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इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

चंद्रेश्वर की कविताएँ

चंद्रेश्वर की कविताएँ

परिपक्व होते ही
रंग प्यार का
दिखता ख़ूब गाढ़ा
पके सिंदूरी आम की तरह

यही समय होता पर
उसके बिछुड़ने का भी
डार से।

एक- हासिल प्यार

किसी कोशिश में ही
दिखती है
ज़िन्दगी

प्यार बना रहता है
प्यार
जब तक उसे पाने
या हासिल करने की
दिखती है
कोशिश

किसी चीज़ के साथ भी
होता है
यही कि उसे
पाने की कोशिश और
इन्तज़ार में ही
छुपा होता है
आनंद

पाना या हासिल कर लेना
एक क़िस्म का विराम
कि ठहराव ही है

ठहराव या विराम
एक तरह से क़रीब हैं
मृत्यु के।

******************


दो- प्यार

प्यार हमारे जीवन में दिखा नहीं वैसे
जैसे पानी की सतह पर
तैरता दिखता है तीसी का तेल

प्यार हमने वैसे भी नहीं किया
जैसे हिन्दी की बंबइया फ़िल्मों में
करते हैं हीरो-हीरोइन

प्यार की गरमाहट से
भरे रहते थे हम हर वक़्त हर मोड़ पर
ज़िन्दगी को बनाते हुए
कुछ और ख़ूबसूरत
बिना किसी शोर-शराबे के

प्यार हमारे लिए गुलामी नहीं थी
आज़ादी भी नहीं थी ज़रूरत से ज़यादा
प्यार करते हुए ही बनाए हमने
तिनका-तिनका जोड़कर घोंसला
दाने ले आए दूर देश से
उसके अंदर
हर मौसम का किया मुक़ाबला
साथ-साथ लड़े
हँसे-रोए साथ-साथ
हर मोरचे पर

कई बार सोचा हमने
अलग होने के बारे में
पर हमेशा लगा कि मुमक़िन नहीं
पानी से मछली का होना
अलग।

******************


तीन- न हो सामना घटाव से

मैंने प्यार किया है तो घृणा कौन झेलेगा
चुने ख़ूबसूरत फूल मैंने तो उलझेगा गमछा किसका
काँटों से
बनाये अगर मित्र मैंने तो शत्रु कहाँ जायेंगे
सुख ने सींचा है मुझे तो तोड़ा है
बार-बार दुःख ने
मेरे जीवन में शामिल है सोहर तो मर्सिया भी
ऐसे कैसे होगा कि जोड़ता चला जाऊँ
न हो सामना घटाव से
लिया है जन्म तो कैसा डर मृत्यु से।

******************


चार- मैंने कभी इज़हार ही नहीं किया

मैंने कई बार चाहा कि लिखूँ
एक प्रेम कविता
लिखने बैठ भी गया
कागज़-क़लम लेकर
(ख़ैर! अब तो कंप्यूटर का की बोर्ड है
जिसपर नचानी हैं हाथों की उँगलियाँ )
पर यक़ीन मानिये आप सब
कि देर तलक सोचता ही रह गया
एक -एक कर आये
पिछले जीवन के जाने कितने प्रसंग
मीठे -तीते
उनमें ही लीन होता गया

शब्द धोखा देकर भाग गए कि
खेलते रहे लुका -छिपी का खेल
मेरे साथ

कह पाना मुश्किल
कुछ भी

मैंने तुम्हारे साथ
कभी ऊबड़ -खाबड़ तो
कभी समतल चिकने रास्ते पर
चलते हुए साथ -साथ
अनगिन काँटों को किनारे किया
तो फूल भी रखे चुन -चुनकर
अपनी थैलियों में

हम कई बार प्यासे हिरन और
हिरनी की तरह
दौड़े साथ -साथ
भागे किसी मृग मरीचिका के पीछे
कभी मीठे पानी का स्रोत भी मिला
अचक्के में
उस सुख में सराबोर होना ही चाहे कि
पीछे से जोरदार धक्का मारकर
गिरा दिया दुःख ने

रोज़ सुबह सोकर उठते ही
चूम लेना चाहता हूँ
तुम्हारे होंठ
पर चूम नहीं पाता

उस रोज़ गुड़हल के
लाल -लाल खिले फूल
तोड़ते हुए
सूखी पत्तियाँ आकर
गिर गईं तुम्हारे
माथे पर
चाहकर भी हटा नहीं पाया उन्हें

सच तो ये है कि मैंने कभी इज़हार ही नहीं किया
अपने प्रेम का
संकोच आया आड़े हमेशा ही

अब तो साथ -साथ चलते हुए
मैं -तुम एकमेक होकर
बन गए हैं हम

एक ही नींद है हमारी
हमारा एक ही जागरण
हमारी एक ही कल्पना है और
एक ही स्वप्न

हम जब लड़ते हैं
आपस में तो
जैसे ख़ुद से लड़ते हैं
हम जब मिलते हैं
एक -दूसरे से तो
जैसे ख़ुद से मिलते हैं

जैसे नदी के लिए पानी
जैसे देह के लिए प्राण
वैसे ही हम।

******************


पाँच- यही समय होता

परिपक्व होते ही
रंग प्यार का
दिखता ख़ूब गाढ़ा
पके सिंदूरी आम की तरह

यही समय होता पर
उसके बिछुड़ने का भी
डार से।

******************

2 Total Review

डॉ सुषमा त्रिपाठी

19 February 2025

उत्तम रचनाएं।

वीणा शर्मा वशिष्ठ

14 February 2025

अति उत्तम सृजन... आम वाली श्रेष्ठ क्षणिका में सम्मिलित योग्य

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रचनाकार परिचय

चंद्रेश्वर

ईमेल : cpandey227@gmail.com

निवास : लखनऊ (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि- 30 मार्च, 1960
जन्मस्थान- आशा पड़री (बक्सर)
संप्रति- विभागाध्यक्ष एवं प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्ति के बाद स्वतंत्र लेखन कार्य
प्रकाशन- 'अब भी', 'सामने से मेरे' एवं 'डुमराँव नज़र आयेगा' (कविता संग्रह), 'भारत में जन नाट्य आंदोलन' (शोधालोचना), 'इप्टा आंदोलन : कुछ साक्षात्कार' (साक्षात्कार), 'मेरा बलरामपुर' (कथेतर गद्य)। 'हमार गाँव' एवं 'आपन आरा' (भोजपुरी कथेतर)
हिंदी-भोजपुरी की लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में 1982-83 से कविताओं और लेखों का लगातार प्रकाशन।
सम्मान- भोजपुरी कथेतर गद्य कृति 'हमार गांव' पर सर्वभाषा सम्मान- 2024
रेवांत साहित्य गौरव सम्मान- 2024
निवास- 'सुयश', 631/58, ज्ञान विहार कॉलोनी, कमता (फ़ैज़ाबाद रोड), लखनऊ (उत्तरप्रदेश)- 226028
मोबाइल- 7355644658