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सुमन युगल की लघुकथाएँ

सुमन युगल की लघुकथाएँ

सुमन युगल जी अध्यापन कार्य के साथ स्वतंत्र लेखन करती हैं। आपकी लघुकथाएँ जीवन की छोटी छोटी घटनाओं से निकल कर बाद प्रश्न खड़ा कर सोचने पर विवश कर देती हैं। 

एक- वो तुम न थी

हम लोग कैफेटेरिया में घुसे तो सामने की टेबल पर बैठे एक सज्जन पर दृष्टि ठहर गई सुंदर, सौम्य, शांत, सरल चेहरे पर शिशुओं जैसी स्निग्धता हलकी घुंघराली दाढ़ी और वैसे ही बाल कुल जमा एक मनहर छवि, चेहरे का आभामंडल भी देखते ही बनता था।
निश्चित रूप से वे या तो कोई कलाकार थे या दार्शनिक शून्य में अपलक निहारते। मानो सारे रहस्यों से आज ही पर्दा उठा देंगे एक बार मन हुआ कि एक इंस्टेंट फोटो ले लिया जाए पर यह शिष्टाचार की श्रेणी में न आता था।
कुछ देर बाद कोने की मेज़ पर एक साँवली, सलोनी युवती आकर बैठ गई अब उन दार्शनिक सरीखे दिखने वाले सज्जन की दृष्टि शून्य से हटकर उस सलोनी युवती पर आकर ठहर गई...अपलक अनथक।
शायद वे त्राटक क्रिया के अनुभवी अभ्यासी भी थे। कुछ देर बाद वह युवती तेज़-तेज़ चलकर आई और लगी बरसने दार्शनिक महोदय पर-
"ऐ मिस्टर!"
"क्यों घूर रहे हो?"
"इतनी देर से क्या देखे जा रहे हो? "
"ऐटीकेटस् नाम की भी कोई चीज़ होती है आखिर! "
ब्लैब-ब्लैब...!
लड़की थी या राजधानी एक्सप्रेस!
चार सौ शब्द प्रति मिनट की रफ़्तार।
दार्शनिक महोदय ने दृष्टि ऊपर उठाकर शांत और सधे शब्दों में कहा-
"वो तुम न थीं कल्याणी"
मैं कौने में बैठी जिस लड़की को देख रहा था। वह निहायत सौम्य, सरल, शांत ,सलोनी और सहृदय दिख रही थी
लड़की चिल्लाई-, ''वो मैं ही थी"
''मैं ही बैठी थी वहाँ"''न!'' वो तुम न थीं! यह कहते हुए उन सज्जन ने एक गहरी साँस छोड़ी और आँखें बंद कर लीं।
लड़की कुछ सेकेंड बड़बडाई और फिर पैर पटकती हुई चली गई।

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दो- यस सर, नो सर

"चलेगा?" मैंने इठलाते हुए कहा।
"नो,सर! येस ,सर चलेगा।"
"ब्याह के बाद भी ये लड़कों वाले कपड़े ही पहनूँगी मैं, कोई एतराज़?"
"येस,सर ! नो,सर।"
"कोई लड़की है जीवन में...? मेरे इस सवाल पर वह लड़कियों से भी अधिक लजा गया साथ ही उसके शब्दों में हकलाहट उतर आई...
" न, न...नो, सर !"
उसका बायोडाटा हमारे पास था ।सब कुछ लिखा हुआ था उसमें फिर भी हम प्रश्न पर प्रश्न पूछ रहे थे।
मैं सोच रही थी कि सवाल और उनको पूछने के लहज़े से उसके दिमाग का तापमान बढ़ जाएगा और वह "नौ दो ग्यारह"
हो जाएगा पर उसने सभ्यता और शालीनता से साक्षात्कार की सभी औपचारिकताएंँ पूरी की और अभिवादन कर धीमे-सधे क़दमों से वापस चला गया फिर कभी मेरे जीवन में न लौटने के लिए।
उसके माता-पिता बाद तक भी उत्तर की प्रतीक्षा में रहे। काफी दिनों तक हम भाई-बहनों के परिहास का केंद्र बिंदु रहा "वो लड़का"
फिर एक समय हम भाई-बहनों का परिहास तो रुक गया,पर... अमोली अभी भी लगातार छेड़खानी करती ही रहती थी कभी कहती-,"कैसी हो लिल्ले की बहू?" ,कभी कहती "और सुनाओ मिसेज लिल्ली।"
मेरे न सुनने या अनसुना करने पर कहती-," श्री श्री एक हज़ार आठ लिल्ले की बहू! सुन भी ले माते श्री!"
मैं आँखें तरेर कर उसको देखती तो वह क्षमा याचना वाली मुद्रा बनाकर टुकुर-टुकुर मुझे देखती और कुछ पल बाद ही आँख दबा, ठहाका मारकर हँस पड़ती। उसकी ज्यादतियों से तंग आकर जब मैं सच में नाराज़ होती तो वह पास खिसक आती। कहती-,"माफ़ कर दे श्री! मैं तो तुझे हंँसा रही थी, कुछ ग़लत कहा क्या? गाँव में सब यही तो कहते तुझे....
मैं तो बस छेड़ रही थी तुमको मेरी प्यारी सखी।"
"चलो ,अब माफ़ी माँगो, कान पकड़कर।"
मेरे यह कहने पर वह उठकर मेरे दोनों कान पकड़कर कहती-," कुकडू कूँ...!" उसकी इन बचकानी हरकतों पर मेरी हंँसी छूट जाती।
अब सोचती हूँ... कितना परिश्रमी,साफ दिल और स्वाभिमानी था 'वो लड़का' जो पढ़ते समय भी अपना सारा खर्च स्वयं उठा रहा था और साथ ही बचत भी कर रहा था मेरी ही तरह सादा जीवन उच्च विचार का पक्षधर!
क्या वो‌ मेरे गौरव में कोई कमी आने देता कभी ...?
" नो,सर! "

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रचनाकार परिचय

सुमन सिंह चंदेल

ईमेल : chandelsuman143@gmail.com

निवास : मुज़फ़्फ़रनगर (उत्तरप्रदेश)

नाम- सुमन सिंह चंदेल
उपनाम- सुमन युगल 
पति का नाम- श्री युगल किशोर भारती
जन्मतिथि- 16 अप्रैल 1976
जन्मस्थान- मुज़फ़्फ़रनगर (उत्तरप्रदेश)
शिक्षा- एम० ए० (हिंदी), बी० एड
संप्रति- शिक्षिका एवं स्वतंत्र लेखन
प्रकाशन- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
संपर्क- 252, लद्दावाला, कम्बल वाली गली, निकट चन्द्रा सिनेमा, मुज़फ़्फ़रनगर (उत्तरप्रदेश)- 251001
मोबाइल- 8126228658