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सवैया छन्द के भेद- मनोज शुक्ल 'मनुज'

सवैया छन्द  के भेद- मनोज शुक्ल 'मनुज'

इससे पूर्व के अंक में आपने सवैया के मत्त गयंद, मोद, अरसात,किरीट,चकोर व मदिरा सवैया के विधान के बारे में पढ़ा। इस अंक में सुमुखि, मुक्ताहरा, मंजरी, लवंगलता, सनेही व दुर्मिल सवैया का विधान दिया जा रहा है।

इससे पूर्व के अंक में आपने सवैया के मत्त गयंद, मोद, अरसात,किरीट,चकोर व मदिरा सवैया के विधान के बारे में पढ़ा। इस अंक में सुमुखि, मुक्ताहरा, मंजरी, लवंगलता, सनेही व दुर्मिल सवैया का विधान दिया जा रहा है।

7- सुमुखि सवैया

जगण X 7 + लघु + गुरु

121 121 121 121 121 121 121 12
कुल वर्ण- 23

उदाहरण

सुनो अपनी सब शक्ति बटोर सुयोग बना अब तो महको।
अरे!समझो सुख को जग में तुम बालक से रह के चहको।।
चलो कर लो शलभासन आसन हे! नर सूरज सा दहको।
हँसो महको चहको दहको नित ध्यान धरो मत यूँ बहको।।

मनोज शुक्ल 'मनुज'


8- मुक्ताहरा सवैया

8 जगण
121 121 121 121 121 121 121 121
कुल वर्ण- 24
11-13 पर यति

उदाहरण

प्रमाद नहीं मन में बसता, तन ज्योतित है पहचान पवित्र।
अमोल सदा वह है जग में, उस सा जिसका द्युतिमान चरित्र।।
अगाध भरी जिसमें ममता, मुझको लगती भव गान विचित्र।
सुशब्द नहीं मिलते लगती, वह जीवन की गतिमान बहित्र।।

मनोज शुक्ल 'मनुज'

बहित्र---नाव

9- मंजरी/मकरंद/माधवी /वाम सवैया

7 जगण+यगण
121 121 121 121 121 121 121 122
कुल वर्ण - 24

उदाहरण

न जोर लगाकर योग करें गहरा, मत घाव कभी खुजलाना।
न चोर बनो कविता,सविता बन, के यदि है तुमको कुछ पाना।।
अघोर जपो चितचोर जपो जप लो, प्रभु राम नहीं घबड़ाना।
चटोर न हो अणिमा न बनो जिससे, न पड़ें तुमको पछताना।।

मनोज शुक्ल 'मनुज'

10- लवंगलता सवैया

(जगण*8+लघु)

121 121 121 121 121 121 121 121 1
कुल वर्ण - 25

उदाहरण

लड़े बिन बात दहे दिन रात, न चैन रहे अनुराग हुआ अब।
अड़े जब ऊब उड़े मन खू , सुनैन बहे अनुराग हुआ अब।।
खड़े दृग खोल न हों मृदु बोल, तनाव सहे अनुराग हुआ अब।
बढ़े जब पीर रखे मन धीर, कुबोल गहे अनुराग हुआ अब।।

मनोज शुक्ल 'मनुज'

11- सनेही सवैया

(जगण*8+गुरु)
121 121 121 121 121 121 121 121 2
कुल वर्ण- 25

उदाहरण

करो कुछ काम सकाम रहो बिन काम न हो कहता तुमसे अभी।
बढ़ो डर छोड़ लड़ो तुम दौड़ गढ़ो नव मान सुनो तुम भी सभी।।
यही सब लोग उड़ा कर भोग बने अब रोग यहाँ लड़ते तभी।
मिले कुछ पास रहे तब आस नहीं यह लोग बने रहते सभी।।

मनोज शुक्ल 'मनुज'

12- दुर्मिल सवैया


आठ सगण
112 112 112 112 112 112 112 112
कुल वर्ण - 24

उदाहरण

शुचिता मन की बढ़ती नित हो अब अम्ब मुझे बढ़ ये वर दो।
जगती पर जो ठगते सबको उनको अविलम्ब बढ़ो छर दो।
धर दो अब हाथ कृपा कर दो दुख दीन गुणी जन के हर दो।
हर दो सब ज्ञान अमानुष का मुझ को कविता सविता कर दो।

मनोज शुक्ल 'मनुज'

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रचनाकार परिचय

मनोज शुक्ल 'मनुज'

ईमेल : gola_manuj@yahoo.in

निवास : लखनऊ (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि- 04 अगस्त, 1971
जन्मस्थान- लखीमपुर-खीरी
शिक्षा- एम० कॉम०, बी०एड
सम्प्रति- लोक सेवक
प्रकाशित कृतियाँ- मैंने जीवन पृष्ठ टटोले, मन शिवाला हो गया (गीत संग्रह)
संपादन- सिसृक्षा (ओ०बी०ओ० समूह की वार्षिकी) व शब्द मञ्जरी(काव्य संकलन)
सम्मान- राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश द्वारा गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' पुरस्कार
नगर पालिका परिषद गोला गोकरन नाथ द्वारा सारस्वत सम्मान
भारत-भूषण स्मृति सारस्वत सम्मान
अंतर्ज्योति सेवा संस्थान द्वारा वाणी पुत्र सम्मान
राष्ट्रकवि वंशीधर शुक्ल स्मारक एवं साहित्यिक प्रकाशन समिति, मन्योरा-खीरी द्वारा राजकवि रामभरोसे लाल पंकज सम्मान
संस्कार भारती गोला गोकरन नाथ द्वारा साहित्य सम्मान
श्री राघव परिवार गोला गोकरन नाथ द्वारा सारस्वत साधना के लिए सम्मान
आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह द्वारा सम्मान
काव्या समूह द्वारा शारदेय रत्न सम्मान
उजास, कानपुर द्वारा सम्मान
यू०पी०एग्री०डिपा०मिनि० एसोसिएशन द्वारा साहित्य सेवा सम्मान व अन्य सम्मान
उड़ान साहित्यिक समूह द्वारा साहित्य रत्न सम्मान
प्रसारण- आकाशवाणी व दूरदर्शन से काव्य पाठ, कवि सम्मेलनों व अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों में सहभागिता
निवास- जानकीपुरम विस्तार, लखनऊ (उ०प्र०)
मोबाइल- 6387863251