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सशक्त महिला : कमज़ोर समाज- अलका मिश्रा

सशक्त महिला : कमज़ोर समाज- अलका मिश्रा

महिला सशक्तिकरण का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को समान अधिकार देना और उन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाना है। यह एक सकारात्मक और आवश्यक क़दम है, जो समाज में समानता की ओर बढ़ने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। हालाँकि महिला सशक्तिकरण की प्रक्रिया में कभी-कभी पुरुषों के अधिकारों और उनकी भावनात्मक ज़रूरतों को अनदेखा किया जाता है। 

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि प्रतिवर्ष 8 मार्च को महिला दिवस के रूप में सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता है। महिला दिवस की शुरुआत 1908 में हुई थी, जब न्यूयॉर्क शहर में महिलाओं ने बेहतर कामकाजी हालात, समान वेतन और वोटिंग अधिकारों की मांग करते हुए एक बड़े आंदोलन की शुरुआत की। इसके बाद 1910 में कोपेनहेगन में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी महिला सम्मेलन में क्लारा ज़ेटकिन ने एक प्रस्ताव रखा, जिसमें हर साल 8 मार्च को महिला दिवस मनाने का आह्वान किया गया। तब से यह दिन महिला अधिकारों और लैंगिक समानता के प्रतीक के रूप में मनाया जाने लगा।
हालाँकि प्रारंभ में यह कामकाजी महिलाओं का आंदोलन था किन्तु समय के साथ-साथ यह हर महिला के अधिकारों के प्रति जागरुकता की एक मुहिम बन गया।

यदि हम अतीत में झाँकें तो पाएँगे कि महिलाओं के जीवन स्तर एवं उनके प्रति समाज के नज़रिए में बड़ा बदलाव आया है। आज की महिला पहले से कहीं अधिक सक्षम एवं अपने अधिकारों के प्रति मुखर है। एक प्रकार से यह समाज के लिए हितकर भी है कि समाज में इस बड़े बदलाव के कारण महिला एवं पुरुष के बीच की विकास एवं विचारों की खाई मिटती जा रही है। जहाँ एक ओर महिला घर की चारदीवारी से निकल कर पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी आर्थिक साझेदारी निभा रही है, वहीं पुरुष बाहर के कामों के साथ घर के कार्यों में महिला का हाथ बटाने लगे हैं और इतना ही नहीं, महिला को सम्मान की दृष्टि से भी देखने लगे हैं। घर के महत्वपूर्ण फ़ैसलों में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, जैसे कि बच्चे को किस स्कूल में पढ़ाना है? घर कब और कहाँ लेना है? बच्चे के करियर के बारे में भी अब उनकी राय मायने रखती है। अब परिवारों में लड़कियों को बेसिक शिक्षा के बाद मात्र विवाह करके निपटाने की बात नहीं होती बल्कि पहले उनको अपने पैरों पर खड़े करने के बाद ही उनकी मर्ज़ी से ही वैवाहिक जीवन प्रारंभ करने की स्वतंत्रता दी जा रही है, जो कि पहले के ज़माने में नहीं था। यह परिवर्तन उच्च, मध्यम एवं निम्न वर्गीय सभी परिवारों में आया है।
 
महिला सशक्तिकरण का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को समान अधिकार देना और उन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाना है। यह एक सकारात्मक और आवश्यक क़दम है, जो समाज में समानता की ओर बढ़ने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। हालाँकि महिला सशक्तिकरण की प्रक्रिया में कभी-कभी पुरुषों के अधिकारों और उनकी भावनात्मक ज़रूरतों को अनदेखा किया जाता है, ख़ासकर उस स्थिति में जब पुरुषों को किसी महिला द्वारा प्रताड़ित किया जाता है। हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि कुछ पुरुष महिलाओं के हाथों शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक प्रताड़ना का शिकार हो रहे हैं लेकिन इस मुद्दे पर चर्चा कम होती है। समाज में अक्सर यह धारणा बन गई है कि पुरुष हमेशा सशक्त होते हैं और उन्हें कोई नुकसान नहीं हो सकता। इस कारण पुरुषों को अपनी परेशानी को साझा करने में झिझक होती है और उन्हें अपनी भावनाओं को दबाना पड़ता है। जब किसी पुरुष को मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है तो उसके पास पर्याप्त समर्थन और सहायता का अभाव होता है, जिससे वह आत्महत्या जैसे चरम क़दम उठा सकता है।
 
महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य किसी भी लिंग के प्रति भेदभाव को समाप्त करना है लेकिन इसका यह मतलब क़तई नहीं है कि पुरुषों की समस्याओं को नज़रअंदाज किया जाए। समाज को यह समझने की आवश्यकता है कि मानसिक और भावनात्मक प्रताड़ना केवल एक लिंग से संबंधित नहीं है और किसी भी व्यक्ति को चाहे वह पुरुष हो या महिला, शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक रूप से पीड़ित होना स्वीकार्य नहीं है। इस मुद्दे पर खुलकर चर्चा और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने से हम एक संतुलित एवं समान अधिकारों वाले समाज की दिशा में क़दम बढ़ा सकते हैं। हम यह कभी नहीं चाहेंगे कि सशक्त महिला एक कमज़ोर समाज का निर्माण करे।
 
स्त्री और पुरुष दोनों साथ मिलकर ही एक सुंदर परिवार का गठन कर सकते हैं, जो कि एक सुदृढ़ समाज की नींव होता है। इसीलिए आज के समय में यह अत्यंत आवश्यक है कि दोनों ही अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहते हुए दूसरे के अधिकारों का अतिक्रमण भी न करें, साथ ही स्वेच्छापूर्वक अपने-अपने कर्तव्यों का यथोचित निर्वाह करें। तभी हम भारत के लिए एक सुंदर भविष्य का निर्माण कर सकेंगे।
 
होली एवं रमज़ान के पर्व साथ-साथ एक ही माह में होना ईश्वरीय विधान है। हमें ऊपर वाले का यह इशारा समझकर आपस में प्रेम और सद्भाव को बनाए रखना है और किसी भी बहकावे में आए बिना एक ज़िम्मेदार नागरिक का कर्तव्य निभाते हुए इन त्योहारों के स्वरूप को बिगड़ने से बचाना है। 
होली और रमज़ान की शुभकामनाओं के साथ लेखनी को विराम देती हूँ। 
धन्यवाद 
आपकी मित्र

17 Total Review

अलका मिश्रा

20 March 2025

भानु झा जी आपसे सहमत हूँ। मैंने भी सच बात ही कहने का प्रयास किया है।

अलका मिश्रा

20 March 2025

आपकी प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार सीमा जी

सीमा अग्रवाल

18 March 2025

संतुलित विचार। सशक्ति करण का अर्थ अमानवीय होना कदापि नहीं है। एक स्त्री के प्रकृतिक गुणों को समानता के नाम पर खत्म कर देना भी किसी आंदोलन की सफलता नही। ख़ुद को बचाए रखते हुए सहेजते हुए स्वयं व समाज के लिए उपयोगी बनाये रखना भी ज़रूरी है।

सीमा अग्रवाल

18 March 2025

संतुलित विचार। सशक्ति करण का अर्थ अमानवीय होना कदापि नहीं है। एक स्त्री के प्रकृतिक गुणों को समानता के नाम पर खत्म कर देना भी किसी आंदोलन की सफलता नही। ख़ुद को बचाए रखते हुए सहेजते हुए स्वयं व समाज के लिए उपयोगी बनाये रखना भी ज़रूरी है।

B

Bhanu jha

17 March 2025

महिलाओं को मिली कानूनी मदद की वजह से कई पुरुष भी महिला द्वारा प्रताड़ित की जाती हैं. तलाक की स्थिति में उन्हें बच्चों से नहीं मिलने दिया जाता है. झूठे मामले में फंसा कर जेल तक की सजा भोगने के लिए मजबूर कर दिया जाता है

