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रश्मि रविजा की कहानी 'चुभन टूटते सपनों के किरचों की'

रश्मि रविजा की कहानी 'चुभन टूटते सपनों के किरचों की'

'काँच के शामियाने' उपन्यास से चर्चा में आयीं रश्मि रविजा, जानी-मानी कथाकार और ब्लॉगर थीं। पिछले कुछ वर्षों में लेखन के साथ ही पक्षियों के प्रति अपने प्रेम के कारण भी उन्हें आदर से देखा गया। इसी वर्ष उन्होंने पक्षियों पर केन्द्रित एक कैलेंडर भी प्रकाशित कराया था। कैंसर की बीमारी ने कुछ ही समय पूर्व उन्हें असमय हमसे छीन लिया। रश्मि रविजा की इस कहानी के माध्यम से 'इरा परिवार' उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

- गंगाशरण सिंह

अपना तकिया, अपना बिस्तर, अपनी दीवारें...और अपना ख़ाली-ख़ाली-सा कमरा, जिसने पूरे चौबीस साल तक उसकी हँसी-ख़ुशी-ग़म-आँसू सब देखे थे। उसके ग़मज़दा होने पर कभी पुचकार कर अंक में भर लेता, कभी शिकायत करता इतना बेतरतीब क्यूँ रखा है तो कभी सजाने-सँवारने पर मुस्कुरा उठता। पिछले पाँच बरस से जब-जब अपने कमरे में आती है, लगता है जैसे शिकायत कर रही हो दीवारें, इतने दिनों बाद सुध ली? तकिये पर सर रखते ही लगा, उसी पुरानी ख़ुशबू ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है. पलकें मुंदने लगी थीं।

पलकों को जगाये रखने की वजहें भी आज नहीं थीं। कहीं किचन में कुछ फ्रिज में रखना या दही का जमान डालना तो नहीं भूल गयी? दरवाज़े के बाहर याद से थैली टाँगी ना! नहीं तो दूधवाला वहीं डोरमैट पर दूध के पैकेट्स डाल, चलता बनेगा। सब जगह की लाईट-फैन बंद किए या नहीं। सिलसिलेवार ढंग से सब याद कर, थका शरीर नींद की आगोश में तो चला जाता है पर सुकून की नींद कहाँ नसीब! आर्यन को रातभर चादर उढाओ, और इतने एहतियात से कि ज़रा करवट बदलने की आवाज़ भी न हो वरना सुनील का खीझा स्वर सुनाई देगा, "दिनभर खटकर आओ और चैन की नींद भी नहीं नसीब।" गुस्सा आ जाता उसे, जैसे वह सारा दिन राज-गद्दी पर आराम फरमा रही हो। फिर रातभर रेंगते हाथों के स्पर्श की आशंका तो बनी ही रहती। आज आर्यन तो माँ के पास सोया है और सुनील दौरे पर हैं। अच्छा हुआ सिम्मी की ज़िद पर रुक गयी। दिनों बाद पुरसुकून नींद मिलेगी उसे। इन आशंकाओं से परे क्या पता मीठे सपने भी आ जाएँ। आजकल तो सपने भी यही आते कि 'दरवाज़ा चेक नहीं किया और कोई घुस आया घर में' या 'दूध फ्रिज में रखना भूल गयी और दूध फट गया। अब आर्यन रो रहा है। सुनील चाय के लिए आवाज़ें लगा रहे हैं...क्या करे'।

अंतिम बार कब देखा था, कोई ख़ुशनुमा सपना? वो फूलों से भरी घाटियाँ, बर्फ लदी चोटियाँ या फिर चाँदनी रात में दूर तक जाती ठण्डी, अकेली सड़क। सुन्दर सपनों की सोचकर ही मीठी-सी मुस्कान फ़ैल गयी थी चेहरे पर। सचमुच वो यह सब सोच रही है या सच में सपना ही देख रही है! पलकें भारी होने लगी थीं कि सिम्मी की फुसफुसाहट सुनायी दी, "दीदी दीदी, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"
"हम्म..." उसने आँखें नहीं खोलीं।
"दीदी...!" सिम्मी ने फिर झकझोरा।
"सिम्मी प्लीज़, कल बता देना। सोने दे आज।"
"ना आज....अभी।"
"हम्म.. तेरी फिर से अनीता से अनबन हो गयी!" नींद थोड़ी-थोड़ी खुलने लगी थी।
"ना..."
"तो नया क्या होगा? वो नई सहेली तेरा एडवांटेज ले रही है? भाव देना बंद कर दे उसे। चल, अब सोने दे।"
"दीदी...तुम उठ कर बैठो....और पूरी बात सुनो।"
"ओह! फिर ज़रूर सेवेंथ फ्लोर वाले अंकल को लिफ्ट में देख तुझे स्टेयरकेस से जाना पड़ा।"
"अब मैं नहीं डरती उनसे। अगर अब कभी बेटी-बेटी कह कर कंधे पर हाथ रखा ना तो ऐसी किक मारूंगी कि परलोक ही सिधार जाएँगे!" इतनी तेज़ आवाज़ में कहा सिम्मी ने कि नींद पूरी तरह खुल गयी...पर आँखें खोलने का मन नहीं हो रहा था।
"तो बता ना फिर क्या बात है?"
"तुम मुझे बताने भी दे रही हो! ख़ुद ही अँधेरे में तीर फेंके जा रही हो!"
"हम्म...गौट इट। सब सहेलियाँ, जैसे ही टाइम मिले अपने बॉयफ्रेंड से 'एस एम एस' चैटिंग में बिजी हो जाती हैं और तू बोर होती रहती है।" अंतिम पासा फेंका शायद यह सही हो और वह दो मिनट में उसे थोड़ा ज्ञान दे, वापस सोने चली जाए। पर आगे जो सिम्मी ने कहा, उससे तो आँखें अपनी पूरी चौड़ाई में खुल गयीं।
"नहीं, अब मैं बोर नहीं होती क्यूंकि अब मेरा भी बॉयफ्रेंड है।" सिम्मी ने चहककर कहा।
"आएँs..." उसने करवट बदल ली उसकी तरफ। "कब हुआ ये? कौन है?"

सिम्मी पलंग से कूद, धीरे-से दबे पाँव जाकर दरवाज़ा सटा आयी। "मम्मी तो बातें सुनती नहीं, सूंघ लेती है। उन्हें तो ख़ुशबू आ जाती है। बाप रे! कैसे जान लेती हैं सब! तुम कभी ऐसी माँ मत बनना। ज़रा भी प्रायवेसी नहीं।"
"सिम्मी, इस मेट्रो में दो-दो लड़कियों को बड़ा करना मज़ाक है? और वो भी तेरी जैसी तेज़-तर्रार! बीस आँखें रखनी पड़ती हैं।" अब नींद को तिलांजलि दे ही दी थी उसने। "छोड़ वो सब, अब बता पूरा किस्सा।"
"बता तो दिया!" अब सिम्मी भाव खा रही थी।
"मेरी इतनी प्यारी नींद ख़राब कर बस तुझे एक लाइन में यही कहना था!" गुस्सा आ गया उसे।
"तो और क्या बोलूं?" लाली छिटक आई थी सिम्मी के चेहरे पर। कुशन गोद में दबाये यूँ ही आगे-पीछे झूल रही थी।
वो भी उठ बैठी। "कौन है ये पहले ये बता।"
"तुम उसे जानती हो।"
"नाम।"
"रोहन।"
"वो रुमा आंटी का बेटा?" अविश्वास हुआ था उसे। वो कहीं से भी सिम्मी के मैच का नहीं था। सीधा-साधा। पास की बिल्डिंग में ही रहता था। बचपन में साथ खेला करता था। पर उसके साथ, सिम्मी के नहीं। सिम्मी तो तब छोटे में आती थी। उनका ग्रुप अलग हुआ करता था। रोहन कभी खेल में झगडा नहीं करता। क्रिकेट में कई बार आउट न होने पर भी दूसरे को बैटिंग दे देता। झगडा सुलझाने को झूठ-मूठ को सॉरी भी बोल दिया करता। वह उसके स्वभाव को हमेशा उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि से जोड़ती। रुमा आंटी डिवोरसी थीं। अकेले दम पर बड़ा किया उन्होंने रोहन को। उनकी कोई नौकरी भी नहीं थी। बस फ़्लैट अपना था। पर वो ट्यूशन लेतीं, क्रेच चलातीं, ग्रीटिंग्स कार्ड बनातीं, गिफ्ट बॉक्स भी बनातीं और अचार, चटनी, चकली भी। कभी दुकान पर बेचने भी नहीं गयीं, ना रोहन को इन्वॉल्व किया। आस-पास की औरतें ही ख़रीद लेतीं ये सब और ऑर्डर भी दिया करतीं। माँ भी हमेशा उनसे ही अचार-चटनी लिया करती। उनकी तारीफ़ करते नहीं थकती। तारीफ़ तो वो रोहन की भी कम नहीं करतीं। बचपन में बर्थडे पार्टी में रोहन आया करता पर हमेशा हेल्प करने को तत्पर। बाकी बच्चे शोर मचाते रहते। यहाँ तक कि वो भी सहेलियों से गप्पों में मशगूल रहती। माँ के दस बार बुलाने पर भी अनसुना कर देती और वहीं रोहन, माँ के हाथों से ट्रे थाम लेता। प्लेटें लगाता। इधर-उधर गिरे ग्लास भी इकट्ठा कर डस्टबिन में डाल आता।

पार्टी के बाद भी माँ उसे रोहन का उदाहरण देतीं पर उसे कभी रोहन से इर्ष्या नहीं हुई या गुस्सा नहीं आया। वो था ही इतना शांत और हँसमुख कि उससे लड़ने का ख़याल भी नहीं आता। उससे दो क्लास नीचे था। यहाँ दीदी कहने का रिवाज़ नहीं था पर उस पर हमेशा एक छोटे भाई जैसा प्यार ही आता उसे। पर सिम्मी ये क्या कह रही है! ये सब बातें अपनी जगह हैं और रिश्ते बनाना अपनी जगह। रोहन का नाम सुनते ही एक सेकेण्ड में सारी बातें दिमाग़ में घूम गयीं।
भगवान करे ये बस सिम्मी का पासिंग फेज़ ही हो और रोहन तो कहीं सिम्मी के डैशिंग इमेज वाले खांचे में फिट भी नहीं बैठता। पूछ ही लिया।
"रोहन इज नॉट योर टाइप ऑफ गाइ। हाउ डिड यू टु मीट?"
"व्हाट डू यू मीन नॉट माई टाइप! क्या है मेरा टाइप?" सिम्मी तुनक उठी थी।
"अरे वो बस मूवी, पार्टी, डिस्को, बाइक-रेसिंग। तुझे तो यही सब पसंद हैं ना!"
"दीदी मैं सोलह साल वाली सिम्मी नहीं हूँ। ही इज सो मैच्योर, केयरिंग एन स्वीट टू। आजकल के लड़कों जैसा एटीच्यूड्स वाला नहीं है।"
"अरे वाह! बहुत पता है तुझे आजकल के लड़कों की!"
"होगा क्यूँ नहीं, तुम्हारी तरह कॉलेज के बाद गृहस्थी बसा ली क्या? दीदी, सच यू डोंट नो, वाट यू मिस्ड?"
"अब तू अपना पुराण मत शुरू कर। अभी बात तेरी हो रही है।"

