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सवैया छन्द एवं उनके भेद- मनोज शुक्ल "मनुज"

सवैया छन्द एवं उनके भेद- मनोज शुक्ल "मनुज"

यह एक वर्णिक छंद है। सवैया गणों पर आधारित होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसमें वर्णिक वृत्तों में 22 से 26 अक्षर के चरण होते हैं। सवैया छंद में चारों चरणों में सम तुकांतता होती है।

सवैया छंद

यह एक वर्णिक छंद है। सवैया गणों पर आधारित होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसमें वर्णिक वृत्तों में 22 से 26 अक्षर के चरण होते हैं। सवैया छंद में चारों चरणों में सम तुकांतता होती है। गणों के विषय में आप पूर्व अंक में पढ़ चुके हैं। सवैया छंद के अनेक भेद हैं। इस अंक में उनमें से कुछ भेद निम्न प्रकार हैं-

भगण(211) गण पर आधारित सवैया

1- मत्तगयंद सवैया

इसमें भगण की सात आवृत्ति +गुरु+गुरु होते हैं।
अर्थात्..211 211 211 211 211 211 211 22.
कुल वर्ण- 23

उदाहरण

नाथ खड़ा कब से अब तो कर दो कुछ नाम सुनाम हमारे,
ये सच है बनते रहते बिन साधन के सब काम हमारे।
जीवन का हरते सब कष्ट कृपा करते सुखधाम हमारे।
दीन दयाल, दयानिधि ये सुख कारक हैं प्रभु राम हमारे।

- मनोज शुक्ल "मनुज"

2- मदिरा सवैया

इसमें भगण की सात आवृत्ति +गुरु होते हैं।
अर्थात् ..211 211 211 211 211 211 211 2.
कुल वर्ण- 22

उदाहरण

आप कहो कुछ और करो कुछ, बात मुझे सब ठीक लगे।
प्रेम जगा जब से उर में, तब से लगते प्रिय आप सगे।
नैन लगें अति मादक मोहक, बैन लगें सब नेह पगे।
देख रहा नित रूप अलौकिक, देख इसे मन बुद्धि जगे।

- मनोज शुक्ल "मनुज"

3- चकोर सवैया

इसमें 7 भगण+गुरु+लघु होते हैं।
अर्थात्..211 211 211 211 211 211 211 21.
कुल वर्ण- 23

उदाहरण

सीख सको न सको पर ये सच छन्द सभी लगते अति शुद्ध।
ओज कहो यदि तो हहराकर फूँक उड़ा सकते दिख क्रुद्ध।
क्रुद्ध नहीं लिखते कुछ छन्द कहें तप लेखन है बन बुद्ध।
सार लिखो अभिसार लिखो लिख आल्ह यहीं पर दो लिख युद्ध।

- मनोज शुक्ल "मनुज"

4- किरीट सवैया

इसमें 8 भगण होते हैं।
अर्थात्..211 211 211 211 211 211 211 211.
कुल वर्ण - 24

उदाहरण

काटत-काटत फंद थके फिर, फंद नए बनते मनमोहन।
जीवन ये अनमोल रहे इस, से न किया अब भी कुछ गोहन।
देख रहा दिखता मुझको सच, बात यही सब सोहन-सोहन।
जो हरते सबकी खुशियाँ वह, ही रटते नित दोहन-दोहन।

- मनोज शुक्ल"मनुज"

5- अरसात सवैया

इसमें 7 भगण+रगण होते हैं।
अर्थात्..211 211 211 211 211 211 211 212
कुल वर्ण - 24

उदाहरण

कौन कहे कुछ कौन सुने कुछ, जो मन में अनुराग नहीं जगा।
जो सुन ले गुन ले मन से वह, ही लगता भव में सब से सगा।
ठान कभी जब भी कुछ मानव, तो अपनी कुल शक्ति वहीं लगा।
खण्ड न हो पुरुषार्थ कहीं पर, और बहे मन की मृदु आपगा।

मनोज शुक्ल "मनुज"

6- मोद सवैया-

इसमें पाँच भगण, एक मगण, एक सगण और एक गुरु होता है।
अर्थात्..211 211 211 211 211 222 112 2
यह तीन गणों का मिश्रित सवैया है।
कुल वर्ण- 22

उदाहरण

जीवन में शुभ योग भरो अब, गीत अनोखे आप सुनाओ।
योग करो प्रभु ध्यान धरो नित, जीवन जी लो धन्य कहाओ।
जो मन का सुख चाह रहे तब, मोहन से ही प्रेम बढ़ाओ,
राघव-राघव-राघव-राघव, राघव बोलो टेर लगाओ।

- मनोज शुक्ल "मनुज"

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रचनाकार परिचय

मनोज शुक्ल 'मनुज'

ईमेल : gola_manuj@yahoo.in

निवास : लखनऊ (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि- 04 अगस्त, 1971
जन्मस्थान- लखीमपुर-खीरी
शिक्षा- एम० कॉम०, बी०एड
सम्प्रति- लोक सेवक
प्रकाशित कृतियाँ- मैंने जीवन पृष्ठ टटोले, मन शिवाला हो गया (गीत संग्रह)
संपादन- सिसृक्षा (ओ०बी०ओ० समूह की वार्षिकी) व शब्द मञ्जरी(काव्य संकलन)
सम्मान- राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश द्वारा गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' पुरस्कार
नगर पालिका परिषद गोला गोकरन नाथ द्वारा सारस्वत सम्मान
भारत-भूषण स्मृति सारस्वत सम्मान
अंतर्ज्योति सेवा संस्थान द्वारा वाणी पुत्र सम्मान
राष्ट्रकवि वंशीधर शुक्ल स्मारक एवं साहित्यिक प्रकाशन समिति, मन्योरा-खीरी द्वारा राजकवि रामभरोसे लाल पंकज सम्मान
संस्कार भारती गोला गोकरन नाथ द्वारा साहित्य सम्मान
श्री राघव परिवार गोला गोकरन नाथ द्वारा सारस्वत साधना के लिए सम्मान
आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह द्वारा सम्मान
काव्या समूह द्वारा शारदेय रत्न सम्मान
उजास, कानपुर द्वारा सम्मान
यू०पी०एग्री०डिपा०मिनि० एसोसिएशन द्वारा साहित्य सेवा सम्मान व अन्य सम्मान
उड़ान साहित्यिक समूह द्वारा साहित्य रत्न सम्मान
प्रसारण- आकाशवाणी व दूरदर्शन से काव्य पाठ, कवि सम्मेलनों व अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों में सहभागिता
निवास- जानकीपुरम विस्तार, लखनऊ (उ०प्र०)
मोबाइल- 6387863251