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Bhanu jha

17 March 2025

महिलाओं को मिली कानूनी मदद की वजह से कई पुरुष भी महिला द्वारा प्रताड़ित की जाती हैं. तलाक की स्थिति में उन्हें बच्चों से नहीं मिलने दिया जाता है. झूठे मामले में फंसा कर जेल तक की सजा भोगने के लिए मजबूर कर दिया जाता है

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Bhanu jha

17 March 2025

महिलाओं को मिली कानूनी मदद की वजह से कई पुरुष भी महिला द्वारा प्रताड़ित की जाती हैं. तलाक की स्थिति में उन्हें बच्चों से नहीं मिलने दिया जाता है. झूठे मामले में फंसा कर जेल तक की सजा भोगने के लिए मजबूर कर दिया जाता है

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रचनाकार परिचय

अलका मिश्रा

ईमेल : alkaarjit27@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि-27 जुलाई 1970 
जन्मस्थान-कानपुर (उ० प्र०)
शिक्षा- एम० ए०, एम० फिल० (मनोविज्ञान) तथा विशेष शिक्षा में डिप्लोमा।
सम्प्रति- प्रकाशक ( इरा पब्लिशर्स), काउंसलर एवं कंसलटेंट (संकल्प स्पेशल स्कूल), स्वतंत्र लेखन तथा समाज सेवा
विशेष- सचिव, ख़्वाहिश फ़ाउण्डेशन 
लेखन विधा- ग़ज़ल, नज़्म, गीत, दोहा, क्षणिका, आलेख 
प्रकाशन- बला है इश्क़ (ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित
101 महिला ग़ज़लकार, हाइकू व्योम (समवेत संकलन), 'बिन्दु में सिन्धु' (समवेत क्षणिका संकलन), आधुनिक दोहे, कानपुर के कवि (समवेत संकलन) के अलावा देश भर की विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं यथा- अभिनव प्रयास, अनन्तिम, गीत गुंजन, अर्बाबे कलाम, इमकान आदि में रचनाएँ प्रकाशित।
रेख़्ता, कविता कोष के अलावा अन्य कई प्रतिष्ठित वेब पत्रिकाओं हस्ताक्षर, पुरवाई, अनुभूति आदि में रचनाएँ प्रकाशित।
सम्पादन- हिज्र-ओ-विसाल (साझा शेरी मजमुआ), इरा मासिक वेब पत्रिका 
प्रसारण/काव्य-पाठ- डी डी उत्तर प्रदेश, के टी वी, न्यूज 18 आदि टी वी चैनलों पर काव्य-पाठ। रेखता सहित देश के प्रतिष्ठित काव्य मंचों पर काव्य-पाठ। 
सम्मान-
साहित्य संगम (साहित्यिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक) संस्था तिरोड़ी, बालाघाट मध्य प्रदेश द्वारा साहित्य शशि सम्मान, 2014 
विकासिका (साहित्यिक सामजिक एवं सांस्कृतिक) संस्था कानपुर द्वारा ग़ज़ल को सम्मान, 2014
संत रविदास सेवा समिति, अर्मापुर एस्टेट द्वारा संत रवि दास रत्न, 2015
अजय कपूर फैंस एसोसिएशन द्वारा कविवर सुमन दुबे 2015
काव्यायन साहित्यिक संस्था द्वारा सम्मानित, 2015
तेजस्विनी सम्मान, आगमन साहित्य संस्था, दिल्ली, 2015
अदब की महफ़िल द्वारा महिला दिवस पर सम्मानित, इंदौर, 2018, 2019 एवं 2020
उड़ान साहित्यिक संस्था द्वारा 2018, 2019, 2021 एवं 2023 में सम्मानित
संपर्क- एच-2/39, कृष्णापुरम
कानपुर-208007 (उत्तर प्रदेश) 
 
मोबाइल- 8574722458