बीच में ही बात काट दी उसने। वो हमेशा डरती है कब सिम्मी ये किस्सा छेड़ बैठे। सिम्मी ने कभी उसका इतनी जल्दी शादी के बंधन में बंध जाना स्वीकार नहीं किया। हमेशा उसे दो बातें सुना जाती है पर आज तो सिम्मी की बातें सुननी थीं।
"अरे बता तो सही, दोस्ती कैसे हुई रोहन से?"
"हाँ, पहले दोस्ती ही हुई। ऑफिस जाने की हमारी टाइमिंग एक ही थी। हम दोनों ही गेट के सामने वाली बस स्टॉप के क्यू में खड़े होते पर अपने-अपने कानों में हेडफोन लगाए। मुझे याद है रोहन तुम लोगों के साथ खेलने बिल्डिंग में आया करता था पर तब तुम लोग मुझे 'कच्चा लिम्बू' कह के साथ नहीं खिलाते और जब मैं बड़ी हो गयी तो रोहन फूटबाल खेलने दूसरे ग्राउंड पर जाने लगा। बस मैं जानती थी कि वो रुमा आंटी का लड़का है और वो जानता था मैं डिम्पी की बहन हूँ। ना वो कुछ बात करता, ना मैं। फिर एक दिन बस नहीं आ रही थी। मैं भी परेशान थी। उसने एक ऑटो रोका और मुझसे पूछा और फिर हम दोनों साथ गए ऑटो में। उसके बाद रोज़ ही हम लोग ऑटो शेयर करने लगे स्टेशन तक। मुझे थोड़ा एक्स्ट्रा टाइम भी मिलने लगा। वो ऑटो लेकर मेरी गेट तक आता। बस वहीं से बातचीत शुरू हुई। फिर कभी-कभी शाम को भी साथ आने लगे एंड देन कॉफी एन मूवी एन यू नो ना....।"

आगे बताने से सिम्मी हिचकिचा रही थी। बड़ी बहन कितनी भी सहेली जैसी हो पर बड़ी बहन ही होती है और वो तो उससे पाँच साल बड़ी थी। उसने भी गंभीरता से कहा, "या कैन गेस बट रियली आर यू गाईज़ सीरियस?"
"डोंट नो।" सिम्मी ने कंधे उचका दिए तो उसे गुस्सा आ गया। "ओह! तो ये तेरा टी०पी० है!"
"नहीं दी, वी आर रियली सीरियस। नहीं तो तुम्हे नहीं बताती। एक साल हो गया हमें मिले बट कमिट हाल में किया है।"
"सिम्मी, तुझे सब पता है ना रोहन के बारे में! पापा कभी मानेंगे?
"तुमसे ज़्यादा पता है। तुमसे क्या, किसी से भी ज़्यादा पता है और पापा से मैं नहीं डरती वे मेरी ज़िन्दगी का फैसला नहीं करेंगे।"
"इतना आसान नहीं हैं पर वो तो बाद की बात है, पहले तुम लोग तो गंभीर हो जाओ एक-दूसरे के प्रति। वन इयर इज टू शॉर्ट अ पीरियड टु नो एनीवन, गिव सम मोर टाइम टु योर रिलेशनशिप। पर सिम्मी प्लीज़ इसे टाइम पास की तरह मत लेना, सब सोच-समझ कर कमिटेड हो तभी आगे बढ़ना। उस बेचारे ने बहुत दुख देखे हैं बचपन से। उसे हर्ट मत करना।"

"यू नो दी, रोहन को नफरत है इस बेचारे शब्द से। उसे बहुत गुस्सा आता है कि लोग उसे बेचारागी की नज़र से क्यूँ देखते हैं। बता रहा था एक दिन उसने तो कुछ भी अलग महसूस नहीं किया। सब बच्चों की तरह ही स्कूल जाता, खेलता, बर्थडे पार्टीज़ में जाता, फ्रेंड्स को अपने घर बुलाता और फिर यहाँ कितनों के डैडी इन्वोल्व रहते हैं बेटे की ज़िन्दगी में! शिप पर काम करने वाले, आठ महीने नहीं रहते घर पर। क्या अलग है उसका घर उन लोगों से? फिर भी लोग सिम्पैथी दिखाते हैं। हाँ, वो अपनी माँ को लेकर वरीड रहता है। तुम्हें पता है उसने कितनी कोशिश की है अपने ममी-पापा को नज़दीक लाने की?"
"अच्छा, उसका अपने डैडी से कम्युनिकेशन है? उनके बारे में तो कितने रयूमर्स थे कि वे गल्फ में हैं या शायद स्टेट्स में। कभी फोन नहीं करते। कोई पैसा नहीं भेजते।"
"हाँ, फोन नहीं करते। पैसे नहीं भेजते पर इसी शहर में रहते हैं। अपनी बहन के पास। ये फ़्लैट उसकी ममी के नाम करके अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझ ली। रोहन तो बहुत छोटा था, उसे पता भी नहीं कि क्या प्रॉब्लम थी ममी-पापा के बीच पर जब उसके बोर्ड का रिज़ल्ट आया तो उसके डैडी ने फोन किया था और उसे लंच के लिए ले गए थे। रोहन के मन में कटुता नहीं है अपने डैडी को लेकर। और इसका श्रेय वो अपनी ममी को देता है। उसके बाद से ही उसने कोशिश शुरू कर दी। घर पर गणपति की पूजा भी रखी और इसी बहाने अपने डैडी को ज़बरदस्ती घर आने पर मज़बूर किया। उसने बहुत कोशिश की। दी, ममी से डैडी के बर्थडे पर विश करवाया। डैडी को ममी के बर्थडे पर फोन करने को कहा लेकिन पता नहीं, उसकी बुआ ने क्या कान भर रखे हैं आखिर उसके डैडी, सारे पैसे अपनी बहन के बच्चों पर ही तो ख़र्च करते हैं पर यह बात उसके डैडी को समझ नहीं आती। रोहन जितना कहता, उसके ममी-डैडी उसका मन रखने को कर लेते बट एक्चुअली दे आर ड्रीफटेड अपार्ट। एक-दो साल के बाद रोहन ने भी कोशिश छोड़ दी एंड यू नो दी, नाउ हिज़ डैडी वांट्स टू रिटर्न। अब ख़ुद अपने मन से अक्सर फोन करते हैं।"

"हाँ, क्यूँ नहीं, अब बुढापे में सेवा जो करवानी होगी। अब कौन पूछेगा उन्हें बहन के यहाँ!" उसका मन तिक्त हो आया था। इसी शहर में रहकर एक बार सुध नहीं ली अपने बीवी-बच्चे की। रुमा आंटी की मेहनत देखी है उसने! सुबह पाँच बजे से रात के बारह बजे तक वो खटती रहतीं। रोहन की देखभाल के लिए नौकरी भी नहीं की उन्होंने और घर से ही सब सम्भाला।
"एग्जैक्टली दी, यही बात है पर रोहन कहता है आखिर फादर हैं। उनकी देखभाल तो उसी की ज़िम्मेवारी है। बुआ मुहँ फेर लेंगी तो वे कहाँ जाएँगे पर कहता है अपनी ममी को मज़बूर नहीं करेगा उनकी सेवा के लिए।"
"ही रियली इज अ नाइस गाइ। तू आजकल बड़ी समझदार हो गयी है। फिर हँस कर जोड़ा, "पर तेरे मुहँ से इतनी समझदारी की बातें शोभा नहीं देतीं। तू तो लड़ती-झगड़ती ही अच्छी लगती है। अच्छा चेंज लाया है इस रोहन की कंपनी ने। अब कैसा दिखता है? मैने तो कब लास्ट देखा था उसे याद भी नहीं।"
"तुम्हारी दुनिया बस जीजू और आर्यन हो गए हैं। उनके आगे-पीछे घूमना और बस उनकी ही बातें करना। तुम्हे बाकी दुनिया से कोई मतलब भी है?" विद्रूपता से कहा सिम्मी ने।
"सिम्मी तू फिर शुरू हो गयी! बात रोहन की हो रही है। बता ना कैसा दिखाता है अब?"
"एकदम 'टी.डी.एच'", सिम्मी मुस्कुरा रही थी।
"ओए होए! 'टी.डी.एच'तो वो गोरा-चिट्टा लड़का, अब काला हो गया!"
"ना, फेयर तो अब भी है। लो थिंक ऑफ द डेविल एन डेविल इज हियर। आज तो घर आने में उसे ज़्यादा ही देर हो गयी है।" सिम्मी के मोबाइल का मेसेज टोन बज उठा था।
"इस वक़्त घर आता है वो?"
"हाँ, जॉब के साथ पार्ट टाइम एम०बी०ए० कर रहा है। लेट नाईट क्लास होती हैं पर मुझे गुडनाईट कहे बिना नहीं सोता।" सिम्मी मुस्कुराते हुए मेसेज टाइप करने में लगी थी।
"हाँ, नींद कैसे आएगी उसे! चल अब तू अपनी 'एस.एम.एस' चैटिंग कर मैं चली सोने।"
सिम्मी ने भी मुस्कुराते हुए तकिया खींच, दूसरी तरफ करवट बदल ली थी।

