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डॉ० भावना की संपादित पुस्तक 'हमन है इश्क मस्ताना' का लोकार्पण

डॉ० भावना की संपादित पुस्तक 'हमन है इश्क मस्ताना' का लोकार्पण

पुस्तक की संपादक डॉ० भावना ने कहा कि हमन है इश्क मस्ताना में 109 ग़ज़लकारों को शामिल किया गया है। अमीर खुसरो से निराला, दुष्यंत के बाद की पीढ़ी और युवा पीढ़ी की ग़ज़लें इस संग्रह में हैं।

मुज़फ्फ़रपुर (बिहार)। 'साहित्य गाथा' की ओर से गुरुवार को डॉ० भावना द्वारा संपादित इक्कसवीं सदी की प्रेम गजलें 'हमन है इश्क मस्ताना' का लोकार्पण किया गया। ज़ीरो माइल स्थित आँच वेब पत्रिका के कार्यालय के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में शहर के साहित्यकारों की मौजूदगी रही। कार्यक्रम का शुभारंभ अर्चना कुमारी ने सरस्वती वंदना से किया। अतिथियों का स्वागत डॉ० पंकज कर्ण, संचालन विजय और संयोजन अविनाश भारती ने किया। अध्यक्षता करते हुए डॉ० रवींद्र उपाध्याय ने कहा कि प्रेम ज़िंदगी में शामिल है और साहित्य का प्रतिबिंब है। डॉ० रामेश्वर द्विवेदी ने कहा कि प्रेम दुनिया का सबसे बड़ा जादू है। ज़माने के हिसाब से प्रेम के शेड बदलते रहे। डॉ० ज़ियाउर रहमान जाफ़री ने कहा कि प्रेम को आँख से और आँख को प्रेम से अलग नहीं किया जा सकता। आज स्त्री न सिर्फ प्रेम बल्कि जीवन का सुख-दुख और दुनियादारी भी अपनी ग़ज़लों के माध्यम से व्यक्त करती है। राहुल शिवाय ने कहा कि जब भी कविताओं की बात चली, हमने अपने किनारे चुन लिये। हमारा संबंध कविता से वही है, जो संबंध मातृभूमि से है। डॉ० पूनम सिंह ने कहा कि युवा पीढ़ी गीत-ग़ज़ल में मज़बूत उपस्थिति दर्ज कर रही है। डॉ० संजय पंकज ने तमाम वितंडावाद के बीच प्रेम को शाश्वत और मूल्यवान माना।

पुस्तक की संपादक डॉ० भावना ने कहा कि 'हमन है इश्क मस्ताना' में 109 ग़ज़लकारों को शामिल किया गया है। अमीर खुसरो से निराला, दुष्यंत के बाद की पीढ़ी और युवा पीढ़ी की ग़ज़लें इस संग्रह में हैं। आज के मशीनी युग और बाज़ारवाद में जिस तरह हमारी संवेदनाओं का ह्रास हो रहा है, ऐसे समय में यह संग्रह संजीवनी का काम करेगा। इस मौके पर डॉ० सरोज वरमा, डॉ० रमेश ऋतंभर, डॉ० देवव्रत अकेला ने भी अपने विचार रखे।

दूसरे सत्र में कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें कवियों ने अपनी रचनाओं से तालियाँ बटोरीं। डॉ० सरोज कुमार वर्मा ने 'दिल की देहरी पर देती सदा कौन है, कब मिली थी कहाँ तू बता कौन है', उदय शंकर सिंह 'उदय' ने 'ये धूप इस मकां पे ऐसी न चढ़ी है, इन सीढ़ियों पर बैठ ग़ज़ल मैंने लिखी है', डॉ० कुमारी अनु ने 'तुम में तेरी तलाश कर लूँ, शायद कहीं तुम मिल जाओ' और मुस्कान केसरी ने 'पैर बंधे, हाथ ख़ाली, सिर पर सौ ज़िम्मेदारी होती है' कविता को श्रोताओं ने काफी सराहा। हेमा सिंह ने 'लोग नई उम्र की शाम ढले प्रेम में, ज़िंदगी बन गयी एक ग़ज़ल प्रेम में' और चांदनी समर ने 'करके कोशिश उन्हें हम भुलाते रहे, वो मगर याद आते थे आते रहे' ने भी श्रोताओं की तालियाँ बटोरीं। डॉ० ज़ियाउर रहमान जाफ़री ने 'मुहब्बत में न कोई मसला है, नहीं से हाँ तक का मामला है', राहुल शिवाय ने 'वो दिन की सारी थकन उसपे टांग देता है, मगर वो कुछ नहीं कहती है अलगनी की तरह' भी वाहवाही बटोरने में सफल रहीं।अविनाश भारती ने 'मुहब्बत में है रोना दस्तूर सबका, यही कहके दिल को मनाते रहे', डॉ० पंकज कर्ण ने 'न जाने कौसा मंज़र दिखाई देता है, हर एक हाथ में पत्थर दिखाई देता है' ग़ज़ल ने भी लोगों से संवाद किया। डॉ० देवव्रत 'अकेला' ने 'प्रेम के विस्तृत आयाम हैं', डॉ० रमेश ऋतंभर ने 'मेरे होने में दूसरों के प्यार', पानी और प्रार्थना, डॉ० संजय पंकज ने 'रौनक रहती है मेरे शहर में, एक तुम्हारे होने से' और डॉ० रामेश्वर द्विवेदी ने 'क्या अब भी तुम मुस्कुराती हो' के साथ डॉ० पूनम सिंह की शीर्षक कविता 'खारा पानी' भी काफी पसंद की गयी।

इस मौके पर दिवाकर दिव्यंक, चंद्रिका नवल ने भी रचनाएँ सुनायीं। कार्यक्रम में डॉ० अनिल कुमार की विशेष मौजूदगी रही।

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