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सुधीर द्विवेदी की लघुकथाएँ

सुधीर द्विवेदी की लघुकथाएँ

"तुम्हे दकियानूसी लोगों की बातों को सीरियसली नहीं लेना चाहिए। " समझाते हुए पत्नी ने फौरन पति के हाथों से चाक़ू छुड़ाया और मुस्कुरा कर उसके हाथों में चाय का कप थमा दिया।

एक- संग-संग

"सुनो! तुम अपनी नौकरी छोड़ दो।" पति नें रसोई में घुसते ही कहा।

"क्यों?" पत्नी इस अत्प्रत्याशित आदेश से हड़बड़ा गयी।

"सब मेरी खिल्ली उड़ाते हैं।" ठुनकते हुए पति अचानक सब्ज़ी कतरने लग गया। 

"तुम्हे दकियानूसी लोगों की बातों को सीरियसली नहीं लेना चाहिए। " समझाते हुए पत्नी ने फौरन पति के हाथों से चाक़ू छुड़ाया और मुस्कुरा कर उसके हाथों में चाय का कप थमा दिया।

"नहीं ! बहुत हो गया, तुम यह जॉब छोड़ रही हो।" कहते-कहते पति ने दो घूँट में चाय खत्म की फ़िर कप धोने लग गया।

"तुम्हे हुआ क्या है आज?" पत्नी हैरानगी से लगभग चीख ही पड़ी।

"तुम्हारा हाथ बंटा रहा हूँ।" पति को पत्नी की हैरानगी से कोई फर्क न पड़ा ।

"तुम्हे तो अपनी इज्जत का ख्याल है नही ! लोग क्या कहेंगे? कि बीवी अपनें मियाँ से चौका-चूल्हा करवाती है।" पत्नी अब झुँझला गई थी।

"लोग मुझसे भी तो ऐसा ही कह सकते हैं।" पति ने पलटवार किया।

"ओहो! समझने की कोशिश करो, दो जन कमाते है तब कहीं..! " पत्नी अब रुआँसी हो आई थी।

पति कोई उत्तर देता इससे पहले फ़ोन घनघना उठा। पत्नी ने फौरन फ़ोन उठा लिया।

"किसका फ़ोन था?" पति ने फ़ोन कटते ही पत्नी पर सवाल दागा। 

"गैराज से फ़ोन था,एक पहिया जाम था। उन्होंने ठीक कर दिया है। जब तक दोनों पहिये संग-संग न चलें तो भला गाड़ी..?" बोलते-बोलते एकाएक पत्नी सकपका गयी, पति मुस्कुराते हुए उसे घूर रहा था। पत्नी ने नजरें झुका लीं और फ़टाफ़ट रसोई में जा घुसी। पति भी उसके पीछे-पीछे रसोई में आ पहुंचा।

 कुछ देर तक तो सन्नाटा पसरा रहा फ़िर अचानक रसोई ; बर्तनों की खट-पट और दोनों के समवेत ठहाकों से गुलजार हो गई।

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दो- प्यार 

"तुम तो कहती थीं कि इस दुनियाँ में तुम सबसे ज्यादा मुझसे प्यार करती हो।" पति के लहज़े में शिक़ायत थी।

 "वक्त के साथ-साथ इंसान बदलता है, और उसके प्‍यार का दायरा भी ! " पत्नी ने पति को टका सा जवाब दिया।

"शादी से पहले तुम्हारी पूरी दुनियाँ, मुझ पर ही सिमटी थी और अब..!" पति ने उदास होते हुए माहौल को फ़िर अपनी तरफ़ करने का प्रयास किया। पत्नी पर पति की बात का शायद थोड़ा असर हुआ। उसने पति की तरफ़ पीठ किये हुए ही कनखियों से उसे देखा पर बोली कुछ नहीं। उसकी चुप्पी ने पति की उदासी को खीझ में बदल दिया।

 "कितनी बदल गई हो तुम ?" पति का स्वर गरमाने लगा था।

पत्नी को सहन न हुआ, वह बोल उठी, "तुम्हारे लिए भी तो मेरी अहमियत दोयम दर्जे की है।"

"वो मुझे बेहद प्यार करती है।" पति, पत्नी को यह जवाब देते हुए तनिक भी न झिझका।

"तो जो तुम करते रहे हो, अब मैं भी करूंगी।" पत्नी ज़िद पर उतर आई।

 "सुनो ..!" रिरियाते हुए पति अब बचाव की मुद्रा में आ चुका था, "क्या सब कुछ पहले जैसा नहीं हो सकता?"

पति के इस सवाल पर, पत्नी चुप ही रही।

 "ऐ सुनो न ! कुछ पलों के लिए,अगर हम उन दोनों को..? दोनों एक साथ बहुत खुश भी रहते हैं।"

"पर मैं उसके बगैर पल भर भी नहीं रह सकती।" पत्नी छटपटा उठी।

 "पर चंद लम्हों के लिए ही सही, कुछ समय चुरा कर हम, एक-दूसरे के तो हो ही सकते है ?" इस बार पति की बात का, पत्नी ने सिर झुका कर, मुस्कुराते हुए समर्थन किया।

पति ने लपककर पत्नी के बगल में सो रही बच्ची को कंधे से लगाया और पूजागृह से सटे कमरे की तरफ़ बढ़ चला। दरवाजे पर पहुँच कर वह एकाएक पलटा और बोला, "मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ, पर वह मेरी माँ है।"

"...और मैं जिसे बहुत चाहती हूँ वह हमारी यह बेटी है।" पति के कंधे से लगी निश्चिन्त सोती हुई बच्ची को निहारते हुए वह पति को चिढ़ाने के अंदाज़ में बोली।

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1 Total Review

वीणा शर्मा वशिष्ठ

15 February 2025

बहुत अच्छी कहानी

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रचनाकार परिचय

सुधीर द्विवेदी

ईमेल :

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

शिक्षा- स्नातक(कंप्यूटर साइंस )
रुचि- पेंटिंग एवं लेखन में रूचि 
विधा- लघुकथा, कविताएँ, हायकु सहित विभिन्न विधाओं में लेखन।
प्रकाशन- दैनिक जागरण, अमर उजाला हिंदुस्तान एवं राजस्थान पत्रिका सहित विभिन्न समाचार पत्रों ने प्रकाशन। लघुकथा कलश, संरचना, साहित्यअमृत जैसी स्थापित पत्रिकाओं में स्थान।
संपर्क- 128/809 वाई ब्लॉक 
किदवई नगर कानपुर (उ. प्र.)
208011