सिम्मी का राज़ सुन, जाने कैसी अनजानी ख़ुशी भर गयी थी मन में। चेहरे से मुस्कान मिट नहीं रही थी। दिल की धड़कनें बढ़ गयी थीं। 'माई लिल सिस इज इन लव' इतनी बड़ी हो गयी है छुटकी। अब उस पर एक बड़ी ज़िम्मेवारी आ गयी है। सिम्मी की खुशियाँ अब उस पर निर्भर हैं। मम्मी-पापा को उसे ही मनाना होगा फिर सर झटक दिया। एक मन कहता, अभी दोनों को शादी का फैसला तो करने दे फिर दूसरा मन कहता, जब कमिट कर लिया है तो अगला क़दम शादी ही तो होगा। पता नहीं क्या-क्या सोच रही थी कि सिम्मी ने मोबाइल हेडबोर्ड पर रखा और 'गुडनाईट दी' कहती सिमटकर सो गयी।
उसने करवट बदल, उसके चेहरे पर भरपूर नज़र डाली। सिम्मी का चहरा दमक रहा था और एक शांतिपूर्ण स्मित थी होठों पर। उसके चेहरे की दमक और होठों की स्मित कायम रखना अब उसकी ज़िम्मेवारी है। सिम्मी तो सो गयी पर वो न जाने कब तक इन्ही सपनो में डूबती-उतराती जागती रही।

आर्यन को ले, घर लौट आई थी पर पूरे समय उसके दिमाग़ में सिम्मी और रोहन के रिश्ते ही छाये रहते। चाहे जो हो, वो अपनी बहन की खुशियाँ नहीं बिखरने देगी। खुद तो कभी प्यार जाना नहीं। माँ का इतना सख्त अनुशासन था। कॉलेज में कदम रखते ही उसे बिठाकर एक घंटे लेक्चर और ढेर सारी हिदायतें दी थीं। हर वाक्य के अंत में होता, "तुम्हारी एक छोटी बहन भी है, तुम्हारी किसी भी हरकत का असर उस पर भी होगा।" और वो पूरे समय एक आदर्श बड़ी बहन का रोल निभाती रही और छोटी बहन ने ही गुल खिला दिए। माँ की उलझन वो समझती थी। उन्हें उसके माध्यम से अड़ोसी-पड़ोसी रिश्तेदारों सबको यह दिखाना था कि उन्होंने कितनी अच्छी परवरिश की है। जब भी छुट्टियों में अपने शहर जातीं, सब हिदायतें देते, "बड़े शहर में रहती हो ज़रा, लड़कियों पर ध्यान रखा करो। ऐसा न हो बाद में रोना पड़े।" और माँ का सख्त शिकंजा ज़रा और मजबूती से कस जाता।

वह भी डरी-डरी-सी ही रहती, कॉलेज में उस मनीष ने कितनी बार करीब आने की कोशिश की। असाईन्मेंट्स के बहाने, बुक्स के बहाने। उसे भी घुंघराले बालों वाला, लम्बा-पतला, बेपरवाह चाल वाला, मनीष अच्छा लगता पर वो अपनी सहेली संजना से ही चिपकी रहती। आखिरकार बाद में सुना उसका नाम 'आइस बेबी' रख छोड़ा है उसने। जिस दिन वो नहीं आती, संजना बताती, सारा दिन कहते रहता, "कितनी गर्मी है आज! वो 'आइस बेबी' भी तो नहीं आई।" फिर भी उसकी हिम्मत नहीं हुई। जब अपने नेटिव प्लेस की कजिन्स को देखती तो लगता छोटे शहर में रहकर भी वे ज्यादा आज़ाद हैं। छत पर अपनी सहेलियों से लड़कों की ऐसी-ऐसी बातें करतीं कि वो दंग रह जाती। पर वो तो फ़्लैट में रहती थी और उस पर मम्मी के खड़े कान और सतर्क नज़र। कॉलेज का भी सारा टाइम-टेबल उन्हें पता होता। दस मिनट भी लेट हो जाती तो सौ सवालों के जवाब देने पड़ते। बस कॉलेज बंक कर के कैंटीन और गार्डेन में टाइम पास किया है। इससे ज्यादा तफरीह नहीं की कभी।

फिर भी सोचती, चलो कॉलेज के बाद जॉब करेगी तब तो अपनी मर्जी की मालिक होगी पर पापा को किसी ने सुनील का रिश्ता बताया और फिर चट मंगनी, पट ब्याह। वैसे सिम्मी उस पर चुपचाप गाय जैसे सर झुका कर शादी कर लेने का इलज़ाम लगाती है पर बात वो नहीं थी। उसने डरते-डरते ही सही पर विरोध किया था और तब पापा ने बड़े प्यार से समझाया था। संयोग से इसी शहर का लड़का है। वो अपने शहर मे ही रहेगी। शादी के बाद भी आगे पढ़ना चाहे, कोर्स करना चाहे या नौकरी, जो चाहे कर सकती है। दो साल बाद पता नहीं किसी दूसरे शहर का लड़का मिले तो उसे जाना पड़ेगा। आखिर दो-चार-पाँच साल बाद शादी तो करनी ही है। एक बार सुनील से मिल ले, न अच्छा लगे तो ना कर दे और वे मान लेंगे।

सुनील उसे बहुत सुलझे हुए लगे और हैन्डसम, वेल मैनर्ड भी (सिम्मी कहती है, तुमने उसके पहले किसी लड़के को नज़र भर देखा कहाँ था, पहला लड़का देखा और दिल हार गयी।) उसकी आगे पढने की चाह, नौकरी की ख्वाहिश सब में हामी भर दी और वह तो ख़ुशी से नाच उठी। सुनील से शादी की ज्यादा ख़ुशी थी या माँ के सख्त अनुशासन से निकल जाने की वो तय नहीं कर पाती पर सारे मंसूबे धरे रह गये। एक साल बाद ही आर्यन आ गया और अब तो बस उसकी दुनिया आर्यन ही है।

उसकी ज़िन्दगी तो एक बनी-बनायी लीक पर चलती रही पर सिम्मी ने विद्रोह कर दिया था। उसने मम्मी-पापा से साफ़ कह दिया था कि वो दीदी की तरह पढ़ाकू नहीं और उसे ज्यादा पढने का शौक भी नहीं। ग्रेजुएशन के बाद नौकरी करेगी और कुछ साल तक शादी नहीं करेगी। पापा कितना मना कर रह गए थे, एम० बी० ए० कर ले, कोई अच्छा-सा कोर्स कर ले पर उसकी न तो ना। खुद ही वेकेंसी पता कर इंटरव्यूज़ के लिए जाती और एक अच्छी-सी जॉब भी मिल गयी उसे।

उसने भी हर कदम पर सिम्मी का साथ दिया था। कपड़ों के चयन की बात हो या फ्रेंड्स के साथ देर रात न्यू ईयर पार्टी या गरबा में जाने की बात, हर बार वो माँ से उसके लिए लड़ पड़ती। जो कुछ खुद नहीं जिया, सिम्मी के माध्यम से जीने की कोशिश थी शायद। माँ ने उसे जींस पहनने से तो नहीं रोका पर टी०शर्ट या कुर्ती लम्बी-सी ढीली-ढाली होनी चाहिए थी। माँ उसे खुद ही शॉपिंग के लिए लेकर जातीं और ओल्ड फैशंड कपड़े खरीदवा देतीं। हद्द तो तब हो गयी थी, जब एक बार बारिश में उसके कपड़े नहीं सूखे थे और माँ ने बाकी कपड़े प्रेस में दे दिए थे। माँ ने ज़बरदस्ती अपना सलवार कुरता पहनने पर मजबूर कर दिया था। उसके आनाकानी करने पर डांट लगाई थी कि वो कॉलेज पढने के लिए जाती है या फैशन शो में भाग लेने। टेस्ट था इसलिए वो बंक भी नहीं कर सकी। सारा दिन मनीष की नज़रों से बचती रही थी पर उसने देख ही लिया और उसके ऊँचे गले और बे-फिटिंग वाले कपड़ों को देख 'आइस बेबी' से बदलकर उसका नाम 'मुगले-आज़म' रख दिया था। घर पे आकर कितना रोई थी और सबने सोचा था, टेस्ट ख़राब हो गया है।

शायद इसी का बदला लेने को सिम्मी के कॉलेज में जाते ही खुद उसे लेकर लिंकिंग रोड गयी थी और ढेर सारे तंग छोटे टॉप्स खरीदवा दिए थे। माँ कुछ कहतीं उसके पहले खुद ही कह दिया था, "मुझे तो मुगले-आज़म के ज़माने के कपड़े पहना, भेजती थीं कॉलेज, अब इसे तो आज में जीने दो।" माँ के चेहरे का बदलता रंग देख थोड़ा अपराधी मह्सूस किया था और आगे जोड़ दिया, "ये इतनी दुबली-पतली है, इस पर अच्छे लगेंगे ये कपड़े।" और मन ही मन कहा था, "मैं कौनसी मोटी थी, मुझ पर क्या अच्छे नहीं लगते?" सुनील कोई टोका-टोकी नहीं करते, पूरी आज़ादी थी, जो चाहे पहने पर आर्यन के जन्म के बाद खुद ही मन मसोस कर रह जाती। जब किसी शॉप में शॉपकीपर उसकी नाप के कपड़े के लिए अलग काउंटर पर भेज देता तो उसी वक़्त प्रण कर लेती कि अब कल से ही जिम और डाइटिंग शुरू। पर यह प्रण बस रास्ते तक ही रहता घर आकर भूल ही जाती कि ऐसा कुछ सोचा भी था। अब कोई मोटिवेशन भी तो नहीं था!

