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डॉ० उपमा शर्मा के उपन्यास 'अनहद' की पहली कड़ी

डॉ० उपमा शर्मा के उपन्यास 'अनहद' की पहली कड़ी

मन के कोकून से यादों का कीड़ा बाहर निकलने को फिर कुलबुलाया। इस बार देवयानी ने उन्हें सुलाने की कोई कोशिश नहीं की। यादों की ठंडी-मीठी बयार चुपके-से बह चली थी। वो देव की यादों की सुगंध में शनै:-शनै: डूबने लगी।

गुज़र गया छूकर वो लम्हा, कुछ-कुछ जो उदास था
प्यासी फिर भी मैं रही कि समंदर मेरे पास था

चूल्हे पर रखा पानी खौल-खौल कर नीचे गिर रहा था। पानी की तेज़ खदबद से उसका ध्यान टूटा। ऐसी ही खदबद से उसकी अपनी ज़िन्दगी ग़ुजर रही थी। देव की यादों की आँच बे-तरह सुलगने लगी तो वह बेचैन हो बाहर निकल आई। गुलमोहर के चटक रंगों की लाली फूलों से उतर, आँखों में चली आयी। उसके मन के कोकून को देव की यादों के धागों ने जकड़ रखा था। मन की छटपटाहट बढ़ती ही जा रही थी। कोकून में बैठा जीव, धागे तोड़ बाहर निकल आने को आतुर था। वह यादों को थपक-थपक सुलाने की कोशिश करने लगी। पर एक बार जो आनी शुरू हों जाएँ फिर यादें कहाँ पीछा छोड़ती हैं? फिर देव के और उसके मन के धागे ऐसे उलझे हैं कि टूट जाएँगे पर सुलझेंगे नहीं ये धागे। फिर वो देव की यादों के टुकडे़ कैसे होने दे सकती है?

मन के कोकून से यादों का कीड़ा बाहर निकलने को फिर कुलबुलाया। इस बार देवयानी ने उन्हें सुलाने की कोई कोशिश नहीं की। यादों की ठंडी-मीठी बयार चुपके-से बह चली थी। वो देव की यादों की सुगंध में शनै:-शनै: डूबने लगी।

