से विभूषित
निवास- शास्त्री नगर, जयपुर (राजस्थान)