माँ भी सिम्मी से उतनी सख्ती से पेश नहीं आतीं। शायद उन्हें संतोष हो गया था कि एक बेटी को तो पारंपरिक ढंग से पढ़ा-लिखा कर शादी कर दी, अब उनकी परवरिश पर कोई ऊँगली नहीं उठा सकता। फिर भी रोहन से शादी की बात तो माँ भी न मानें, चाहे रुमा आंटी उनकी कितनी ही अजीज़ हों। और पापा का तो सवाल ही नहीं उठता। उनकी तो सहानुभूति भी नहीं थी रुमा आंटी के साथ। माँ के जिक्र करने पर अक्सर कह देते, "क्या पता, क्या बात थी! एक घर भी नहीं संभाल सकी। एक औरत का इतना इगो रखना अच्छा नहीं।" एक महिला सुचारू रूप से घर चला रही है, अकेले दम पर, बच्चे की परवरिश कर रही है शायद उनके पुरुष दर्प को यह बात आहत करती थी। फिर रोहन के पास अच्छी क्वालिफिकेशन भी नहीं थी। पापा भले ही बरसों से महानगर में रह रहें हों पर अभी भी डॉक्टर, इंजनियर, क्लास वन गवर्नमेंट ऑफिसर्स से आगे उनकी सोच नहीं जाती। सुनील का भी आई० आई० टी० से होना उन्हें लट्टू कर गया था।

उसे ही सब करना होगा, अगर माँ-पापा नहीं माने तो कोर्ट मैरेज करवा देगी उनकी। विटनेस की जगह हस्ताक्षर करने की बात सोच ही रोमांचित हो उठती। आर्य समाज मंदिर में फेरे भी करवाने होंगे पर इन सबके पहले सुनील को मनाना होगा। वे मम्मी-पापा के खिलाफ साथ देने को तैयार होंगे? ना तो न सही, वो तो पूरा साथ देगी उनका। फिर एक अपराध बोध भर आता मन में। क्या गुज़रेगी मम्मी-पापा पर! छोटी लड़की उनकी मर्जी के खिलाफ शादी कर रही है और बड़ी बेटी साथ दे रही है पर कोई चारा भी तो नहीं। अब समय के साथ नहीं बदलेंगे तो यह दुख तो सहना ही पड़ेगा। रुमा आंटी के ना करने का तो सवाल ही नहीं। रोहन की ख़ुशी, उनकी ख़ुशी है और अब तो रोहन से मिल भी चुकी है। बहुत पसंद आया था उसे।
सिम्मी ने ही एक दिन पूछा, "रोहन से मिलोगी? मैने उसे बता दिया है कि तुम्हें सब मालूम है।" उसने घर बुलाना चाहा दोनों को तो सिम्मी ने मना कर दिया, "ये सब झंझट मत पालो। तुम किचन में खटना शुरू कर दोगी। ऐसे ही कहीं साथ में कॉफी पीते हैं।"
"पर आर्यन!"
"क्या दीदी! कभी तो उसके बिना भी कुछ सोच लिया करो। इतनी औरतें बच्चों को छोड़कर बाहर जाती हैं या नहीं! मम्मी के पास छोड़ो या नेबर या किसी फ्रेंड के यहाँ, ये सब तुम जानो फिर मुझे बता दो किस दिन का प्लान है।"
माँ के पास ही छोड़ना ठीक लगा। आराम से जितनी देर चाहे रुक सकती है। सिम्मी के साथ शॉपिंग का बहाना बनाया कि वो ऑफिस से थोड़ा जल्दी निकल आएगी। उस दिन बड़े यत्न से तैयार हुई। ढूँढ-ढांढ कर एक फैशनेबल टॉप और जींस निकाला। बाल खुले छोड़े। मस्कारा और आई लाइनर भी ट्राई करने की कोशिश की पर इतने दिन नहीं यूज़ करने से ड्राई हो गए थे सब। ट्रेंडी ज्वेलरी भी निकाले और जैसे खुद को ही आइने में पहचान नहीं पायी।

आर्यन ने भी उसे गौर से देखा और एक हाथ कमर पर रख एकदम मवाली की तरह बोला, "ओ मम्मा, तुम कित्ती ब्यूटीफुल लग रही हो!" और फिर सब किरकिरा कर दिया यह कहकर, "एकदम मेरी 'मिस डे' टीचर जैसी।" पूत के पाँव पालने में अभी से टीचर्स को गौर से देखना शुरू कर दिया है सोचा उसने।
माँ भी एक बार चौंकी फिर बोलीं, "हम्म, तो दोनों बहने आज एन्जॉय करने जा रही हैं?"
थोड़ा झिझकी वो, "अब सिम्मी के साथ जाना है, पता है न, ज़रा-सा ढीली-ढाली रही तो बीच बाज़ार में ही डांट देगी मुझे।"
"उस लड़की से तो भगवान बचाए। कैंची की तरह जुबान चलती है पर तू बहुत अच्छी लग रही है, ऐसी ही रहा कर।"
गुस्सा आ गया उसे। मन ही मन कहा, "हाँ, जब अच्छी लगती थी तो पहनने नहीं दिया और अब न समय मिलता है न कपड़े फिट आते हैं, न सजने-सँवरने की चाह तो कहती हो ऐसे ही रहा कर।"

जल्दी से बाहर निकली। पहला मौका था, जब यूँ आर्यन के बिना बाहर जा रही थी। कॉफी शॉप तो दूर, किसी रेस्टोरेंट में जाना भी बंद हो गया था। एक बार आर्यन ने वेटर के प्लेट रखते ही चम्मच उठा, खट से प्लेट पर मारा और प्लेट टूट गयी और एक बार तो टेबल पर चढ़, डांस करने की कोशिश करने लगा। सारे लोग देख रहे थे। उसे तो उतना बुरा नहीं लगा, सबके बच्चे इस उम्र में ऐसा ही करते हैं पर सुनील काफी एम्बैरेस्ड हो गए थे और बिलकुल बंद कर दिया था बाहर जाना। अब सिर्फ वे लोग गार्डेन में जाते या किसी 'बीच' पर। वहाँ जाने के लिए क्या तैयार होना? बहुत दिनों बाद ये मौका आया था।

कार में खुद को अकेले पाकर एक अलग ही अनुभूति हुई। हालांकि आर्यन के लिए ही गाड़ी चलानी सीखी। वरना सुनील तो कितनी बार कहते, "मैं ट्रेन से जाता हूँ, कार पड़ी रहती है, सीख लो।" पर अंदर छुपी भीरु लड़की ने हिम्मत नहीं की। फिर एक बार सिग्नल पे इतना धुंआ था कि आर्यन का तो गला चोक होते-होते बचा। ऐसी खांसी उठी कि चार घंटे हॉस्पिटल में रखना पड़ा। ऑक्सीजन दी गयी तब वो ठीक हुआ। सुनील बहुत बरसे, "हफ्ते में दस दिन अपनी माँ के यहाँ जाना तो छूटेगा नहीं, बच्चे पर तो रहम करो। गाड़ी पड़ी रहती है पर नहीं चलानी। तुम्हें तो किसी गाँव में होना चाहिए था।" (उनका गुस्सा देख, ध्यान भी नहीं दिलाया कि हफ्ते में दस नहीं, सात दिन होते हैं) उसके बाद से ही हिम्मत कर गाड़ी चलानी सीखी। वो अलग बात है कि वीकेंड्स पर सुनील का अधिकार रहता है कार पर और उनको हज़ार अदृश्य आवाजें सुनायी देने लगती हैं। शिकायत जारी रहती है, "कार का ये खराब हो गया है, वो ख़राब हो गया है।" और जब वो चलाती तो वे सारी आवाजें गायब हो जाती हैं शायद अगले वीकेंड्स तक और अब तो आदत ऐसी खराब हो गयी है कि ज़रा 'धनिया पत्ता' भी लेना हों तो गाड़ी लेकर ही जाती है। हालाँकि इसीलिए 'वेईंग स्केल' पर नंबर भी बढ़ते जा रहें हैं पर आज तो इतने दिनों बाद हल्के मूड में है और मौसम भी साथ दे रहा था। बादल छाये थे और हल्की हवा चल रही थी। मन हुआ ए० सी० बंदकर शीशे नीचे कर दे फिर सोचा एक तो बाल खराब हो जाएंगे और फिर बाहर की सारी चिल्ल-पों भी अंदर आयेगी। सिग्नल पर बच्चों की भीड़ टूट पड़ेगी, सो अलग। न यही ठीक है। और एफ० एम० का वो चैनल लगाया, जहाँ सिर्फ नए गाने आते थे।मन ही मन कहा, "अंदर-बाहर सबसे वन शुड फील यंग" इतनी आज़ादी महसूस हो रही थी कि मन हो रहा था ये सफ़र ख़त्म ही न हो। लौंग ड्राइव पर चली जाए। उलटी दिशा में जाने से ट्रैफिक भी नहीं था। गाना सुनते, कुछ गुनगुनाते स्टीयरिंग व्हील पर ही उँगलियों से ताल देते खुद में ही मगन थी कि मोबाइल बज उठा। देखा, सिम्मी का ही फोन था पर उठाया नहीं। सामने ही कॉन्स्टेबल नज़र आ रहा था। अगर फाइन ठोक दी तो अभी से सपनों की दुनिया से धरातल पर आ जाएगी।

पर सिम्मी के फोन ने धरातल पर ला ही दिया था। वो पहुँच गयी थी और उसका इंतज़ार कर रही थी। कार की स्पीड बढ़ा दी। कॉफी शॉप पर तो पहुँच गयी पर पार्किंग की झंझट। यही एक वजह है कि ऑटो से आना ही जमता है। काफी दूर जाकर ही पार्क किया और दूरी देखकर सोच में पड़ गयी। ऐसा रास्ता और उसकी हाई हील की सैंडल। कम से कम ये तो नहीं पहनती। उसने पूरी छूटी कसर निकालने की कोशिश की और अब फंस गयी। आदत भी छूट गयी थी। मन ही मन प्रार्थना की, रहम करना ईश्वर! सब संभाल लेना!