"देवयानी, मेरी देवयानी, कहाँ हो तुम?"
"यहीं, तुम्हारे पास हूँ देव!"
"फिर मेरी उंगली थामो और मेरे साथ चलो!"
"पर कहाँ चलूँ देव?"
"यहीं तो देवू! कहीं जाती ही तो नहीं तुम? मैं तुम्हारे साथ कहाँ-कहाँ नहीं जाना चाहता और तुम!"
"जैसे कहाँ-कहाँ जाना चाहते हैं साहब। ज़रा मैं भी सुनूँ!"
"चाँद-तारों पर। समुद्र के पार।"
"बस-बस ज़मीन पर आ जाइए।"
"सारी रोमानियत का कर दिया सत्यानाश! अरे चाँद-तारे न सही, कहीं पहाड़ों पर, कहीं समुद्र किनारे, कहीं तो चल सकते हैं लेकिन तुम्हें इस घर से बाहर निकालना मतलब सूरज को ज़मीन पर लाना।"
"हाँ तो यहाँ मेरी और मेरे देव की गंध ऐसी रची-बसी है, जैसे फूल में सुगंध। फिर ज़रूरत ही क्या कहीं और जाने की देव?"
"देवू! तुम्हारा ये लॉजिक पहले भी कभी समझ ही नहीं आया मुझे। अब क्या समझ आएगा? जब साथ रहेंगे तो बाहर कहीं भी हों यह सुंगध साथ ही रहेगी न! फिर घर में ऐसा क्या है?"
"घर में हर जगह ये सुंगध बिखरी है देव। बाहर तो वहीं होगी, जहाँ हम होंगे। यहाँ हर कोने में तुम हो। बागों की अमराई में, चिड़िया की चहक में, फूलों की सुगंध में, यहाँ तक की किचन के बरतनों की खनक में भी तुम हो।"
"हाँ, नहीं हूँ तो बस तुम्हारे दिल में।" देव गुस्से में एक तरफ बैठ गया।"
"ऐसे रूठ कर अपनी बात मनवा लोगे? जाओ अब मैं तुम्हारे साथ बिलकुल नहीं जाऊँगी।"
"देवयानी, तुमसे कोई जीत ही नहीं सकता। फिर मुझ बेचारे की क्या बिसात! चलो फिर बाहर ही चलो तुम्हारे प्यारे लाॅन की मखमली घास पर ही टहल लेते हैं।"
हँसने लगी देवयानी।
"मेरा प्यारा लॉन!"
"हाँ हाँ, तुम्हारा प्यारा। बेशकीमती लॉन, जो तुम्हें मुझसे कहीं ज़्यादा प्यारा है।"
"वाह जी वाह! प्यार में इतनी शिकायतें जनाब!"
"हाँ, तो क्यों न करूँ? देखो न ये तुम्हारे आवारा बालों की लटें फिर तुम्हारे माथे को चूम रही हैं। हटाओ इन्हें देवयानी।"
"तुम्हें आवारा लग रही हैं।"
"हाँ।"
"तो तुम्हीं हटा दो।"
"तुम क्यों नहीं? देवू तुम्हें सब प्यारा है सिवाय मेरे।"
ज़ोर से खिलखिला उठी देवयानी।
"तुम भी न देव!"
"क्या तुम भी न देव?"
"ऐसी बातें करते हो न, हँसी आने को हो तो भी आ जाए। बच्चे हो तुम एकदम।"
"हाँ, तो हँसी के इन्हीं जलतरंगों को मैं ढूँढता हूँ, जो तुम्हारे चेहरे से गुज़र, मेरे चेहरे पर आ जाती हैं। तुम न होती देवयानी तो देव अधूरा रह जाता।"
"देव, इतना प्यार क्यों करते हो? कहीं मैं न रही तो..!"
"उस दिन के आने से पहले मैं मर जाना पसंद करूँगा देवयानी।"
"ऐसे न बोलो देव।" देवयानी ने घबराकर अपनी उँगली देव के मुँह पर रख दी।
"ऐसे क्यों घबरा गयीं? मैं कहाँ जाऊँगा तुम्हें छोड़? अब जीना मरना सब तेरे संग।"
"फिर ऐसी ही बात। तुम ऐसा बोल भी कैसे देते हो देव? कब सरस्वती जिह्वा पर विराजी हों और कब मुँह से निकली बात सच हो जाए! नहीं नहीं, ऐसा मत बोला करो। देवयानी मर ही जाएगी तुम्हारे बिना।"
"इतना मत घबराया करो मेरी देवू! देव के रहते कोई मेरी देवयानी को मुझसे अलग नहीं कर सकता।"
"सारी दुनिया ही प्यार की दुश्मन होती है। देखो आसमान के सितारे कैसे हमें देख रहे हैं! न जाने कब ये सितारे जलकर हमें एक-दूसरे से अलग कर दें। तुम्हारे बिना देवयानी रह पाएगी क्या? मुझे बहुत डर लगता है देव।"
"सितारों की ये मजाल मेरी देवू को देखें। अभी जाता हूँ इन सितारों को कहने।"
"क्या कहने?"
"यही कि देवयानी को न देखा करें। नज़र न लगाया करें।"
"रूको न देव! मैं भी आती हूँ तुम्हारे साथ।"