बाहर ही सिम्मी एक हैंडसम लड़के के साथ खड़ी थी। ये रोहन इतना लम्बा कब हो गया? उसे तो गोरा, चिकना चुपड़ा चेहरा ही याद था पर फूटबाल खेल-खेल कर धूप ने अच्छा टैन कर दिया था उसकी स्किन को। उस पर वो rugged लुक। फौर्मल्स ही पहने थे पर कमीज़ पैंट से बाहर निकली हुई थी और शर्ट की बाँह ऊपर तक मोड़ रखी थी। एक हाथ जेब में डाले लापरवाही से खड़ा था। सिम्मी ने ठीक ही कहा था, टी०डी०एच० स्वभाव, मैनर्स की बात तो अलग लडकियाँ तो इस रूप पर ही मर मिटें।

सिम्मी की आँखे फ़ैल गयीं उसे देखते ही और होंठ गोल हो गये। शुक्र हुआ उसने सीटी नहीं बजायी। (घर मे तो बजा ही देती है।) उसने उसे आँखे दिखाईं और "हलो रोहन!" कहती आगे बढ़ गयी। रोहन बड़े अपनेपन से मिला। उनकी पुरानी जान-पहचान की लौ जैसे जल उठी। वे लोग बिल्डिंग में साथ मिलकर खेले जाने वाले दिनों की बात करने लगे। वो कई लड़कों के बारे पूछने लगी, "अभी क्या कर रहें हैं, कहाँ हैं?" सिम्मी ही थोड़ी उपेक्षित-सी हो गयी थी और इसे, उस से पहले गौर किया रोहन ने।" क्या ऑर्डर किया जाए सिम्मी?" फिर खुद ही बोला, "इसकी तो फेवरेट है ब्राउनी और कोल्ड कॉफी, आप क्या लेंगी दीदी?"
उसके दीदी कहने पर सिम्मी और वे दोनों चौंकी पर रोहन की नज़रें मेन्यू कार्ड पर थीं पर उसे कुछ आभास हो गया। नज़रें हटा कर उनकी तरफ देखा और समझ गया। मुस्कुरा कर बोला, "दिन में बत्तीस बार तो दीदी-दीदी सिम्मी के मुहँ से सुनता हूँ तो मैने भी कह दिया। होप नो ऑब्जेक्शन?"
सिम्मी जैसे चिल्ला पड़ी, "ऑब्जेक्शन? अब तो तुम्हारे सात खून भी माफ़ होंगे, किसी ने दीदी कहा इन्हें और हमेशा के लिए गुडबुक्स में गोल्डेन लेटर्ज़ में नाम दर्ज। मुझसे भी ज़्यादा भाव मिलेगा तुम्हें।"
"ऐसा नहीं है, प्लान करके नहीं पर अगर अपने आप मुहँ से निकल आए तो अच्छा लगता है। यू कैन कॉल मी दीदी। वुड लव इट। एक्चुअली तुम हमेशा से छोटे भाई-से ही लगते थे।"
तभी सिम्मी ने हल्के-से मेज़ थपथपाई, "हलो! ये म्युचुअल एडमायरेशन सोसाइटी से बाहर निकलो तुम लोग। मैं भी यहाँ हूँ।"
और रोहन ने इतनी प्यार भरी नज़र डाली सिम्मी पर कि उसने एक छोटी-सी प्रार्थना बोल डाली मन ही मन, "हे ईश्वर, इन आँखों का प्यार यथावत कायम रखना हम्मेशा।"

कॉफी के घूँट भरते इतनी बेतकल्लुफी से बातचीत होती रही कि लगा, तीन पुराने दोस्त मिल बैठे हों। दोनों का व्यवहार बिलकुल संयत था। ऐसे, जैसे भी रहते हों पर उसके सामने बड़े सलीके से बैठे थे। बस बीच-बीच में स्नेह से नहलाती रोहन की नज़रें ठहर जातीं सिम्मी पर और सिम्मी सल्लज मुस्कान के साथ बाहर देखने लगती। उसने अनदेखा-सा कर दिया वरना बे-मतलब दोनों कॉन्शस हो उठते।

जब बिल देने की बारी आई तो रोहन ने अपने लम्बे हाथों से बिल उठाकर एकदम ऊपर कर लिया, "ना इट्स अ मैन जॉब। नो वे, एम नॉट गोइंग टु लेट यू पे। सवाल ही नहीं उठता।"
"रोहन मैं बड़ी हूँ तुम दोनों से।"
"अरे दीदी छोड़ो ना, मुझे आइसक्रीम खिला देना नैचुरल्स में, बस।"
"अच्छा! मुझे क्यूँ नहीं फिर।" रोहन था।
"हा हा, फिर ठीक है, तुम दोनों ही खा लेना बाबा।" उसने भी बिल छीनने की कोशिश छोड़ दी।
बाहर निकली तो सिम्मी बोल पड़ी, "आज तो ट्रेन के धक्के नहीं खाने पड़ेंगे। दीदी तुम अक्सर आ जाया करो ना! रोहन आज क्लास छोड़ो, चलो कार की सवारी मिल रही है।"
"ना, क्लास तो नहीं छोड़ सकता। ओके दी, मिलते हैं फिर। बाय दी, बाय सिमी।"
और वह सड़क पार कर हाथ हिलाता चला गया। सिम्मी देर तक देखती रही उसे। जब उसने उसके कंधे पर हाथ रख कहा, "चलें!" तो शर्माती हुई जल्दी-जल्दी कदम बढाने लगी। फिर बोली, "आज तो क्या लग रही हो तुम, मेरे बॉयफ्रेंड से मिलने आई थी या अपने!"
"मैं तो अपने छोटे भाई से मिलने आई थी।"
"अहा, बड़ा छोटा भाई। बट दीदी यू आर लुकिंग सो प्रिटी। कितनी बार कहा ज़रा अपनी तरफ ध्यान दो।"
"सब यही कह रहें हैं। जैसे पहले मैं कोई घसियारिन लगती थी।" गुस्सा आ गया था उसे। इतने बुरे तरीके से तो नहीं रहती थी।

ज़रा ज़ोर से ही कार का दरवाज़ा खोलकर अंदर बैठी तो सिम्मी हँसने लगी, "कहाँ-कहाँ से ये सारे वर्ड्स याद रखती हो, घसियारिन! हा हा।"
जब वो गुस्से में मुहँ फुलाए रही तो सिमी ने बिलकुल उसके ड्राइवर की नकल उतारी, "कबी बी गुस्से में गाड़ी नई चलाने का। भूल गयी उस मराठी ड्राइवर का लेसन।"
वो भी हँस पड़ी, "क्या करूँ, आर्यन तक ने यही कहा। अब ज़रा ढंग से रहना पड़ेगा।"
"अच्छा दी, रोहन कैसा लगा?" सिम्मी ने थोड़ा गंभीर होते हुए पूछा।
"डैम कूल। क्या लुक्स हैं, क्या आवाज़ एन क्या पर्सनैलिटी! सोचा ही नहीं था वो पिद्दी-सा लड़का इतने हैंडसम डूड में बदल जायेगा और उसपे इतने माइल्ड मैनर्स वाला, स्वीट बॉय, यू लकी रे!"
"हाँ और रोहन लकी नहीं है!" सिमी तुनक उठी थी।
"है ना, डिम्पी की बहन जो मिली है उसे।" हँस पड़ी थी वो पर फिर गंभीर हो गयी, "तुम दोनों सच्ची सीरियस हो ना! क्यूँकि आगे की राह बहुत मुश्किल भरी है। मम्मी-पापा दोनों नहीं मानने वाले।"
"आई नो दी पर क्या करें!"
"हम्म, पर दोनों जॉब में हो एंड एट राईट एज तो देरी कैसी बता दे ममी को। टाइम लगेगा उन्हें मनाने में।"
"ना दी, अभी रोहन को एम०बी०ए० कम्प्लीट करना है फिर वो जॉब चेंज करेगा तब जाकर सेटल होने की सोचेगा।"
"तू भी कर ले एम०बी०ए० तब तक और फुल टाइम कर। पापा तो कब से पीछे हैं। जॉब भी छोड़ दे।"
"हाँ, रोहन भी कहता रहता है पर पढ़ना पड़ेगा ना!" सिम्मी ने रुआंसी होकर कहा।
"हाँ, वो तो पड़ेगा।" हँसी आ गई थी उसे। आज भी एकदम छोटी बच्ची-सा जी चुराती है पढ़ाई से।
"हम्म, तो तुम लोग रोज़ मिलते हो??"
"जाते बस साथ हैं। आने का तो कुछ फिक्स नहीं रहता ना! और वीकेंड्स में तो बस रोहन को सोना अच्छा लगता है फिर मम्मी के सौ सवाल। मेरा भी उस दिन ड्रेस-अप होने का मन नहीं होता। टी० और ट्रैक पैंट में ही सारा दिन निकाल देती हूँ। कम ही मिलते हैं वीकेंड्स पे। बस यही ऑफिस से कभी जल्दी निकल पाए तो।"
"हम्म, देन नो ख़तरा। वैसे होप यू नो, योर लिमिट्स। यू नो ना! वाट आइ मीन?" ज़रा उसे टीज़ करने की सोची।
"दीदीss" एकदम से धक्का दे दिया सिम्मी ने और उसके हाथों में स्टीयरिंग डगमगा उठा। जल्दी से ब्रेक पर पैर रखा तो पीछे से कई गाड़ियाँ हॉर्न बजा उठीं।" सिम्मी मरवाएगी क्या! वो तो स्पीड ज्यादा नहीं है नहीं तो क्या हो जाता आज, इडियट है तू बिलकुल।"
"तो तुम क्यूँ ऐसी बातें करती हो? ड्राइविंग पे कंसंट्रेट करो ना!"
"अरे बड़ी बहन हूँ ना! फ़र्ज़ बनता है सही रास्ता दिखाने का।"
"दुनिया को जानने के मामले में तुम कहीं छोटी हो मुझसे। अपनी छोटी-सी दुनिया में महफूज़, ज़रा बाहर निकालो तो देखो कदम-कदम पर क्या मुश्किलें आती हैं!"
"ओके मैडम जी, अब आप अपने भाषण मोड में मत आइये। अब मम्मी को क्या कहेंगे, शॉपिंग तो कुछ की नहीं। कुछ ले लें क्या? यूँ ही दिखाने को।"
"अरे चिल दी, मेरे सर पे डाल देना सब कि इसने बीस कपड़े ट्राई किए और इसे एक भी पसंद नहीं आई। और मुझे भी कुछ लेने नहीं दिया। मम्मी मान जाएँगी।"
"तू ना रग-रग से वाकिफ हो गयी है।" हँस पड़ी वो।
"हे शsशss दी, क्या गाना आ रहा है!" और वो साथ-साथ गुनगुनाने लगी।
"आजकल बड़े रोमैंटिक गाने पसंद आ रहें हैं तुझे या चैटिंग पे कंसंट्रेट करना है? तब से तेरी मोबाइल की टीं टीं सुन रही हूँ।"
"पूछ रहा था, "होप दीदी इज नॉट डिसएपोयेंटेड।" मैने लिख दिया, "शी इज़ लट्टू ओवर यू।" हा हा ठीक लिखा ना! ओह तुम्हारी बातों में वो स्टेंज़ा निकल गया। तुम भी ना दी। अब सुनने दो ये गाना, मेरा फेवरेट है।"
सिम्मी ने फिर होठों पर ऊँगली रख 'शsशs' का इशारा किया और आँखें बंद कर गाने में डूब गयी।"
वो भी चुप हो गाना सुनने लगी। उसे ये मौके नहीं मिले तो क्या, एन्जॉय करने दे उसे। ये लम्हे, ये अहसास पता नहीं उसकी ज़िन्दगी में फिर कभी आये या नहीं।
दिमाग़ अब घर की तरफ दौड़ रहा था। पता नहीं आर्यन कहीं तंग न कर रहा हो मम्मी को। एकाध घंटे तो वे एन्जॉय करती हैं फिर थक जाती हैं। आदत भी नहीं रही। परेशान हो जाती हैं बिलकुल। इसी वजह से ज़्यादा देर छोड़ती भी नहीं वो आर्यन को उनके पास। पर आज तो मजबूरी थी। सब ठीक हो वहाँ वरना देखेंगी इतनी देर में उन लोगों ने कुछ खरीदा नहीं तो बुरी तरह चिड़चिड़ा जायेंगी। सारे मूड का कबाड़ा हो जायेगा।

आर्यन के टेस्ट चल रहे हैं। सुबह से उसे पोएम रटवाकर परेशान। अब शरारत से या सचमुच पर हर बार वो एक लाइन ग़लत बोल जाता। वो डाँटती तो कभी मुहँ फुला लेता और कभी अड़ के बैठ जाता। अब पोएम सुनाएगा ही नहीं। फिर खुद ही चॉकलेट देकर गोद में लेकर बहलाना पड़ता। खुद पर ही झुंझला उठती। सबकुछ समझते हुए भी वह उस अंधी दौड़ में क्यूँ शामिल हो रही है? अगर बेटे को 'ए प्लस' की जगह 'सी' ही आ गया तो क्या पहाड़ टूट जायेगा! अभी चार साल का छोटा-सा बच्चा है। ताज़िंदगी तो हर घड़ी खुद को उसे कड़े अनुशासन में बंध प्रूव करते ही रहना है पर फिर टीचर की चमकती आँखें याद आ जातीं, जब वो सारे पेरेंट्स के सामने आर्यन की तारीफ़ करती और सबकी प्रशंसात्मक निगाहों का केंद्र बन वह अपनी सारी खीझ, झुंझलाहट भूल जाती।

बच्चों का मासूम बचपन छीन, उन्हें तोता-रटंत बनाने की शुरुआत किसने की थी? इस समाज के नियम आखिर कौन बनाता है? ख़ुद समाज के ही लोग ना! फिर ख़ुद ही ये उलजुलूल नियम बना, उसका पालन शुरू कर देते हैं। आज बुरी तरह खीझ रहा था उसका मन। उसका मन था, तीन साल के बाद ही उसे स्कूल भेजेगी पर आस-पास के पेरेंट्स ने डेढ़ साल से ही प्ले स्कूल में भेजना शुरू कर दिया। फिर पार्क में, सोशल गैदरिंग में सब पूछते, "किस प्ले स्कूल में जाता है?" और उसके यह कहने पर कि 'अभी कहीं नहीं जाता' सब ऐसे आश्चर्य और उपहास से देखते, जैसे वो अभी अभी बस किसी बीहड़ गाँव से उठकर आ गयी हो। कितनी महिलाएँ तो उसे नसीहत देने लगतीं, "सोशल बिहेवियर सीखेगा। दोस्त बनाना सीखेगा।" और आर्यन की किसी छोटी-सी शैतानी पर भी उसे ऐसे देखतीं जैसे कहती हों, "कहा था ना, प्ले स्कूल में डालो।" उसका मन होता कह दे, "प्ले स्कूल से और चार बदमाशियाँ सीख कर आएगा।

लोगों की बातों से इतना अपसेट रहने लगी थी। रोज़ ही सुनील से शिकायत करती, "आज इन्होंने ऐसा कहा, वैसा कहा।" सुनील कहने लगे, "तुम्हारे इस मूड का असर बच्चे पर भी पड़ेगा। इस डिप्रेशन में आने से तो अच्छा है, उसे दो घंटे के लिए स्कूल ही भेज दिया करो।" पड़ोस के बच्चों को देख आर्यन भी ज़िद करने लगा था, "इछ्कूल जाऊँगा।' फिर उसे लगा कि कहीं इसमें हीन भावना न आने लगे, चलो अब माहौल के अनुकूल ही तो चलना पड़ेगा। और उसने मन मारकर ढाई साल में उसे स्कूल भेज दिया। और उसके बाद से रेस शुरू हो गयी। पढ़ाई तो कुछ नहीं है पर इतनी छोटी उम्र में रंगों, फलों, सब्जियों, रिश्तों के नाम याद रखना क्या पढ़ाई से कम है! और अब चार साल में तो बाक़ायदा पोएम, गिनती, छोटे-छोटे शब्द, ड्राइंग-क्राफ्ट सब शुरू हो गए हैं। और इन सबमें 'ए प्लस' लाने की होड़ भी। बच्चे से ज़्यादा पेरेंट्स के बीच।

सुबह से सारा काम छोड़ आर्यन में ही लगी थी। अब जल्दी-जल्दी सारे काम निबटा ले। आर्यन के स्कूल से आते ही खिलाकर सुला देगी और फिर ड्राइंग की प्रैक्टिस भी करानी है। बुरी तरह थक जाती है। सब आर्यन के मूड पर निर्भर करता है। मूड हो तो एक बार में बना लेगा, न हो तो मजाल है, जो एक मिनट बैठ भी जाए। आजकल सिम्मी-रोहन की शादी के प्लान्स बनाना भी छूट गया था। पूरे समय आर्यन के टेस्ट की टेंशन ही चलती रहती दिमाग़ में।
सारी बिखरी चीज़ें उठाकर संभालकर रख रही थी कि फोन बज उठा। अब ये एक और मुसीबत। इस समय जो भी फोन करता है, गप्प के मूड में होता है और उसके पास ज़रा भी वक्त नहीं। मम्मी का नंबर दिखा, उनके कुछ बोलने से पहले ही बोल उठी, "आर्यन के टेस्ट चल रहें हैं। सारा घर बिखरा पड़ा है। ढेरों काम पड़े हैं। उसके आने से पहले सब ख़त्म करना है। बोलो कैसे फोन किया?"
"ओह! फिर तो तुम नहीं आ सकोगी न! सोच रही थी ज़रा घर आ जाती तो कुछ आराम से डिस्कस करना था।"
"क्या?" सोचा शायद यही होगा, "बाई बहुत तंग कर रही है। पुरानी है, ईमानदार है पर इतनी छुट्टियाँ करती है निकालूँ या रहने दूँ?" या फिर होगा, "फलां की शादी में क्या भेजूँ? उन्होंने तो तुम्हारी शादी में बड़ी साधारण-सी साड़ी दी थी। देने को साधारण ही दे दूँ पर देखने वाले क्या कहेंगे? हम बड़े शहरों वालों से लोग उम्मीद रखते हैं।" ये सब बातें ममी के लिए बड़े गंभीर मसले होते थे। वो उनका रुख भांप, वही कह देती और वे ख़ुश हो जातीं पर आज तो ये सब सुनने का कोई मूड नहीं।
पर मम्मी बोलीं, "ठीक है, रहने दो। बाद में बात करेंगे। असल में सिम्मी के लिए एक रिश्ता आया है।"
"माँ, अब वो ज़माना नहीं है कि तुम सिम्मी के रिश्ते के लिए मुझसे पूछोगी। पहले सिम्मी से पूछा?"
"दरअसल मुझे और तेरे पापा को नहीं जंच रहा पर सिम्मी को पसंद है।"
"क्याsssss...." उसके हाथ से फोन नहीं छूटा, यही गनीमत है।
"अरे, इसमें इतना चौंकने की क्या बात है? दो साल हो गए उसे नौकरी करते। अब शादी का सोचना होगा न!"
"पर सिम्मी ने 'हाँ' कहा?" उसने शब्दों को यथासंभव संयत रखते हुए कहा।
"हाँ, उसे प्रपोज़ल ठीक लगा। आजकल के बच्चे तुम्हे पता है न! उनकी सोच अलग होती है। तुम भी आज की ही हो पर इन सबसे अलग हो।"
"माँ, एक फोन आ रहा है, मैं बाद में फोन करती हूँ।" कहकर फोन काट दिया और तुरंत सिम्मी को मिलाया।
"हाय दी!" उसकी चहक भरी आवाज़ सुनते ही पारा चढ़ गया और सीधा पूछ लिया, "तेरा रोहन से झगड़ा हो गया है? ब्रेकअप हो गया और मुझे बताया भी नहीं? यहाँ मैं सारा दिन सोचती रहती हूँ तेरी शादी कैसे करवाऊं और तू है!" हर शब्द के साथ स्वर तेज़ होता जा रहा था।
"दीदी...दीदी, होल्ड ऑन प्लीज़। और इतनी तेज़ आवाज़ में मत बोलो, मुझे अपनी सीट से उठकर आना पड़ा। तुम तो चिल्ला ही रही हो! कोई झगड़ा नहीं हुआ। तुम्हे सब बताउंगी, आराम से।" सिम्मी धीरे-धीरे फुसफुसा कर बोल रही थी।

पर वो कुछ सुनने के मूड में नहीं थी, "क्या बताएगी। और अब तक क्यूँ नहीं बताया? मैं बेवकूफ की तरह तुम दोनों के बारे में सोचती रहती हूँ।"
"दीदी, अभी बहुत काम है, तुम घर आ जाओ, बात करते हैं। मैं जा रही हूँ काम करने।" कहकर फोन काट दिया उसने।
दो मिनट ठगी-सी खड़ी रह गयी। अच्छा तमाशा है, जब चाहो अपने जीवन में शामिल कर लो, जब चाहे मक्खी की तरह निकालकर फेंक दो। दुबारा फोन मिला, ये सब कहने का मन हुआ पर वो जानती है सिम्मी ने साइलेंट पर रख दिया होगा मोबाइल और अब नहीं उठाएगी।
माँ को ही फोन लगाकर कहा, "शाम को आती हूँ आर्यन को लेकर।"

बुरी तरह परेशान हो रही थी। काम करने की गति भी कम हो गयी। किसी तरह काम निबटाए और आर्यन के आते ही उसे खाना खिला, मम्मी के यहाँ चलने की तैयारी कर ली। आने दो ड्राइंग में 'सी' या 'डी', अभी उसे सारी बात जाननी ज़रूरी थी। वह सोने को बेचैन हो रहा था पर उसे कार में ज़बरदस्ती डाला। सीट बेल्ट से बंधे आर्यन का सर बार-बार इधर-उधर लुढ़क रहा था। दया भी आ रही थी। एक नज़र सड़क पर, एक नज़र आर्यन पर रखते किसी तरह घर पहुँची।
(अब भी ख़ुद से मायका नहीं निकलता, घर ही आता है जुबान पर)