"कहाँ चल दी दीदी?"
"शर्मी, देखो न देव मुझे पुकार रहे हैं।"
"कहाँ दीदी? देव कहाँ हैं यहाँ?"
"वो जा तो रहे हैं। छोड़ो मुझे जाने दो! वो चले जायेंगे शर्मी! कितने दिन बाद तो आज मेरे पास आये हैं।"
"दीदी….।"
"शर्मी, देव कहते हैं मेरे साथ लॉन में न टहलें तो उनका दिन अच्छा नहीं गुजरता और मेरा भी कहाँ गुजरता है? फिर भी बिना साथ टहले जा रहे हैं। रोक लो शर्मिष्ठा उन्हें! तुम नहीं रोकोगी, मैं ही जाती हूँ। छोड़ो मुझे शर्मिष्ठा! देव जा रहे हैं।" देवयानी अपना हाथ छुड़ा भागने लगी।
"दीदी! देव कहाँ हैं यहाँ। मैंने उनकी दुनिया में आ, आप दोनों को अलग कर दिया। कैसी भाग्यहीन हूँ मैं? आप जैसी देवी और देव के दु:खों का कारण बन गयी, जिन्होंने मेरी उदास ज़िंदगी सँवारने का कोशिश की।" आँसुओं का वेग शर्मी से सँभाले नहीं सँभला। आँसुओं की अधिकता से शर्मिष्ठा की हिचकी बँध गयी। वो देवयानी से लिपट गयी।
देवयानी ने ख़ुद को बेख़ुदी से निकाल, पल भर शर्मिष्ठा को देखा। ओह! मैं ऐसे करूँगी तो शर्मी को कौन देखेगा? पर देव की यादें जीने भी तो नहीं देती हैं। क्या करूँ? कब तक की सज़ा है मेरी जाने?"
"जब तक शर्मिष्ठा को उसका नया घर नहीं मिल जाता देवू।" उसके कानों में देव की आवाज़ गूँजी।

देवयानी ने रोती हुई शर्मिष्ठा को अपने आँचल तले छुपा लिया। शर्मी को इस घर में अपना पहला दिन याद आ गया, जब देवयानी के आँचल में वो ऐसे ही छुप गई थी, जैसे किसी चिड़िया के डैने में छुपा उसका नन्हा बच्चा। देवयानी ने उसे उस रिश्ते की चादर दी, जो बनाया देव ने था लेकिन निभाया देवयानी ने।

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रचनाकार परिचय

उपमा शर्मा

ईमेल : dr.upma0509@gmail.com

निवास : दिल्ली

जन्मतिथि- 5 सितंबर, 1979
जन्मस्थान- रामपुर(उत्तर प्रदेश)
शिक्षा- बी० डी० एस०
संप्रति- दंत चिकित्सक
प्रकाशन- लघुकथा संग्रह 'कैक्टस' (प्रभात प्रकाशन, 2023) एवं उपन्यास 'अनहद' (शुभदा प्रकाशन, 2023)
हंस, वागर्थ, नया ज्ञानोदय, कथाक्रम, कथाबिम्ब, कथादेश, साहित्य अमृत, हरिगंधा, साक्षात्कार, पुरवाई, कथा समवेत, प्रेरणा अंशु, अविलोम, लोकमत, अमर उजाला, प्रभात ख़बर, हरीगंधा, साक्षात्कार जैसी पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर रचनाओं का प्रकाशन
प्रसारण- आकाशवाणी दिल्ली से समय-समय पर कविताएँ प्रसारित
सम्मान- 'सत्य की मशाल' द्वारा 'साहित्य शिरोमणि सम्मान', प्रेरणा अंशु अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता में लघुकथा लेखन सम्मान, हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच, गुरुग्राम लघुकथा प्रतियोगिता में लघुकथा मणि सम्मान, कुसुमाकर दुबे लघुकथा प्रतियोगिता में लघुकथा सम्मान, श्री कमलचंद्र वर्मा स्मृति राष्ट्रीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में लघुकथा सम्मान, लघुकथा शोध केंद्र, भोपाल के दिल्ली अधिवेशन में 'लघुकथा श्री सम्मान' एवं प्रतिलिपि सम्मान, पुस्तक 'कैक्टस' को श्री पारस दासोत स्मृति सम्मान
निवास- बी- 1/248, यमुना विहार, दिल्ली- 110053
मोबाईल- 8826270597