माँ देख हैरान रह गयीं, "अरे, शाम को आने वाली थी न! इस बेचारे को नींद में ही उठा लाई! ओह!" वे आर्यन को गोद में ले, सुलाने चली गयीं।
जब उसे अच्छे से थपकी दे, चादर उढ़ा, लौटीं तो उसने निढाल स्वर में पूछा, "अब बताओ शुरू से, क्या बात है?"
"पर तू ख़ुद भी बहुत थकी हुई लग रही है। थोड़ा आराम कर ले फिर बात करते हैं।"
"मैं ठीक हूँ, शुरू से बताओ!" सोफे पर अधलेटी हो कहा। माँ को क्या पता, यहाँ थकान शारीरिक नहीं, मानसिक है।
"वो मिसेज शौरी हैं न, फ्लोरेंस बिल्डिंग वाली, वे एक दोपहर आई थीं और अपनी बहन के बेटे के लिए सिम्मी का रिश्ता माँगने लगीं। सब तो ठीक है पर लड़का मर्चेंट नेवी में है। यह बात मुझे और तेरे पापा को नहीं जम रही। हमने तो ना का ही सोच लिया था पर यूँ ही सिम्मी से ज़िक्र किया तो कहने लगी, क्या बुरा है!"
"सिम्मी ने कहा ये!" विश्वास नहीं हो रहा था उसे, ज़रूर इसकी रोहन से लड़ाई हो गयी है और रिबाउंड में यह दूसरे रिश्तों में बंधने की सोच रही है। कितने फ्रेंड्स का देख चुकी है, जैसे ही एक रिश्ता टूटता है तुरंत ही बिना ज़्यादा सोचे-समझे, तुरंत ही दूसरे रिश्ते बना, शादी भी कर लेते हैं।
"हाँ, उसने ही सारी जानकारी जुटाई। मिसेज़ शौरी का लड़का विवेक, सिम्मी के फेसबुक में फ्रेंड्सलिस्ट में है और वो नितिन, विवेक के फ्रेंड्सलिस्ट में। विवेक के प्रोफाइल से जाकर उसके एल्बम देखे सिम्मी ने और बस तब से उसकी आँखें चौंधियाई हुई हैं। उसका आलिशान फ़्लैट, बड़ी-सी गाड़ी और उसके फौरेन ट्रिप के फोटोज़।"

वो यह सब तो सुन ही रही थी, साथ ही सोच रही थी, मम्मी कितनी सहजता से फेसबुक, प्रोफाइल, फ्रेंड्सलिस्ट की बात कर रही हैं! सिम्मी के सान्निध्य में इन सारी चीज़ों से परिचित हो गयी हैं और एक वो है मम्मी से भी ज़्यादा आउटडेटेड हो गयी है। बस नर्सरी राईम्स और पिक्चर बुक में ही उलझी रहती है।
सिम्मी को दो बार मेसेज भेजा, 'जल्दी आओ'।
कुछ समझ नहीं पा रही थी। आखिर सिम्मी-रोहन के बीच क्या हो गया? मम्मी बता रही थीं, पापा को भी यह रिश्ता पसंद नहीं। शिप्पीज़ के बारे में बहुत सारी बातें सुनी हैं, शराब पीते हैं, बहुत सारी बुरी आदतों के शिकार होते हैं और उन्हें तो नहीं ही पसंद। बेटी को अकेले रहना पड़ेगा। अकेले घर संभालना पड़ेगा। हमेशा किसी की छत्रछाया में रहने वाली माँ को यह सब गवारा होता भी नहीं। वह आधे मन से सब सुन रही थी। सिम्मी से बात करने की बेचैनी हो रही थी।
आर्यन उठकर आ गया। उसकी ड्राइंग बुक, कलर पेन्सिल्स सब लेकर आई थी पर मन नहीं हो रहा था प्रैक्टिस करवाने का। वह भी उनींदा-सा था। दूध का ग्लास सामने पड़ा था और वह शांत-सा बैठा था कि कॉल बेल बजी और सिम्मी को देखते ही हज़ार वाट की मुस्कान छा गयी चेहरे पर। बिजली-सा दौड़ा उसकी तरफ। सिम्मी ने भी, 'मेरा राजा बेटा' कहते, उसे गोद में उठा, गोल-गोल घूमना शुरू कर दिया। यही सब आर्यन को अच्छा लगता है। फिर दोनों छुक-छुक रेल गाड़ी बना, पूरे फ़्लैट में घूमते रहे। वो गंभीर बनी बैठी रही। आखिर सिम्मी ने ही पूछा, "ये दीदी को क्या हुआ है?"
"पता नहीं, कुछ तबीयत ठीक नहीं लग रही इसकी। मना किया फिर भी चली आई।" मम्मी ने चिंतित हो, कहा।

सिम्मी भी गंभीर हो गयी। उसे पता चल गया दीदी क्यूँ चुप है।
थोड़ी देर को उसका चेहरा म्लान हुआ फिर आर्यन के साथ खेलने लगी। आखिर उसने ही गुस्से में बोला, "आर्यन दूध ख़त्म करो।"
सिम्मी ने ही डरने की एक्टिंग की, "चलो चलो, भागो यहाँ से। मम्मी गुच्छा है।" और दूध का ग्लास ले बालकनी में चली गयी।
दूध ख़तम करवाकर खाली ग्लास लिए सिम्मी आई, "देखो बता दो मम्मा को, मैं कितना राजा बेटा हूँ। सारा दूध फिनिच कर लिया।"
उसने मम्मी से कहा, "मम्मी, आर्यन को गार्डेन में ले जाओ।"
"अरे, उसे प्रैक्टिस नहीं करवाएगी! उसके ड्राइंग का एग्जाम है न कल?"
"नहीं, मूड नहीं है।"
मम्मी उसे अबूझ-सी देखती रहीं। क्या हो गया है उसे!
"आर्यन, नानी के साथ जाओ गार्डेन में।"
"मुज्झे नहीं जानाssss...। मैं मासी के साथ ट्रेन-ट्रेन खेलूँगा।" आर्यन ने ज़िद की।
उसने उसे गोद में उठाया और हाथ-पैर पटकते आर्यन को लिफ्ट तक ले आई। मम्मी भी साथ चली आयीं। चीखते-चिल्लाते आर्यन को उसने लिफ्ट में खड़ा कर, लिफ्ट बाहर से बंद कर दी। मम्मी ने उसे गोद में उठा, पुचकारते हुए ग्राउंड का बटन प्रेस कर दिया पर उनके चेहरे से गुस्सा साफ़ झलक रहा था। उन्हें इस बात का क्या इलहाम कि वो किस कशमकश से गुज़र रही है। आर्यन तो झूला देखते ही तुरंत बहल जाएगा। मम्मी को भी उनकी सारी सहेलियाँ मिल जाएँ तो अच्छा। घंटा-दो घंटा वो लोग नीचे ही रहें ताकि वो आराम से बात कर सके सिम्मी से।

लौटी तो सिम्मी ने छूटते ही कहा, "बच्चे पर क्यूँ गुस्सा निकाल रही हो!"
"क्या करूँ तो, तुम तो ऐसे एक्टिंग कर रही हो जैसे कुछ हुआ ही नहीं।" चिल्ला ही पड़ी जैसे वो।
"रिलैक्स दी, इतनी परेशान क्यूँ हो?"
वो भी शांत हो सोफे पर बैठ गयी, "सिम्मी क्या है ये सब?"
"हम्म, क्या पूछना है तुम्हे? पेश हूँ तुम्हारे दरबार में। दागो सवालों की गोली।" कुछ नाटकीयता से कहा उसने।
"सिम्मी ये सब एक्टिंग रहने दे और बता। रोहन से झगड़ा हुआ?"
"ना!"
"फिर इस रिश्ते के लिए हाँ कैसे कह दी?"
"हाँ कहाँ कहा है?"
"पर कंसीडर तो कर रही है न!"
"कुछ सोचा नहीं दी, समझ नहीं आ रहा। मैं अभी का नहीं, पांच साल बाद का सोच रही हूँ। क्या हमारे रिश्ते इतने ही ख़ूबसूरत रह जाएँगे! क्या यही तस्वीर रहेगी रिश्तों की? लगता है सबकुछ बदल जाएगा। वह ऑफिस से आकर किसी बात पर चिल्लाएगा, मैं किसी और बात पर झल्लाउंगी और वजह कुछ और होगी। सबकुछ इतना रोज़ी-रोज़ी नहीं रहेगा। उस पर से तुम्हारे और मम्मी के रहने की वजह से मुझे घर का कुछ काम भी नहीं आता। रोहन क्या मुझ पर नहीं चिल्लाएगा! उसकी मॉम इतनी एफिशिएंट हैं।"

"ये सब इतनी गंभीर बातें नहीं हैं। वैसे भी ख़ुद पर पड़ती है तभी सब सीखते हैं। तू भी सीख लेगी।"
"बात सिर्फ वही नहीं दी। किसी भी मैरिड कपल को देखो। पाँच साल बाद बताया नहीं जा सकता कि उनकी अरेंज्ड मैरेज है या लव मैरेज। सब एक-से दिखते हैं। वही एक-दूसरे से एक-सी शिकायतें, एक-से झगड़े, एक-से समझौते, जो ज़्यादातर लेडीज़ को ही करने पड़ते हैं, चाहे उसने लव मैरेज की हो या अरेंज्ड।फिर जब बाद में समझौते करने ही हैं तो अभी क्यूँ नहीं?"
"यानी कि तुमने फैसला कर लिया है?"
"फैसला तो एज सच कुछ नहीं किया। एक्चुअली एम सो कन्फ्यूज्ड।"
"हम्म। जब प्यार में सोचना-समझना पड़ जाए तो क्या कहा जाए!"
"दी, मैं तुम्हारी तरह भावुक नहीं हूँ। रियलिस्टिक वे में सोचती हूँ। रोहन के साथ लाइफ बहुत टफ नज़र आती है। सारी ज़िन्दगी निकल जायेगी पैसे जोड़ते। एक बड़ा फ़्लैट ले लें, गाड़ी ले लें, वेकेशन ट्रिप पर जाएँ हर चीज़ के लिए सोचना पड़ेगा। दोनों दिन-रात पसीना बहायेंगे फिर भी पूरा नहीं पड़ेगा।"
"तो ये तो तू पहले से जानती थी कि पापा हर हाल में रोहन से ज़्यादा कमाने वाला ही ढूंढेंगे फिर क्यूँ क़दम बढ़ाया।"
"ये कभी नहीं सोचा था इतना ज्यादा। सिम्मी कुछ कहते-कहते रुक गयी।"
"हाँ हाँ, कह दे। सोचा था जीजू जैसा ही कोई ढूँढेंगे।"
"दी, तुम पर्सनली क्यूँ ले रही हो! वी ऑल नो जीजू अर्न्स सो वेल।"
"पर हमारापौश कॉलोनी में घर तो नहीं है। फौरेन ट्रिप्स पर तो नहीं जाते। बी०एम०डबल्यू तो नहीं है।
"ही ही दी, बी०एम०डबल्यू तो उसके पास भी नहीं है।" सिम्मी खी-खी कर हँसने लगी।
"सिम्मी, तुझे सिर्फ पैसे की चमक दिख रही है। क्या सारा सुख पैसों से ही मिल जाएगा! उन घरों में परेशानी, फ्रस्ट्रेशन, झगड़े नहीं होते?
"वो रहेगा कहाँ झगड़े करने के लिए, वो तो शिप पर होगा।"
"यू आर सो मीन। फिर रोहन का दिल क्यूँ तोड़ा? तुझे शुरू में ही कहा था सोच-समझ कर ही आगे बढ़ना।"

"दी, ऐसा भी कुछ नहीं है। आजकल सब मेंटली प्रिपेयर्ड रहते हैं। नहीं वर्क आउट हुआ रिलेशनशिप तो टाटा बाई-बाई। कोई देवदास नहीं बनता। एक्चुअली कभी भी नहीं बनते थे, नहीं तो इतने सालों से एक ही देवदास का नाम क्यूँ लिया जा रहा है! दस-बीस-सौ देवदास क्यूँ नही हुए? और रोहन भी इतना कोई आइडियल लड़का नहीं है। आजकल का है। सबकी अपनी कमियाँ हैं। उसने भी मुझे ही गर्लफ्रेंड क्यूँ चुना! स्मार्ट कॉन्फिडेंट लड़की सबको चाहिए ताकि दोस्तों में धाक जम सके वरना उस निधि को क्यूँ एवोयड करता रहता है! बेचारी कितना केयर करती है इसका। रोज़ एस०एम०एस० करती है। अपनी सारी बातें शेयर करती है। रोहन के बर्थडे पर इतने सुन्दर गिफ्ट देती है। रोहन भी ये सब एन्जॉय करता है। कितनी बार कहा 'उसे ऐसी झूठी आशाएँ मत दिलाओ। वो तुमसे प्यार करती है।' तो हँसकर उड़ा देता है कि वो डम्ब है। उसे डम्ब लगती है क्योंकि सीधी-साधी-सी है। फील सो बैड समटाइम्स।"
"बट रोहन लव्स यू! इसलिए उसे भाव नहीं देता।"
"तो फिर साफ़-साफ़ उससे कह क्यूँ नहीं देता? उसे मेरे बारे में बताता क्यूँ नहीं? रोहन भी इतना सीधा नहीं है, जितना दिखता है। इगो कूट-कूट कर भरा हुआ है। मेरा सेल एक बार घर पे छूट गया था। दो बार कॉल किया। मैंने नहीं उठाया तो बस नाराज़ हो गया कि मैं उसे इग्नोर कर रही हूँ। वहीँ मैं एक बार उसका फोन नहीं लग रहा था, उसके कितने दोस्तों को फोन कर डाला। ऑफिस में फोन किया। आखिर उसको ढूँढ ही निकाला और इसने कोई एफर्ट नहीं किया मेरे बारे में पता करने का। दी, हम लडकियाँ सेंटीमेंटल होती हैं। इन्हें सारी ज़िन्दगी मान लेती हैं जबकि ये लोग हमें अपनी ज़िन्दगी का बस एक पार्ट ही समझते हैं।
"पता नहीं, तेरी बातें मेरी समझ में नहीं आतीं। मैंने तुम दोनों को साथ देखा है और तुम्हारी आँखों में एक-दूसरे के लिए स्नेह भी।"
"हम्म, जो दिन गुज़रे, अच्छे थे नो डाउट पर इसकी गारंटी नहीं कि हमेशा अच्छे ही रहेंगे।"

"गारंटी किस चीज़ की है! एक शिप्पी के साथ लाइफ कितनी टफ होती है, पता है? सबकुछ अकेले संभालना पड़ता है। छः से आठ महीने तो वो शिप पर रहेगा।"
"साथ में सेल करने को तो मिलेगा न! वो पेरिस, स्विट्ज़रलैंड, वेनिस वाऊ!! कभी सोचा भी नहीं था देख पाऊंगी। रोहन के साथ तो दस साल में बहुत हुआ तो सिंगापुर और मॉरिशस से ज़्यादा के सपने भी नहीं देख सकती।"
"इट्स सो डिस्गस्टिंग! कितनी मेटेरियालिसटीक है तू! बाद का नहीं सोचती। अकेले गृहस्थी संभालनी पड़ेगी। बच्चे आ जाएँगे तो सेल कर पाएगी? सब अकेले देखना पड़ेगा।"
"अब ये सब फंडे मुझे मत दो। तुम क्या अकेले नहीं संभालती सब? यहाँ की सारी औरतें अकेले ही तो ढोती हैं गृहस्थी का बोझ। मुझे इतना गुस्सा आया था, जब तुम लेबर रूम में दर्द से छटपटा रही थी और जीजू किसी दूसरे शहर में मुस्कुराकर मीटिंग अटेंड कर रहें थे। मैं सोच रही थी अभी ख़बर सुनकर लड्डू बाँट देंगे, लो मैं बाप बन गया और मिल जाएगा बेटे को उनका नाम। क्या फ़र्क पड़ता है पति सात समंदर दूर हो या सात सौ किलोमीटर दूर। पास तो नहीं होता न!"
"वे लोग बीवी-बच्चों के लिए ही तो करते हैं ये सब।"
"अब उनकी जुबान भी मत बोलो। सब समझौता है। औरतें ख़ुद को धोखा देती हैं ये सोच। जो मैं खुली आँखों से स्वीकार करना चाहती हूँ दीदी, तुम नहीं समझोगी। एक सिक्योर्ड घर से दूसरे सिक्योर्ड घर में चली गयी हो। ज़िन्दगी सिर्फ गुलज़ार की नज़्में और जगजीत की ग़ज़लें नहीं हैं दी और ये फूल, ख़ुशबू, चाँद की बातें भी तभी अच्छी लगती हैं, जब रोटी-कपड़ा-मकान की फ़िक्र न हो।"
"हम्म, तो ये मुझ पर व्यंग्य है।"
"ऑफ कोर्स नॉट। बस तुम्हें नेकेड ट्रुथ दिखाना चाह रही हूँ।"
"इट्स नॉट नेकेड ट्रुथ। तुम्हारा सच है ये और आधा सच। आज भी लोग हैं प्यार, विश्वास और ईमानदारी पर मर-मिटने वाले।"
"मैने कब कहा नहीं हैं! होंगे इमोशनल फूल्स पर मैं नहीं बनना चाहती।"
"इट्स गुड सिम्मी कि तूने इतनी जल्दी ही फैसला ले लिया और उसकी ज़िन्दगी से निकल आई। तुम दोनों एक-दूसरे के लिए नहीं बने थे और तुम्हें क्या लगता है, इस शिप्पी गाइ ने तुम्हे क्यूँ पसंद किया! उसे भी एक ख़ूबसूरत, स्मार्ट, बोल्ड बीवी चाहिए बस, जो उसकी अनुपस्थिति में उसके पैसों का, उसके घर का अच्छी तरह ख़याल रख सके।"

"आइ नो। मैं किसी मुग़ालते में नहीं हूँ। उसने मेरे फेसबुक प्रोफाइल्स पर मेरे अपडेट्स पढ़कर और मेरे फ़ोटोज़ देखकर ही प्रपोज़ल भेजा है। विवेक बता रहा था। सो इट्स गिव एन टेक। मैं ये नाइन टु फाइव जॉब छोड़, एक बढ़िया-सा बुटिक खोल लूँगी। अपना काम होगा, आराम की ज़िन्दगी। पति सारे समय सर पे नहीं बैठा होगा और जब आएगा तब भी मेरे पीछे ही घूमेगा। यू नो न इन शिप्पिज़ का कोई सोशल सर्कल नहीं बन पाता, जहाँ बीवी ले जाए, वहीं जाएँगे। सो नो टेंशन।"
"हम्म, तो अब क्या बोलूँ! जब तूने इतनी दूर तक सोच लिया है, जो सोच तू तेरी ज़िन्दगी है ये।"
"थैंक्स दी। मुझे ये डिसीज़न लेने में हेल्प करने में। तुम्हें सारे तर्क देते-देते खुद को भी समझा लिया।"

बिलकुल थक गयी थी वो। लगा मीलों दौड़कर आई हो। अब थोड़ी देर अकेले रहना चाहती थी। बोली, "चलो जाकर आर्यन को ले आऊँ। अब जाना भी होगा।"
"सॉरी दी, यू आर हर्ट। कैन सी दैट बट एम हेल्पलेस। हमारा ज़िन्दगी को देखने का नजरिया बिलकुल अलग है।"
"तू बस ख़ुश रहे, मुझे और क्या चाहिए!"
थके क़दमों से बाहर निकल आई। मन में भी यही कहा, 'आज इसे पैसों की चमक में ही असली ख़ुशी लग रही है, कल कहीं इन्हीं पैसों से भाग योगा, मेडिटेशन, विपासना में मन की शान्ति ढूँढती न फिरे।'

ख़ुद पर भी गुस्सा आ रहा था। उसे जो सब नहीं मिला, इनके माध्यम से पूरा करने की कोशिश क्यूँ कर रही थी! यह सिम्मी की ज़िन्दगी थी, उसके सपने थे पर देख वो रही थी। और तभी जब ये सपने टूटे तो उसकी किरचें चुभकर उसका ह्रदय लहू-लुहान किए जा रही थीं। हताश-सी लिफ्ट का बटन प्रेस कर दिया और सोचती रही, काश कोई परिचित चेहरा न मिले और थोड़ी देर अकेली बैठ, वो इन चुभती किरचों को निकाल सके।

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रचनाकार परिचय

रश्मि रविजा

ईमेल : rashmeeravija26@gmail.com

निवास : मुम्बई (महाराष्ट्र)

संपर्क- 201, Evershine Residency, Holy cross road, .I.C colony (ext) Borivali West Mumbai- 400103